मुस्लिम विद्वानों ने मजलिस में डाली तौहिद पर रोशनी
सहारनपुर [24CN]। मौहर्रम की दूसरी तारीख को महानगर की विभिन्न इमामबारगाहों में हुई मजलिस में मुस्लिम धार्मिक विद्वानों ने वारिदे करबला व तौहिद पर रोशनी डाली। स्थानीय मौहल्ला कायस्थान स्थित इमामबारगाह सामानियान, जाफर नवाज स्थित बड़ी इमामबारगाह व छोटी इमामबारगाह में मजलिस में सै. मौ. अब्बास रिजवी ने कहा कि जब हजरत इमाम हुसैन का काफिला करबला के रास्ते में ही था तब यजीद के गवर्नर इब्नेजियाद ने अपने सिपहसालार हुर्र को हजरत इमाम हुसैन व काफिले को बंदी बनाकर करबला लाने को भेजा।
हुर्र का लश्कर इजरत इमाम हुसैन को तलाशता हुआ उनके काफिले तक पहुंचा तो हुर्र लश्कर प्यास से बेहाल हो चुका था। हजरत इमाम हुसैन ने हुर्र के लश्कर की हालत को देखते हुए अपने साथियों से कहा कि तुम हुर्र के लश्कर को पानी से सैराब करो और हुर्र के लश्कर को पानी पिलाया गया। जो हुर्र के साथ घोड़े थे उन्हें भी पानी से सैराब किया गया। हजरत इमाम हुसैन ने अपने लश्कर का सारा पानी हुर्र के लश्कर को पिला दिया। पानी पीने के बाद हुर्र हजरत इमाम हुसैन व उनके लश्कर को बंदी बनाकर मैदाने करबला ले आया था। उसके बाद जब यजीद ने हजरत इमाम हुसैन के लश्कर का पानी बंद कर दिया और बच्चे प्यास से तड़पने लगे तो तब हुर्र को शर्मिंदा होना पड़ा और अपन खता मानते हुए हजरत इमाम हुसैन के पास अपने भाई व बेटे के साथ आया और हरजत इमाम हुसैन से अपनी खता को मानते हुए माफी मांगी। तब हजरत इमाम हुसैन ने हुर्र को माफ कर दिया।
उसके बाद हजरत हुर्र ने हजरत इमाम हुसैन की तरफ से यजीद के खिलाफ जंग लड़ी और कर बला में सबसे शहीद हुए। मजरिस में बताया गया कि हक की बात कहने से कभी डरना नहीं चाहिए। हक बातिल को पिछाड़ता है। हक पर रहने वालों की संख्या कितनी भी कम क्यों न हो, बातिल को हमेशा हारना ही पड़ता है। मजलिस के आखिर में अंजुमने अकबरिया व अंजुमने इमामिया के सायबे बियाज ने नौहाख्वानी की।
