लखनऊ। चौदह वर्ष पहले सीरियल बम ब्लास्ट में अहमदाबाद में 56 लोगों की मौत के मामले में कोर्ट के 49 दोषियों को सजा देने के फैसले को चुनौती दी जा रही है। इनमें से 38 को फांसी की सजा दी गई है। मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना सैयद अरशद मदनी अहमदाबाद की विशेष अदालत के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि अगर हाई कोर्ट में हमारी मांग नहीं मानी जाती है तो हम सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे।

गुजरात के अहमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 को हुए धमाकों में 56 लोगों की जान गई थी और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके अगले दिन सूरत में 29 जिंदा बम बरामद किए गए थे। गुजरात की विशेष अदालत ने शुक्रवार को इस मामले में अपना फैसला दिया है। विशेष अदालत का यह फैसला सहारनपुर के देवबंद के दारुल उलूम के प्रधानाचार्य मौलाना सैयद अरशद मदनी को सही नहीं लग रहा है। उनका मानना है कि दोषियों को काफी कठोर सजा दी गई है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के खिलाफ हम हाईकोर्ट जाएंगे। हमें उम्मीद है कि उनकी सजा को शायद हाई कोर्ट कुछ कम कठोर कर दे। अगर हमें वहां पर भी सफलता नहीं मिली, तो हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस के फैसले पर मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि अहमदाबाद ब्लास्ट के दोषियों को जो सख्त सजा मिली है, उसको हम हाई कोर्ट में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि विशेष अदालत का फैसला अविश्वसनीय है, हम सजा के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे और कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो हम सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे।

मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि बम धमाकों जैसे ज्यादातर गंभीर मामलों में निचली अदालत कठोर फ़ैसले देती है लेकिन आरोपी को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से हमेशा राहत मिलती है। हमें उम्मीद है कि इस मामले में भी आरोपियों को राहत मिलेगी। मौलाना मदनी ने कहा कि देश के नामी वकील सभी दोषियों को फांसी से बचाने के लिए मजबूती से कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि हमें यकीन है कि इन लोगों को हाईकोर्ट से पूरा न्याय मिलेगा। पहले भी इस तरह के कई मामलों में निचली अदालतों से सजा पाए दोषी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से बाइज्जत बरी हो चुके हैं।

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इसका एक बड़ा उदाहरण अक्षरधाम मंदिर हमले का मामला है जिसमें निचली अदालत ने मुफ्ती अब्दुल कय्यूम सहित तीन को फांसी की सजा सुनाई थी और चार को उम्र कैद की सजा दी थी। इस फैसले को गुजरात हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां हमने अपनी बात रखी तो सुप्रीम कोर्ट ने ना सिर्फ सभी लोगों को बरी किया बल्कि कोर्ट ने निर्दोष लोगों को झूठे तरीके से बम ब्लास्ट में फंसने की साजिश करने पर गुजरात पुलिस को भी कड़ी फटकार लगाई थी।

इससे पहले के मामलों पर मौलाना मदनी ने कहा कि पहले जिन 11 आरोपियों को निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों ने मौत की सजा दी थी। उनके बाद जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में केस लडा और एक भी आरोपी को फांसी नहीं दी गई थी। अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर हमले के मामले में सात लोगों को मौत की सजा और एक आरोपी को मुंबई सत्र अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। जमीयत उलमा-ए-हिंद की कोशिशों से सात आरोपियों को सम्मानजनक रूप से बरी कर दिया गया था, जबकि दो व्यक्तियों की सजा को सात साल कर दिया गया था। हमें उम्मीद है कि हम अहमदाबाद के इस मामले के सभी आरोपियों को फांसी और उम्र कैद की सजा से बचाने और उन्हें बरी कराने में कामयाब होंगे।

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सहारनपुर में देवबंद के प्रधानाचार्य हैं। उन्होंने जमीयत उलमा-ए-हिंद के आठवें अध्यक्ष के रूप में असद मदनी का स्थान लिया। यह संगठन 2008 के आसपास विभाजित हो गया और मदनी ने अपने अरशद गुट के अध्यक्ष के रूप में काम करना जारी रखा है। 1941 में जन्म लेने वाले मौलाना सैय्यद अरशद मदनी जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हैं। उनके पिता का नाम शेखुल इस्लाम हजरत मौलाना सैय्यद हुसैन अहमद मदनी था। 8 फरवरी 2006 को मौलाना सैय्यद अरशद मदनी को उनके बड़े भाई मौलाना सैय्यद असद मदनी के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का अध्यक्ष चुना गया था।