संविधान तोड़ने वाले मना रहे संविधान हत्या दिवस…, ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना

संविधान तोड़ने वाले मना रहे संविधान हत्या दिवस…, ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना

केंद्र सरकार ने 25 जून को प्रतिवर्ष “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। हालांकि, इसको लेकर एक बार फिर से राजनीति शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र सरकार कहती है कि इस साल आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर वह संविधान हत्या दिवस मनाएगी। मैं ‘संविधान हत्या’ वाले बयान पर आपत्ति जताती हूँ… संविधान हमारे अधिकारों का आधार है, यह लोकतंत्र की जननी है। वे इसे संविधान हत्या कैसे कह सकते हैं?

ममता ने कहा कि इसमें लिखा है कि 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाएगा… वे आपातकाल हत्या दिवस भी मना सकते थे, लेकिन वे संविधान हत्या दिवस मना रहे हैं। मैं इस विचार की पूरी तरह निंदा करती हूँ… क्या आज भारत में लोकतंत्र है? क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर दिन गणतंत्र हत्या दिवस हो सकता है क्योंकि हर दिन वे गणतंत्र की हत्या कर रहे हैं, हर दिन वे लोगों के मौलिक अधिकारों में कटौती कर रहे हैं, वे राज्य की अर्थव्यवस्था और राज्य के सभी मौलिक अधिकारों को भी नष्ट कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि केंद्र 1975 में लगे आपातकाल के विरोध में 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाएगा, लेकिन भाजपा रोजाना संविधान को कमतर करती है। ममता बनर्जी ने सवाल किया कि क्या महाराष्ट्र और बिहार में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को भाजपा द्वारा गिराना संविधान पर हमला नहीं था। उन्होंने कहा कि जो संविधान का सम्मान नहीं करते, वे इसकी सुचिता को कायम रखने की बात कर रहे हैं। जिस तरह से भाजपा संविधान को बदलने और कमजोर करने की कोशिश कर रही है, हम हर रोज ‘संविधान हत्या दिवस’ मना सकते हैं।

1975 के आपातकाल को भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और नागरिक स्वतंत्रता के दमन के दौर के रूप में याद किया जाता है। इसमें राजनीतिक असहमति को दबाने के लिए मौलिक अधिकारों का निलंबन और सख्त सेंसरशिप शामिल थी। हज़ारों विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को बिना उचित प्रक्रिया के गिरफ़्तार किया गया, जिससे भय और अनिश्चितता का माहौल बना। मीडिया को महत्वपूर्ण प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया। 1977 में व्यापक जन आक्रोश और सत्तारूढ़ पार्टी की चुनावी हार के बाद आपातकाल समाप्त हो गया, जिसने भारत में लोकतांत्रिक संस्थानों की लचीलापन को प्रदर्शित किया।


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