एनडीए की सेहत पर भी असर डालेंगे झारखंड चुनाव परिणाम, सत्ता न मिलने पर सहयोगी बढ़ाएंगे दबाव
खास बातें
- लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को दो राज्यों में उम्मीदों के अनुरूप सफलता हाथ नहीं लगी
- भाजपा के पास झारखंड विधानसभा चुनाव में अनुच्छेद 370 और राम मंदिर महत्वपूर्ण मुद्दे हैं
- पार्टी अगर इस सूबे में अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई तो राजग के कुनबे में खटपट बढने की संभावना है
राजग की मजबूती कायम रखने केलिए झारखंड विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम है। पार्टी अगर इस सूबे में अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई तो राजग के कुनबे में खटपट बढने की संभावना है। सहयोगी दल भाजपा पर दबाव बढ़ाने का मौका नहीं गंवाएंगे।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के बाद राजग से शिवसेना के बाद आजसू की विदाई हुई है, जबकि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी से भाजपा की खटास बढ़ी है। बिहार में जदयू और भाजपा के रिश्ते कभी नरम तो कभी गरम रुख अख्तियार करते रहे हैं।
दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को दो राज्यों में उम्मीदों के अनुरूप सफलता हाथ नहीं लगी। वह भी तब जब भाजपा मोदी सरकार के सबसे बड़े राष्ट्रवादी एजेंडे में शामिल अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद चुनाव मैदान में उतरी थी।
हरियाणा में बहुमत से चूकी भाजपा को जहां जेजेपी से गठबंधन करना पड़ा, वहीं महाराष्ट्र में पहले केमुकाबले कम सीटें जीतने के कारण पार्टी ने न सिर्फ अपने सबसे पुराने साथी शिवसेना को खोया, बल्कि राज्य की सत्ता भी शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन को जाती दिख रही है।
बिहार में पार्टी की सहयोगी जदयू भाजपा पर दबाव बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। जबकि इसके तत्काल बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में पंजाब में पार्टी की सहयोगी अकाली दल तेवर दिखाने से नहीं चूकेगी।
गौरतलब है कि हरियाणा में अपने इकलौते विधायक को भाजपा में शामिल करने से अकाली दल बेहद नाराज है। जबकि मनमाफिक सीटें नहीं मिलने से बिहार में पार्टी की सहयोगी झारखंड में अकेले चुनाव मैदान में उतर गई है।
रूठ-छूट रहे छोटे क्षेत्रीय दल
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