आम के बागों में लगने वाले रोगों से बचाव के बताए उपाय

सहारनपुर [24CN]। आम की फसल को भुनगा, थ्रिप्स, गालमिज कीट एवं खर्रा रोग द्वारा मजंरियों, पुष्पक्रम, कोमल पत्तियों एवं डंठलों व छोटे फलों को सर्वाधिक क्षति पहुचाई जाती है।
संयुक्त निदेशक औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र श्री सुरेश कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि भुनगा कीट नूकीलें आकार में जो पीछे की तरफ पतले आगे की तरफ चोड़े होते है। इनके बच्चे निम्फ एवं वयस्क कीट मुलायम पत्तियों, पुष्पक्रमों तथा छोटे फलों का रस चूसते है। जिससे बौर एवं फूल व फल सूखकर गिर जाते है, साथ ही साथ मधुस्राव विसर्जित करते है, फलस्वरूप फलों एवं पत्तियों पर काली फफूदीं उग आती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। इसी प्रकार गालमिज कीट मंजरियों एवं नये बनंे फलों  तथा बाद में मुलायम कांेपलों में अण्डे देती है। जिसकी सूंडी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहॅुचाती है। प्रभावित भाग काला पड़कर सूख जाता है। खर्रा रोग में मंजरियों, पुष्पक्रमों एवं छोटे फलों व कोमल टहनियों पर सफेद फफूंद के चूर्ण पाउडर के रूप में प्रकट होते है, पत्तियों पर बैंगनी तथा भूरे धब्बे दिखाई देते है। प्रभावित बौर एवं छोटे फल भूरे एवं काले पड़कर झड़ जाते है।

इन समसामायिक कीटों एवं रोग के प्रबन्धन हेतु बागवान भाईयों को सलाह दी गयी कि पहला छिड़काव जब बौर 75ः निकल आये और 3-4 इंच के हों जाये और बौर खिले न हो ऐसी स्थिति में डायमेथोऐट 30 ईसी 2.0 मिली0 या क्लोरपाईरीफास 20 ईसी 2.0 मिली0 तथा घुलनशील गन्धक 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर तथा द्वितीय छिड़काव जब फल सेट हो जाय व फलों का आकार सरसों के दाने के बराबर दिखाई देनेे लगे की अवस्था में इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 एस एल 0.3 मिली0 अथवा थायोमेथोक्सम 0.3 ग्रा0 तथा खर्रा रोग के लिए हेक्साकोनाजोल 01 मिली0 या डाइनोकैप  01 मिली0 प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जाये तथा तृतीय छिड़काव पहले किये गये छिड़काव के 15-20 दिन बाद जब फल मटर के दाने के अवस्था में फल दिखाई देने लगे। उस अवधि में भुनगा, थ्रिप्स आदि का प्रकोप दिखाई दें तो क्वीनालफास 25 ई0सी0 02 मिली0 या प्रोपेनोफास 02 मिली0 एवं खर्रा रोग हेतु ट्राईडेमार्फ 01 मिली0 प्रति लीटर पानी मंे घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।

बागवानों को सलाह दी गयी कि बागांे में जब बौर पूर्णरूप से खिला हो तो उस अवस्था मंे रासायनिक दवाओं को कम से कम छिड़काव किया जाये अथवा न किया जाये, जिससे पर-परागण की क्रिया प्रभावित न हो।