जनप्रतिनिधियों का उदासीन रवैया गंभीर चिंता का विषय

जनप्रतिनिधियों का उदासीन रवैया गंभीर चिंता का विषय

[संपादकीय] केंद्र व प्रदेश में भाजपा सत्ता में है। दोनों सरकारों की दूसरी पारी चल रही है। दोनों सरकार सही दिशा में कार्य करते हुए जनता की अपेक्षाओं पर लगभग खरा भी उतर रही है। मोदी जी के नेत्रत्व में केंद्र सरकार व योगी जी के नेत्रत्व में योगी सरकार अपनी-अपनी करिश्माई छवि बनाने में सफल रही है। आम जनमानस में मोदी जी व योगी जी के प्रति आदर व सम्मान का भाव है। हाँ वो बात दीगर है कि सरकार में भूमिका निभाने वाले कुछ जनप्रतिनिधि जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहे है।

2017 में प्रदेश में भाजपा ने सत्ता में वापसी करने से पूर्व लगभग 15 वर्षों का वनवास भुगता। 8 मार्च 2002 में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 19 मार्च 2017 को भाजपा मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ ने शपथ ग्रहण की। 15 वर्षों के लंबे अंतराल में ऐसा भी समय आया जब भाजपा प्रदेश में न तीन में गिनी जाती थी और न तेरह में।

निश्चित रूप से प्रदेश में सत्ता वापसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की करिश्माई छवि के साथ-साथ भाजपा संगठन की कड़ी मेहनत रही। लेकिन इसके साथ-साथ एक वो फैक्टर भी है जो कभी खुलकर सामने तो नहीं आया लेकिन बैकग्राउंड में रहते हुए भाजपा की बैटिंग के लिए अनुकूल पिच तैयार करता रहा। हर शहर, हर कस्बा और गाँव-गाँव बिना किसी शोर-शराबे व बिना किसी दिखावे के कार्यकर्ताओं को गढ़ता रहा। समाज को जाग्रत करता रहा। यह वो फैक्टर है जिसने समाज में भाजपा के अनुकूल माहोल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। यह फैक्टर प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहते हुए बिना अपेक्षाओं के अपना कार्य करता रहा।

भाजपा में जमीन से जुड़े लोग इस फैक्टर से भली-भांति परिचित है कि वो कौन है क्या संगठन है? या संगठनों का समूह है, जिसने उनकी बैटिंग के लिए अनुकूल पिच तैयार की और लगातार बिना किन्ही अपेक्षाओं के कर रहे है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है कि भाजपा के ऐसे जनप्रतिनिधि उन लोगों के मान-सम्मान में कोई कमी भी नहीं छोड़ते।

वर्तमान में भाजपा में एक तबका या यूं कह लीजिए कि कुछ जनप्रतिनिधियों का तबका उनके लिए बैकग्राउंड में कार्य करने वाले फैक्टर से अनजान है या फिर जानबूझकर अनजान बनने का प्रयास करता है और पूरी तरह असहयोग की रणनीति अपना रहा है। तब हद हो जाती जब बैकग्राउंड में कार्य करने वाले लोग संगठन के सुचारु रूप से संचालन के लिए वर्ष में एक-आध बार जनप्रतिनिधियों से सहयोग के लिए उनसे मिलने का समय मांगते है और जनप्रतिनिधि उन्हे मिलने तक का समय देने में आना-कानी करते है।

निश्चित रूप से यह भाजपा के लिए एक गंभीर और चिंतनीय विषय है। अब यह भाजपा को तय करना है कि वो ऐसे जनप्रतिनिधियों को नियंत्रित करे या फिर उन्हे खुला छोड़ कर बैकग्राउंड में निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले लोगों की उपेक्षा करने दे।

लेखक के बारे में: लेखक को लेखन क्षेत्र में 15 वर्षों का अनुभव है। वर्तमान में सामाजिक-धार्मिक क्षेत्र में कार्य करने वाले एक संगठन में जिला अध्यक्ष का दायित्व निर्वहन कर रहे है।


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