पराक्रम दिवस: नेताजी के कदमों से खुश नहीं थे महात्मा गांधी, कोहिमा की लड़ाई में मांगा था जीत का आशीर्वाद
नई दिल्ली । नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम से भला कौन परिचित नहीं है। देश ही नहीं दुनिया के सभी देशों में उनकी पहचान एक निडर फौजी और देशभक्त व्यक्ति और नेता के तौर पर की जाती है। नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। हालांकि उनकी मौत पर से पर्दा आज तक नहीं उठ सका। उनके निधन को लेकर तरह-तरह की बातें सामने आती रही हैं। नेताजी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल होने वाले अग्रणी नेताओं में से एक थे। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने और भारत को आजादी दिलाने के मकसद से आजाद हिंद फौज का गठन किया था। उस वक्त उन्होंने नारा दिया था तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। इसका सीधा सा अर्थ था कि देश की आजादी को उस पर न्यौछावर होने वाले लोग चाहिएं, तभी आजादी के दर्शन हो सकेंगे। उनके इस नारे के बाद हजारों की संख्या में लोग उनसे जुड़े थे।
उनको लेकर इतिहासकारों का भी मत अलग-अलग है। कुछ का मानना है कि उन्होंने जब भारत की आजादी के मकसद से जापान और जर्मनी की मदद लेने की कोशिश की थी तभी ब्रिटिश सरकार ने उनके पीछे अपने सीक्रेट एजेंट लगा दिए थे। इनका मकसद था उन्हें किसी भी तरह से खत्म करना। उन्होंने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने ‘दिल्ली चलो का नारा दिया था। उनकी बनाई आजाद हिंद फौज ने जापान की सेना से मिलकर कई जगहों पर ब्रिटिश सेना को जबरदस्त टक्कर दी थी, जिसके बाद उन्हें वहां से पीछे हटना पड़ा था।
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बाबू ने आजाद भारत की एक अस्थायी सरकार का गठन किया था। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो ने मान्यता प्रदान की थी। इतना ही नहीं जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप उनकी बनाई देश की अस्थायी सरकार को दे दिये थे। उन्होंने ही इनका नामकरण भी किया था। 1944 में उनकी बनाई सेना ने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के ऊपर जबरदस्त हमला बोला था। इसके बाद कुछ प्रदेशों को उनके शासन से मुक्त भी करवा लिया था। 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक कोहिमा की लड़ाई चली थी। ये बेहद भयंकर लड़ाई थी जिसमें जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था। 6 जुलाई 1944 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी के नाम रंगून रेडियो स्टेशन से एक प्रसारण जारी किया था। इसमें उन्होंने अपनी जीत के लिए महात्मा गांधी से आशीर्वाद मांगा था। हालांकि महात्मा गांधी और बोस के बीच मनमुटाव की खबरें भी जगजाहिर हैं। महात्मा गांधी उनके द्वारा उठाए कदमों से संतुष्ट नहीं थे।
जहां तक नेताजी की मौत की बात है तो इसको लेकर आज भी विवाद बरकरार है। जापान में 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस मनाया जाता है। वहीं उनके परिजनों का मानना है कि उनकी मौत 1945 में नहीं हुई। उनके मुताबिक एयर क्रेश की घटना के बाद उन्हें नजरबंद कर लिया गया था। आपको बता दें कि उनकी मौत से जुड़े कुछ ही दस्तावेज आज तक सार्वजनिक हो सके हैं। 23 जनवरी 2021 को भारत सरकार ने ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला लिया है।