सशक्त होती भारत की छवि के बीच जानें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूरोप यात्रा के क्या हैं मायने

- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूरोप के तीन देशों जर्मनी डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा पर रवाना होने वाले हैं। इस यात्रा पर दुनिया भर की नजरें टिकी हुई हैं। जानें पीएम मोदी की इस यूरोप यात्रा के क्या हैं मायने…
नई दिल्ली। ‘भारत के बिना किसी भी बड़ी समस्या का हल नहीं किया जा सकता है।’ यही एक बयान काफी है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूरोप के तीन देशों जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा का महत्व और भारत की बीते कुछ वर्ष में सशक्त हुई वैश्विक छवि के बारे में बताने को। यह बयान है, टोबियास लिंडनर का जो जर्मनी के विदेश विभाग में मंत्री हैं। बीते सप्ताह दिल्ली में लिंडनर ने जब कहा कि भारत एक बहुत महत्वपूर्ण साझीदार है। हम उसके साथ तकनीक, शिक्षा, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे अहम मुद्दों पर सहयोग की आकांक्षा करते हैं, तो बिल्कुल साफ था कि पीएम की इस यूरोप यात्रा पर रूस-यूक्रेन युद्ध का साया दूर-दूर तक नहीं है। आइए समझें कि पीएम की इस यूरोप यात्रा के क्या मायने हैं…
जर्मनी के चांसलर ने भी दिए थे संकेत
लिंडनर के बाद एक और वैश्विक नेता की टिप्पणी पर गौर कीजिए। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज के विदेश और सुरक्षा नीति सलाहकार जेम्स प्लाटनर बीते माह भारत के दौरे पर थे। यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत पर दबाव बनाने की बात पर उन्होंने दो टूक कहा, ‘जर्मनी, यूक्रेन में युद्ध पर भारत को उपदेश नहीं देगा। हम यहां भाषण देने या मांग करने नहीं आए हैं।’
यूरोपीय नेताओं के भारत आने का सिलसिला जारी
बीते कुछ समय से यूरोपीय नेताओं के एक के बाद एक भारत आने का सिलसिला जारी है लेकिन कहीं से भी यूक्रेन युद्ध पर किसी प्रकार के दबाव की बात सामने नहीं आई है। यही भारत की नई विदेश नीति है। विदेश मंत्री ने बीते माह अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन को मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों पर जब दो टूक जवाब दिया तो उससे स्पष्ट था कि अब भारत सिर्फ सुनने वाला राष्ट्र नहीं है। अपनी बात स्पष्टता और बिना झिझक सुनाने वाला देश भी है।
द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने को तरजीह
जबरन एक नैरेटिव यूक्रेन को लेकर पेश करने का प्रयास किया गया लेकिन भारत की मजबूत तटस्थ छवि के कारण यह सफल नहीं रहा। बीते कुछ समय में भारत आने वाले यूरोप के बड़े नेताओं में ब्रिटेन के पीएम बोरिस जानसन और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वान डर लिएन शामिल हैं। दोनों ही ने व्यापारिक और तकनीकी साझीदारी के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने को ही तवज्जो दी।
वैश्विक स्तर पर नई छवि गढ़ने का प्रयास
इससे साफ है कि भारत की वैश्विक स्तर पर एक नई छवि गढ़ने के केंद्र सरकार के प्रयासों में यह यात्रा एक अहम पड़ाव है। तीन देश, 65 घंटे और 25 बैठकें। हमेशा की तरह एक बार फिर पीएम की विदेश यात्रा का कार्यक्रम अतिव्यस्त है। यूरोप यात्रा में वह सात देशों के आठ वैश्विक नेताओं के साथ तो विचार विमर्श करेंगे ही, 50 प्रमुख उद्यमियों से भी मुलाकात करेंगे।
यूरोपीय संघ और जर्मनी
- यूरोपीय संघ के लिए भारत एक अहम रणनीतिक और तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।
- वर्ष 2020 में यूरोपीय संघ और भारत के बीच 66.4 बिलियन डालर यानी लगभग 5,081 अरब रुपये की वस्तुओं का व्यापार हुआ।
- यह जानना अहम है कि यूरोपीय संघ के लिए अमेरिका के बाद भारत ही दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।
- पीएम की यात्रा जर्मनी से आरंभ होगी और भारत की यूरोपीय नीति में यह देश एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वहां पीएम मोदी जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज से पहली बार मिलेंगे।
- जर्मनी को भारत के लिए आर्थिक और तकनीक के क्षेत्र में अधिक सहायक माना जाता है जबकि पीएम की यात्रा के अंतिम पड़ाव फ्रांस का महत्व रणनीतिक साझीदार के रूप मंें अधिक है।
- जर्मनी के साथ भारत के ग्रीन इंफ्रा परियोजनाओं में आगे बढ़ने की भी संभावना काफी है क्योंकि दोनों देशों के बीच जर्मनी इंडो-पैसिफिक नीति है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जर्मनी की रुचि और बढ़ता दखल भारत के लिए अच्छा है। एक आर्थिक शक्ति होने के कारण जर्मनी का काफी प्रभाव है।
- एक और अहम बात यह है कि भारत हमेशा से यही चाहता है कि यूरोपीय संघ विश्व में एक आधार स्तंभ की तरह मजबूत रहे।
नार्डिक देशों से दोस्ती
– नार्डिक देश यानी यूरोप के उत्तर में बसे देशों के साथ भारत के रिश्ते करीबी रहे हैं। डेनमार्क, स्वीडन, नार्वे, फिनलैंड और आइसलैंड इस क्षेत्र के प्रमुख देश हैं।
– डेनमार्क के साथ तो हमारे प्रगाढ़ रिश्ते हैं और कोरोना की दूसरी लहर के बाद भारत आने वाली पहली विदेशी राष्ट्राध्यक्ष डेनमार्क की पीएम मैट फ्रेडरिक्सन ही थीं।
– डेनमार्क के साथ भारत का एक हरित समझौता भी है जिसके अंतर्गत दोनों देश व्यापार व तकनीक के क्षेत्र में हरित प्रयासों को ध्यान में रख काम करते हैं।
– इस यात्रा में फ्रेडरिक्सन ने पीएम मोदी को आधिकारिक तौर पर आमंत्रित किया है और वह द्वितीय भारत-नार्डिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। वहां उनकी भेंट फिनलैंड की पीएम साना मैरिन, स्वीडन की पीएम मैग्डालेना एंडरसन सहित नार्वे और आइसलैंड के पीएम से भी होगी।
-यह देश इसलिए अहम हैं क्योंकि पांच नार्डिक देशों में से चार देश भारत के शीर्ष 20 व्यापारिक साझीदारों में शामिल हैं। स्वीडन नौवें, फिनलैंड 10वें, डेनमार्क 12वेंें और नार्वे 14वें स्थान पर है।
– नार्डिक देश नवीकरणीय, उच्च स्तर की और स्वच्छ ऊर्जा के लिए जाने जाते हैं।
– इन देशों, खासकर डेनमार्क से संबंधों का एक और अहम कारण है आर्कटिक क्षेत्र। यह क्षेत्र हाइड्रोकार्बन और खनिजों से भरपूर है और भारत इसमें रुचि रखता है। इसी संबंध में बीते वर्ष भारत ने अपनी आर्कटिक नीति का एक मसौदा भी जारी किया था।
फ्रांस की बात
- यूरोप में भारत के लिए जर्मनी की तरह ही फ्रांस भी बेहद महत्वपूर्ण दोस्त है। वह भारत का रणनीतिक साझीदार है। दोनों देशों के बीच संबंध इतने दोस्ताना रहे हैं कि 2019 में हडसन इंस्टीट्यूट के एक शोधार्थी ने फ्रांस को भारत का नया ‘बेस्ट फ्रेंड’ बताया था।
- रणनीतिक पहलू के साथ व्यापारिक साझीदारी भी अहम है और फ्रांस के साथ भारत आतंकवाद व जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार रहा है।
- रक्षा क्षेत्र में भी फ्रांस के साथ भारत का करीब 70 वर्ष पुराना रिश्ता है और अन्य साजो सामान के साथ जगुआर और मिराज-2000 लड़ाकू विमान इसी का हिस्सा रहे हैं।
- अब यह रक्षा संबंध राफेल के साथ नए स्तर पर पहुंच चुके हैं। फ्रांस में इमैनुएल मैक्रों एक बार फिर राष्ट्रपति चुने गए हैं। पीएम मोदी के साथ उनकी पहले भी मुलाकातें हो चुकी हैं। दोनों वैश्विक नेता बातचीत और रिश्तों को नई दिशा देने में सहज हैं।