नई दिल्ली । केरल हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के तलाक के अधिकार पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम पति का पत्नियों के बीच भेदभाव करना या बराबरी का व्यवहार न करना तलाक का वैध आधार है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि दूसरी शादी के बाद पहली पत्नी के साथ वैवाहिक दायित्वों को निभाने से इन्कार करना कुरान के आदेशों के उल्लंघन के समान है जो पति द्वारा एक से अधिक विवाह करने पर पत्नियों के साथ समान व्यवहार करने का आदेश देता है। कोर्ट ने महिला की तलाक की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ता इस आधार पर भी तलाक की डिक्री प्राप्त करने की हकदार है।यह अहम फैसला जस्टिस ए. मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस सोफी थामस की खंडपीठ ने दिसंबर माह की शुरुआत में सुनाया। फैसला बहुत महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम वाला है।
कहा, पहली पत्नी के साथ वैवाहिक दायित्वों को निभाने से इन्कार कुरान के आदेशों के उल्लंघन के समान
मालूम हो कि मुसलमानों में चार शादियों की इजाजत है, लेकिन कुरान कहती है कि अगर पति एक से ज्यादा पत्नियां रखता है तो वह सभी पत्नियों के साथ बराबरी का व्यवहार करेगा। मौजूदा मामले में महिला ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत याचिका दाखिल कर पति से तलाक मांगा था। परिवार अदालत से याचिका खारिज होने के बाद महिला ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम की धारा 2(2), 2(4) और 2(8) को तलाक का आधार बनाया गया था
मुसलमानों में 4 शादियों की इजाजत है, लेकिन कुरान सभी पत्नियों से बराबरी के व्यवहार को कहती है
धारा 2(2) कहती है कि पत्नी तलाक की हकदार है अगर पति पत्नी की उपेक्षा करता है या दो साल तक भरण पोषण करने में नाकाम रहता है। धारा 2(4) कहती है कि जब पति बिना किसी उचित कारण के तीन साल तक वैवाहिक दायित्वों के निर्वहन में नाकाम रहता है। धारा 2(8)(ए) और (एफ) कहती है कि पति पत्नी के साथ क्रूरता का व्यवहार करता है। (ए) आदतन पत्नी पर हमला करता है और अपने क्रूर व्यवहार से उसकी जिंदगी दयनीय बना देता है, भले ही ऐसा आचरण शारीरिक दुर्व्यवहार के समान न हो। उपधारा (एफ) कहती है कि यदि पति एक से अधिक पत्नियां रखता है और कुरान के आदेशानुसार उनके साथ समान व्यवहार नहीं करता। याचिकाकर्ता पत्नी ने कानून में दिए गए उपरोक्त आधारों पर पति से तलाक मांगा था। हालांकि एक से अधिक पत्नी होने पर कुरान के आदेशानुसार सभी के साथ समान व्यवहार को महिला ने विशेष तौर पर याचिका में आधार नहीं बनाया था, लेकिन हाई कोर्ट ने उस पर विचार किया और उसे स्वीकार भी किया।
यह था मामला
याचिकाकर्ता महिला की चार अगस्त, 1991 को शादी हुई थी। विवाह के बाद उनके तीन बच्चे हुए। पति ने विदेश में रहने के दौरान दूसरी शादी कर ली। पत्नी ने वैवाहिक दायित्वों का निर्वाह नहीं करने के आधार पर पति से तलाक मांगा था। उसका कहना था कि 21 फरवरी, 2014 से प्रतिवादी पति ने उससे मिलना बंद कर दिया था। पति की ओर से इस बात से इन्कार नहीं किया गया बल्कि कहा गया कि वह दूसरी शादी को मजबूर हुआ क्योंकि याचिकाकर्ता उसकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में विफल रही। लेकिन कोर्ट ने पति की दलील नहीं मानी और कहा कि इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इस विवाह से तीन बच्चे हुए जिनमें से दो ने शादी कर ली है।
प्रतिवादी इस बात का कोई सुबूत नहीं दे पाया कि वह याचिकाकर्ता के साथ रहने को तैयार था। इसका मतलब है कि वह वैवाहिक दायित्वों को निभाने में विफल रहा। कोर्ट ने कहा कि तलाक की यह याचिका 2019 में दाखिल हुई और इसके दाखिल होने के पांच साल पहले से वे अलग रह रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में धारा 2(4) के तहत तलाक का आधार बनता है।