लॉकडाउन: हजारों प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा, सोशल डिस्टेंसिग तार-तार, कौन है इसका गुनहगार?

लॉकडाउन: हजारों प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा, सोशल डिस्टेंसिग तार-तार, कौन है इसका गुनहगार?
हाइलाइट्स
  • देशव्यापी लॉकडाउन के बीच दिल्ली के आनंद विहार और धौला कुआं में प्रवासी मजदूरों का उमड़ा हुजूम
  • इन प्रवासी मजदूरों में ज्यादातर यूपी के तमाम हिस्सों के हैं, उन्हें ले जाने के लिए यूपी सरकार ने बसें लगाई हैं
  • मजदूरों के हुजूम से न सिर्फ उनके कोरोना वायरस के चपेट में आने की आशंका बढ़ी है, बल्कि गांवों में भी खतरा बढ़ चुका है
  • मजदूरों के रहने, खाने, पीने, इलाज की व्यवस्था करने के बजाय उन्हें बिना जांच के लिए ले जाने से बढ़ा खतरा

नई दिल्ली
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन सिस्टम की नाकाबिलयत की भेंट चढ़ता दिख रहा है। दिल्ली-एनसीआर में जगह-जगह मजदूरों के सामूहिक पलायन की खतरनाक तस्वीरें आ रही हैं। आनंद विहार और धौला कुआं में हजारों प्रवासी मजदूर इस आस में उमड़े हुए हैं कि उनके लिए बसें चलेंगी और वे अपने-अपने घर पहुंचेंगे। ये तस्वीरें लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही इसके मकसद में नाकामी की मुनादी कर रही हैं। ये तस्वीरें डराती हैं। सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) तार-तार हो चुकी है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इन खतरनाक मंजरों के लिए कौन है जिम्मेदार, कौन हैं मजदूरों के पलायन के गुनहगार?

सरकारों की नाकामी, अफवाहों के भेंट चढ़ा लॉकडाउन
दिल्ली-एनसीआर की इन डरावनी तस्वीरों की जिम्मेदारी से न तो केंद्र सरकार बच सकती है, न दिल्ली सरकार और न ही यूपी सरकार। यह समूचे सिस्टम की सामूहिक नाकामी है। यह सरकारों के बीच सामंजस्य की कमी का भी बेपर्दा होना है। इन सबके ऊपर अफवाहों ने आग में घी डालने का काम किया। इन सबने मिलकर लॉकडाउन के उद्देश्यों की ही पूर्णाहूति दे दी।

भूख, गरीबी, मजबूरी और अफवाह
लॉकडाउन के बाद इन मजदूरों के सामने संकट आ गया कि इस दौरान कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे? धंधा-पानी, रोजगार सब ठप। कमरे का किराया कैसे देंगे? इन्हीं सवालों और आशंकाओं के बीच पहले तो मजदूरों ने पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने-अपने घरों के लिए कूच किया। इस बीच शुक्रवार को ही अफवाहें फैल गईं कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बसें मिल रही हैं जो यूपी के तमाम शहरों को जा रही हैं। इसके बाद तो मजदूरों का रेला ही उमड़ पड़ा बॉर्डर पर। सोशल डिस्टेंसिंग हवा हो गई। मजदूरों के साथ-साथ उस भीड़ को संभालने में लगे पुलिसकर्मियों के भी कोरोना वायरस के चपेट में आने का खतरा बढ़ चुका है। इन मजदूरों में कुछ वैसे भी लोग हैं, जिन्हें लगता है कि शहर में उन्हें कोरोना वायरस का खतरा है लेकिन वे अगर गांव पहुंच गए तो इससे बच जाएंगे।

कोरोना वायरस लॉकडाउन: पुलिसकर्मी भोजन, पानी के साथ प्रवासी श्रमिकों की कर रहे हैं मदद

कोरोना वायरस लॉकडाउन: पुलिसकर्मी भोजन, पानी के साथ प्रवासी श्रमिकों की कर रहे हैं मदददेशव्यापी लॉकडाउन के बीच पुलिसकर्मी बस स्टॉप और रेलवे स्टेशनों पर भोजन और पानी के साथ प्रवासी श्रमिकों की मदद कर रहे हैं। कोरोना वायरस (Covid-19) संकट के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार के सैकड़ों प्रवासी श्रमिक जोखिम उठाकर अपने मूल स्थानों तक पहुँचने के लिए सैकड़ों मील पैदल चलने को तैयार हैं। चारबाग बस स्टेशन पर जहां सीमित बसें चल रही हैं, हरियाणा, राजस्थान के सैकड़ों प्रवासी श्रमिक हैं। वे अपने गाँव जाने को तैयार हैं, भले ही इसका मतलब सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना हो। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी दिल्ली सीमा से प्रवासी श्रमिकों के लिए उनके गाँव तक बसों की व्यवस्था की है।

क्यों यह मदद नहीं, मजदूरों को मरने के लिए छोड़ने जैसा
शुक्रवार को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर मजदूरों को हुजूम इस उम्मीद में उमड़ना शुरू हुआ कि वहां से उन्हें अपने-अपने शहरों के लिए बसें मिलेंगी। आनन-फानन में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि मजदूर कहीं नहीं जाएंगे, उनके खाने-पीने, रहने का इंतजाम हम करेंगे। मीडिया में मजदूरों के पलायन की खबरें सुर्खियां बंटोरने लगीं। सोशल मीडिया में ये तस्वीरें वायरल हो गईं। शाम होते-होते यूपी सरकार ने बसें भेजने का ऐलान कर दिया। दिल्ली सरकार ने भी बसें लगा दीं। अब तक कई मजदूरों को उनके-उनके घर भेजा भी जा चुका है, बिना किसी स्क्रीनिंग के, बिना किसी जांच के। मजदूरों को बसों से पहुंचाने के पीछे नीयत चाहे जो हो, लेकिन हकीकत यही है कि यह मदद के नाम पर उन्हें मरने के लिए छोड़ने जैसा है। क्या दिल्ली सरकार या यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार इस बात की गारंटी लेगी कि इन मजदूरों में से किसी में कोरोना का संक्रमण नहीं था। इसने ग्रामीण भारत में भी कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया है, जो अब तक बहुत हद तक इस महामारी से अछूता था।