रोचक: लैब में बन सकता है सोना? जानें हकीकत

रोचक: लैब में बन सकता है सोना? जानें हकीकत
सोना एक कीमती धातु है। इसमें एक खास चमक पाई जाती है जिस कारण इसका इस्तेमाल आभूषणों में होता है। सोना जमीन के अंदर पाया जाता है। वैसे तो सोने को लैब में भी बनाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए न्यूक्लियर रिऐक्शन प्रक्रिया की जरूरत पड़ेगी। यह प्रक्रिया काफी जटिल होती है। ऐसे में अन्य तत्वों से सोना बनाया तो जा सकता है लेकिन यह काफी महंगा पड़ेगा। यह इतना महंगा पड़ेगा कि बेचने पर आपको उतना भी पैसा नहीं मिल पाएगा जितना खर्च हो जाएगा। न्यूक्लियर रिऐक्शन जैसी प्रक्रिया कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। उसके लिए न्यूक्लियर रिऐक्टर स्थापित करना होगा और अन्य सामग्री जुटानी होगी। खैर आइए आज जानते हैं कि न्यूक्लियर रिऐक्टर में आखिर सोना कैसे बनाया जा सकता है।

पहली मैटर या पदार्थ की बनावट को समझें

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सभी पदार्थ या दुनिया की चीजें परमाणुओं से मिलकर बनी होती हैं। परमाणुओं में एक न्यूक्लियस होता है जहां प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक दूसरे से जुड़े होते हैं और बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉन भी न्यूक्लियस से जुड़े होते हैं। एक चीज साफ तौर पर समझ लें कि एक एटम की प्रकृति बहुत हद तक उसके न्यूक्लियस में पाए जाने वाले प्रोटॉन पर निर्भर करती है। मामला कुछ इस तरह है। परमाणुओं का भौतिक और रासायनिक गुण उसमें मौजूद इलेक्ट्रॉनों की संख्या और आकारों से तय होता है। वहीं इलेक्ट्रॉनों की संख्या और आकार न्यूक्लियस में मौजूद प्रोटॉन की संख्या से तय होते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि किसी परमाणु की प्रकृति बहुत हद तक प्रोटॉन से संबंधित होती है। जिन परमाणुओं के न्यूक्लियस में प्रोटॉन की संख्या बराबर होती हैं, वे सभी करीब-करीब एक ही तरह का व्यवहार करते हैं।

सोने में प्रोटॉन

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सोना एक ऐसा रासायनिक तत्व है जिसके हर परमाणु के न्यूक्लियस में 79 प्रोटॉन होते हैं। वह हर परमाणु जिसमें 79 प्रोटॉन हो, वह सोने का परमाणु है और सोने के सभी परमाणु रासायनिक रूप से एक ही तरह का व्यवहार करते हैं। सैद्धांतिक तौर पर अगर हम 79 प्रोटॉन और न्यूक्लियस को स्थिर बनाने के लिए पर्याप्त संख्या में न्यूट्रॉन का बंदोबस्त कर लें तो हम सोना बना सकते हैं।

​मरकरी या प्लैटिनम से सोना

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मरकरी के परमाणु में 80 प्रोटॉन होते हैं और प्लैटिनम के परमाणु में 78। अगर हम मरकरी से एक परमाणु को हटाने और प्लैटिनम में एक परमाणु जोड़ने में कामयाब हो जाएं तो हम सोना बना सकते हैं। वैसे सुनने में यह प्रक्रिया काफी आसान लग रही है लेकिन प्रैक्टिस में काफी मुश्किल है। किसी न्यूक्लियस से प्रोटॉन हटाना या उसमें प्रोटॉन जोड़ने की प्रक्रिया न्यूक्लियर रिऐक्शन की प्रक्रिया होती है और न्यूक्लियर रिऐक्शन के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है।

न्यूक्लियस को बदलना काफी मुश्किल

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काफी स्थिर परमाणु के न्यूक्लियस का बंधन काफी मजबूत होता है, इसलिए किसी न्यूक्लियस से परमाणु निकालना या उसमें परमाणु जोड़ना काफी मुश्किल होता है। न्यूक्लियर रिऐक्शन के लिए काफी हाई एनर्जी पार्टिकल्स से न्यूक्लियस पर बमबारी करनी होती है। 1941 में तीन वैज्ञानिकों ने मरकरी या पारा पर न्यूट्रॉन की बमबारी की थी। इसकी मदद से वह सोना बनाने में कामयाब हो पाए थे।

इसलिए मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी

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सोना बनाने के लिए पहले एक न्यूक्लियर रिऐक्टर बनाना होगा। उसके बाद मरकरी या प्लैटिनम पर न्यूट्रॉन की बमबारी करनी होगी। इतनी मशक्कत के बाद बहुत कम मात्रा में सोना बनेगा। वह भी सोना काफी प्रदूषित होगा क्योंकि वह रेडियोऐक्टिव होगा। रेडियोऐक्टिव सोने से गैर रेडियोऐक्टिव सोने को अलग करना करीब-करीब नामुमकिन है। इसकी वजह यह है कि इस पर काफी खर्च करना पड़ जाएगा जिसे बेचकर भी आप उतना नहीं कमा पाएंगे। हो सकता है कि भविष्य में कोई तकनीक ऐसी आए जिसकी मदद से यह पूरी प्रक्रिया आसान और सस्ती हो जाए तो इंसान भी किसी अन्य तत्व से सोना बना सकता है।


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