बड़ी श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया गुरू गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों व माता गुजर कौर का शहीदी दिवस
- सहारनपुर में शहीदी दिवस पर शबद कीरतन करते रागी जत्थे।
सहारनपुर। सिखों के गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों और माता गुजर कौर जी का शहीदी दिवस बड़ी श्रद्धा और सत्कार के साथ मनाया गया। महानगर के खलासी लाईन स्थित उत्तर रेलवे पंचायती गुरुद्वारा आयोजित कार्यक्रम में सिखों के गुरू, गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों और माता गुजर कौर जी का शहीदी दिवस बडी श्रद्धा और सत्कार से मनाया गया।
इस दौरान सहज पाठ के भोग के उपरान्त गुणी ज्ञानियों द्वारा गुरुमत विचार व्यक्त किए। निहाग बाबा गढग़ज सिंह ने कहा कि अन्य शहीदों का इतिहास पढ़ें तो पता चलता है कि दी गई शहीदीयां अपने अहम, समराज्य, धन, जमीन, जोरू तक सीमित हैं, परन्तु गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत इसलिए अनोखी और बेमिसाल हैं क्योंकि उनके परिवार की शहादत केवल अपने धर्म के लिए ही नहीं, हिंदू धर्म की रक्षा और जुल्म के खिलाफ है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सर्वप्रथम नौ वर्ष की आयु में अपने पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली के चांदनी चैक में हिंदू धर्म की रक्षा हेतु शहादत के लिए आनंदपुर साहिब से विदा किया, फिर मुगल सल्तनत के बादशाह औरंगजेब ने पूरे हिन्दुस्तान को इस्लाम कबूल कराने के मकसद के खिलाफ डट के मुकाबला किया जिसमें उनके चारों साहिबजादे शहीद हुये उनके दो बड़े साहिबजादे – साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह पंजाब के रोपड जिले के चमकौर साहिब में युद्ध मे लड़ते हुए शहीदी प्राप्त कर गए तथा दो छोटे साहिबजादे, साहिबजादा जोरावर सिंह, साहिबजादा फतेह सिंह को सुबेदार सरहन्द वजीर खान द्वारा, इस्लाम न कबूल करने के जुल्म में दीवारों में चिन कर शहीद कर दिया गया।
महान शहीदी समागम पर द्वारा रक्तदान शिविर लगाया जिसमें 32 लोगों ने ब्लड डोनेट किया। इस अवसर पर विशेष तौर पर पूर्व सांसद राघव लखनपाल ने उपस्थित होकर माथा टेक कर नमन किया। गुरुद्वारा कमेटी से सरदार साहिब सिंह, सरदार दविंदर सिंह चड्डा, स. गोविंदर सिंह, स. परमजीत सिंह, स. सुच्चा सिंह, स अगम सिंह, स रपिंदर सिंह, पूर्व पार्षद यशपाल पुण्डीर, स. सुरेन्द्र मोहन सिंह चावला, व्यपारी नेता विवेक मनोचा, नगर विधायक राजीव गुम्बर, भाजपा महानगर अध्यक्ष शीतल बिश्नोई आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन स्टेज सेवादार सरदार गोविंदर सिंह ने किया अरदास हेड ग्रंथी ज्ञानी अमर सिंह ने की।
