Mallikarjun Kharge: क्या इन 5 चुनौतियों को पार कर पाएंगे नए कांग्रेस अध्यक्ष?

Mallikarjun Kharge: क्या इन 5 चुनौतियों को पार कर पाएंगे नए कांग्रेस अध्यक्ष?

New Delhi : वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत चुके हैं. उन्होंने शशि थरूर को आशानुरूप शिकस्त दी है. मल्लिकार्जुन खड़गे के नामांकन के समय ही ये साफ हो गया था कि वो इस चुनाव में जीत हासिल करेंगे. हालांकि शशि थरूर ने मुकाबले को रोचक बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो विफल रहे. राजनीतिक जानकार पहले से ही ये बता रहे थे कि मल्लिकार्जुन खड़गे इस चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज करेंगे. इसकी वजह है उनका गांधी परिवार का नजदीकी होना. जिस तरह से अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पहले अशोक गहलोत चुनाव लड़ रहे थे, फिर दिग्विजय सिंह का नाम आया और आखिर में मल्लिकार्जुन खड़के चुनाव मैदान में उतरे, उसी समय ये तय हो गया था कि उन्होंने गांधी परिवार की सहमति से चुनाव लड़ा था. और वो चुनाव में जीत दर्ज करने वाले हैं. भले ही इसे कयास लगाना कहते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि पहले दिन से सभी को पता था कि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होंगे. उन्होंने कांग्रेस के अब तक के इतिहास में सिर्फ छठी बार हुए अध्यक्ष पद के चुनाव में जीत हासिल कर ली है.

अब जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत ही चुके हैं, तो कुछ सवालों के जवाब सभी लोग ढूंढ रहे हैं. इनके जवाब तो मल्लिकार्जुन खड़गे ही देंगे, लेकिन ये सब भविष्य में सामने आएगा. आईए, हम बताते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने किस तरह की चुनौतियां होंगी.

‘यस मैन’ की छवि को बदल पाएंगे खड़गे?

मल्लिकार्जुन खड़गे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं. लेकिन उनकी छवि हमेशा से मास लीडर की नहीं, बल्कि यस मैन की रही है. यस मैन का मतलब है कि ‘हाई कमान’ के आदेश का पालन करना. मल्लिकार्जुन खड़गे चूंकि अब कांग्रेस पार्टी में सबसे बड़े पद पर पहुंच चुके हैं. ऐसे में उनके सामने चुनौती रहेगी कि वो अपने यस मैन की छवि को बदलें. क्या वो ऐसा कर पाएंगे?

कांग्रेस को जमीन पर फिर से खड़ा करना

मल्लिकार्जुन खड़गे को विरासत में जो कांग्रेस मिली है, उसमें सबसे बड़ी खामी ये है कि ये कांग्रेस पार्टी अब तक की सबसे कमजोर कांग्रेस पार्टी है. क्षेत्रीय क्षत्रप खुद को मजबूत कर रहे हैं. गहलोत और राजस्थान में जो विवाद हुआ, वो किसी से छिपा नहीं. मध्य प्रदेश हो या पंजाब, हिमाचल हो या कोई भी अन्य राज्य. जमीनी कार्यकर्ता अब पार्टी से लगभग दूर हैं. जो कार्यकर्ता हैं, वो क्षेत्रीय क्षत्रपों के पराक्रम को ही संभालने में लगे हैं. हालात यहां तक बिगड़ चुके हैं कि आज कांग्रेस पार्टी के पास हर एक विधानसभा क्षेत्र में ढंग का उम्मीदवार तक नहीं है. वो कई राज्यों में जूनियर पार्टनर बनने को मजबूर है.

युवा जोश और अनुभव में तालमेल बिठाना

मल्लिकार्जुन खड़गे बहुत अनुभवी नेता हैं. हालांकि राजस्थान में जो एपिसोड हुआ. मध्य प्रदेश में जो कुछ भी हुआ. वो किसी से छिपा नहीं है. कांग्रेस की नई पीढ़ी आगे बढ़कर संघर्ष करने को तैयार है. वो सत्ता में भागीदारी भी चाहती है. लेकिन अब तक अनुभवी लोगों को ही प्राथमिकता मिलती रही है. चाहे मध्य प्रदेश में कमलनाथ की बात हो या राजस्थान में अशोक गहलोत की. बगावत हर जगह हुई. यूपी जैसे सबसे बड़े राजनीतिक राज्य में कई क्षेत्रीय मगर मजबूत युवा क्षत्रप पार्टी से हट चुके हैं. चाहे आरपीएन सिंह हों, जितिन प्रसाद हों. ललितेशपत्रि त्रिपाठी हों. एमपी में सिंधिया हों या हिमाचल प्रदेश की लीडरशिप. अब मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी में युवा जोश और अनुभव का तालमेल बिठाकर चलना होगा. हालांकि राजस्थान में खड़गे गए थे दोनों पक्षों में सुलह कराने, लेकिन न तो उनकी किसी विधायक ने सुनी न ही अजय माकन की. दोनों ही नेताओं को वापस लौटना पड़ा था. ऐसे में उनके सामने ये बड़ी चुनौती मौजूद रहेगी.

जी-23 जैसे असंतुष्टों से निपटना

मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष पद चुनाव में मनीष तिवारी जैसे नेताओं ने उनका समर्थन किया, जो जी-23 गुट से आते थे. इस गुट ने खुलेआम गांधी परिवार की लीडरशिप को बदलने की मांग की थी. शशि थरूर भी इसी गुट में थे. इस गुट के कई बड़े नेताओं ने पार्टी ही छोड़ दी है. जो बचे हैं, उनमें से कुछ ने पाला बदल लिया है. लेकिन अब भी कुछ अति वरिष्ठ नेता हठ पर बैठे हैं. चूंकि अब लीडरशिप (कथित तौर पर) बदल चुकी है, तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी भी खड़गे पर है. इसके अलावा अन्य जो असंतुष्ट हैं. उन्हें भी मनाना खड़गे की जिम्मेदारी बनती है. चूंकि उनकी छवि गांधी परिवार के ‘यस मैन’ की है, तो ये चुनौती भी बड़ी बन गई है.

कांग्रेस पार्टी को जीत की पटरी पर लौटाना

कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को जीत की डगर पर लौटाने की है. राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कथित तौर पर प्रियंका गांधी की अगुवाई में पार्टी को लगातार हार झेलनी पड़ रही थी. इन हारों में मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के सामने वफादार के तौर पर खड़े रहे. लेकिन अब कमान उनके हाथ में है तो लगातार कांग्रेस को मिल रही हार के सिलसिले को तोड़ना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. वैसे, खड़गे के सामने जीत की चुनौती तो सबसे पहले खड़ी है, क्योंकि कुछ ही समय में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में पार्टी को बीजेपी का मुकाबला करना है, साथ ही अपने खोए इस्तकबाल को हासिल करने में भी पूरा जोर लगा देना है.

इन चुनौतियों के अलावा भी खड़गे के सामने खुद की उम्र से लेकर पार्टी की आर्थिक स्थिति तक को सुधारने की जिम्मेदारी है. ऐसे में क्या खड़गे इन चुनौतियों से पार पा पाएंगे, इनके जवाब तो भविष्य काल में छिपे हुए हैं.


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