जयपुर। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने शनिवार को कहा कि निचली और उच्च न्यायालयों में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मंत्री ने कहा कि मातृभाषा को अंग्रेजी से कम नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह इस विचार से सहमत नहीं हैं कि एक वकील को अधिक सम्मान, मामले या फीस केवल इसलिए मिलनी चाहिए, क्योंकि वह अंग्रेजी में अधिक बोलता है।
न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए
समाचार एजेंसी प्रेट्र के मुताबिक, किरण रिजिजू ने कहा कि कोई भी अदालत केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए। न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए। रिजिजू ने जयपुर में 18वें अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र में कहा कि सुप्रीम कोर्ट में तर्क और निर्णय अंग्रेजी में होते हैं, लेकिन हमारी दृष्टि है कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
संसद सत्र के दौरान 71 अधिनियम होंगे निरस्त
उन्होंने कहा कि सोमवार से शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान करीब 71 अधिनियमों को निरस्त किया जाएगा। देश में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे मामले पांच करोड़ होने जा रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका और सरकार के बीच समन्वय से लंबित मामलों को कम किया जा सकता है। रिजिजू ने कहा कि लोगों को न्याय दिलाने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए सरकार और न्यायपालिका के बीच अच्छा तालमेल होना चाहिए।
गत दिनों किरण रिजिजू ने कहा था कि देश की अदालतों में करीब पांच करोड़ मामले लंबित हैं। यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई तो मुकदमों की संख्या में और वृद्धि होगी। औरंगाबाद में महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एमएनएलयू) के पहले दीक्षा समारोह में केंद्रीय मंत्री ने वकीलों की फीस वहन करने में आम लोगों की असमर्थता को लेकर चिंता भी जताई। देश में लंबित मुकदमों की संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए रिजिजू ने कहा कि जिस समय मैंने कानून मंत्री का पद संभाला था, उस समय लंबित मुकदमों की संख्या चार करोड़ से नीचे थी। आज यह पांच करोड़ के करीब है। यह हम सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय है।