जापानी पद्धति के दस मियावाकी वनों का निर्माण करायेगा नगर निगम

- सहारनपुर में रायवाला में ट्रैक्टर से भूमि को समतल करती निगम की जेसीबी।
सहारनपुर [24CN]। जल शक्ति अभियान के तहत नगर निगम द्वार महानगर में जापानी पद्धति के 10 मियावाकी वनों का निर्माण कराया जायेगा। शहर के मध्य रायवाला में 65 बीघा भूमि का चयन कर कार्य शुरु कर दिया गया है। एक मियावाकी वन में करीब 15 हजार वृक्ष,झाडिय़ों, लताओं व बूटियों का रोपण किया जायेगा। नगरायुक्त ज्ञानेंद्र सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि नगर निगम जल संरक्षण अभियान के अंतर्गत जल संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण व लोगों को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराने के लिए महानगर में 10 मियावाकी वनों का निर्माण करेगा।
उन्होंने बताया कि मियावाकी एक जापानी वनीकरण विधि है। इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है जिसमें पौधे ऊपर की ओर से सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर बराबर की तुलना में ऊपर की ओर वृद्धि करते है। इस पद्धति से सीमित संसाधनों में पौधारोपण कर तीव्रता से हरियाली बढ़ायी जा सकती है। उन्होंने बताया कि मियावाकी वन के लिए शहर के मध्य स्थित रायवाला में नगर निगम की भूमि को चिन्हित कर कार्य शुरु कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि ये मियावाकी वन हमारे ‘ग्रीन सहारनपुर-क्लीन सहारनपुरÓ के सपने को साकार करने में भी मददगार होंगे।
नगरायुक्त ने बताया कि केंद्र सरकार की गाइड लाइन के मुताबिक रायवाला के इस मियावाकी वन को थीम पार्क का रुप दिया जायेगा और इसमें जल संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण से सम्बंधित छोटे-छोटे मॉडल बनाये जायेंगे। इसे इस प्रकार से विकसित किया जायेगा कि जल संरक्षण के प्रशिक्षण हेतु देशभर से प्रशिक्षार्थी यहां आकर प्रशिक्षण ले सकेंगे। स्थानीय नागरिक व छात्र भी यहां विभिन्न विधियों के प्रैक्टिकल मॉडल देखकर देश हित के इस कार्य में अपना सहयोग दे सकेंगे। उन्होंने बताया कि एक मियावाकी वन में करीब 15 हजार वृक्ष, झाडिय़ों, लताओं व बूटियों का रोपण किया जायेगा।
इसके लिए हिमालयन इंस्टिट्यूट फॉर इकोलॉजी एन्वायरमेंट एण्ड डवलपमेंट देहरादून, जल संसाधन समूह 2030 नई दिल्ली, ग्रीन इंडिया कार्पोरेशन व सेंटर फॉर वाटर पीस आदि संस्थाओं के वैज्ञानिकों का सक्रिय सहयोग लिया जा रहा है। निगम के पर्यावरण प्लानर डॉ.उमर सैफ ने बताया कि उक्त 65 बीघा भूमि में कहां कितना पानी है,कहां कम पानी है इसकी जानकारी के लिए सैटेलाइट से टोपोग्राफी करायी गयी है ताकि उसी के अनुसार पौधारोपण किया जा सके।