जस्टिस उदय उमेश ललित देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त, कई महत्‍वपूर्ण मामलों में सुना चुके हैं फैसला

जस्टिस उदय उमेश ललित देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त, कई महत्‍वपूर्ण मामलों में सुना चुके हैं फैसला
  • जस्टिस उदय उमेश ललित (Justice Uday Umesh Lalit) देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए हैं। इस बारे में नोटिफ‍िकेशन जारी किया गया है। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित कई महत्‍वपूर्ण फैसले सुना चुके हैं।

नई दिल्‍ली। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित (Justice Uday Umesh Lalit) देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए हैं। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे में नोटिफ‍िकेशन जारी कर दिया गया है। एनवी रमना (NV Ramana) ने गुरुवार को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस यूयू ललित (Justice Uday Umesh Lalit) के नाम की संस्तुति केंद्रीय कानून मंत्री को भेजी थी। जस्टिस यूयू ललित का कार्यकाल तीन महीने से कम का होगा। वह 8 नवंबर को 65 साल के हो जाएंगे।

पीटीआइ के मुताबिक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा नियुक्ति वारंट पर हस्ताक्षर करने के बाद न्यायमूर्ति यूयू ललित को 49वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। एनवी रमना के पद छोड़ने के बाद वह 27 अगस्त को पदभार ग्रहण करेंगे। नोटिफ‍िकेशन में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 124 के खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित को 27 अगस्‍त से प्रभावी रूप से देश के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर रहे हैं।

जस्टिस यूयू ललित इस पद पर नियुक्‍त होने वाले दूसरे व्‍यक्ति हैं जिनको बार से सीधे शीर्ष अदालत की बेंच में पदोन्नत किया। यूयू ललित से पहले जस्टिस एसएम सीकरी पहले वकील थे जो 1971 में देश के 13वें मुख्य न्यायाधीश बने थे। 9 नवंबर 1957 को जन्‍मे यूयू ललित ने साल 1983 में वकालत शुरू की थी। उन्होंने 1985 तक बांबे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की… फ‍िर जनवरी 1986 में दिल्ली में वकालत शुरू की। उन्‍हें 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था।

जस्टिस यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच में शामिल रहे जिसने अगस्त 2017 में तीन तलाक को गैरकानूनी, असंवैधानिक ठहराया था। यही नहीं यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने त्रावणकोर के तत्कालीन शाही परिवार को केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। यही नहीं उनकी अगुवाई वाली पीठ ने ही पाक्सो कानून के तहत मुंबई हाईकोर्ट के ‘त्वचा से त्वचा’ संपर्क से संबंधित विवादित फैसले को खारिज कर दिया था।


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