भारतीय लड़ाकू हेलीकॉप्टर अपाचे व रुद्र की तोड़ खोज रहा है पाक, तुर्की रक्षा सौदे में अमेरिकी अड़ंगे के बाद चीन की शरण में इमरान
इस्लामाबाद । अमेरिका की सख्त आपत्ति के चलते पाकिस्तान, तुर्की में निर्मित टी-129 हेलीकॉप्टर पाने से वंचित रह गया। पाकिस्तान और तुर्की के मध्य हुए इस रक्षा सौदे के रद होने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को मजबूर होकर चीन की शरण में जाना पड़ा। आखिर तुर्की और पाकिस्तान के इस रक्षा सौदे में अमेरिका की क्या दिलचस्पी है। अमेरिका ने इस सौदे पर क्यों की आपत्ति। पाकिस्तान के सैन्य बेड़े में शामिल होने वाले इस चीनी हेलीकॉप्टर की क्या है खासियत। क्या चीनी हेलीकॉप्टर भारतीय रक्षा प्रणाली को प्रभावित करेगा। क्या पाकिस्तान, भारतीय लड़ाकू हेलीकॉप्टर अपाचे और रुद्र की तोड़ खोजन में जुटा है।
चीन का जेड 10 एमआइ से उम्दा है भारत का रुद्र और अपाचे
- तुर्की का टी-129 लड़ाकू हेलीकॉप्टर अपनी उम्दा खूबियों के कारण पाकिस्तानी सेना को खूब रास आ रहे थे। यह हेलीकॉप्टर दिन और रात दोनों पारियों में बेहतरीन जासूसी कर सकता है। इसमें प्रयोग की गई तकनीक सर्वे के लिहाज से भी काफी उपयोगी है। उधर, पाकिस्तान को मिलने जा रहे चीनी लड़ाकू हेलीकॉप्टर जेड-10 एमई बुनियादी तौर पर टैंक को तबाह करने और हवा में युद्ध के लिए इस्तेमाल होता है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना चीन के जेड-10 एमई हेलीकॉप्टर को सीमित संख्या में खरीदेगी।
- प्रो. पंत का कहना है कि पाकिस्तान अपने शस्त्रों की खरीद के समय भारत के मद्देनजर ही अपनी रणनीति तय करता है। उन्होंने कहा कि भारत वायु सेना के पास मौजूद लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की बेहतरीन सीरीज है। भारतीय वायुसेना के पास सबसे दमदार स्वदेशी लड़ाकू हेलीकॉप्टर रुद्र है। यह चीन के जेड-19 को मात देने में सक्षम है। भारतीय वायु सेना ने इस हेलीकॉप्टर को लद्दाख में तैनात किया है। इसके अलावा भारत के पास एच-64 ई अपाचे हेलकॉप्टर हैं। अपाचे दुनिया के सबसे हाईटेक मल्टीपर्पस फाइटर हेलीकाप्टरों में से एक है। इसे अमेरिकी सेना की तरफ से उड़ाया जाता है। चिनूक एक मल्टीपर्पस वर्टिकल लिफ्ट हेलीकॉप्टर है। इसका उपयोग मुख्य रूप से सैनिकों, तोपखाने, उपकरण और ईंधन के परिवहन के लिए किया जाता है।
टी-129 लड़ाकू हेलीकॉप्टर तुर्की और अमेरिका का संयुक्त उपक्रम
दरअसल, तुर्की की हेलीकॉप्टर एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज और अमेरिका की एक मशहूर ऑगस्ता वेस्टलैंड कंपनी ने संयुक्त रूप से टी-129 लड़ाकू हेलीकॉप्टर का निर्माण किया है। अमेरिकी कंपनी वेस्टलैंड ने हेलीकॉप्टर का इंजन और इसके पंखे को डिजाइन किया है। तुर्की की कंपनी के पास इस डिजाइन के सर्वाधिकार सुरक्षित जरूर है, लेकिन अमेरिका इस हेलीकॉप्टर को किसी तीसरे देश को बेचने पर रोक लगा सकता है। यही प्रमुख कारण है कि अमेरिका ने इस हेलीकॉप्टर की खरीद की इजाजत नहीं दी है। प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अमेरिका द्वारा इस करार को रद किए जाने के पीछे एक बड़ी वजह पाकिस्तान और चीन के प्रति निकटता है। चीन की इस निकटता के कारण पाकिस्तान को तुर्की के लड़ाकू हेलीकॉप्टर से वंचित होना पड़ा।
दोनों देशों के बीच वर्ष 2017 में हुआ था करार
पाकिस्तान ने वर्ष 2017 में औपचारिक परीक्षण के बाद तुर्की में निर्मित टी-129 लड़ाकू हेलीकॉप्टर खरीदने का फैसला किया था। खास बात यह है कि इस सौदे के पूर्व चीन और तुर्की के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों ने परीक्षण में हिस्सा लिया था। इसके बाद ही दोनों देशों के बीच हेलीकॉप्टर सौदे का यह करार हुआ था। पाकिस्तनी सेना ने उस वक्त कहा था कि टी-129 लड़ाकू हेलीकॉप्टर के आने से सेना की ताकत बढ़ेगी। सेना ने कहा था कि सैन्य एविएशन इतिहास में यह मील का पत्थर साबित होगा। पाकिस्ताी सेना ने 30 हेलीकॉप्टरों का ऑर्डर दिया था।
1980 में अमेरिका ने पाक को दिए थे 20 कोबरा हेलीकॉप्टर
बता दें कि शीत युद्ध के दौरान 1980 के दशक में अमेरिका ने पाकिस्तान को 20 कोबरा लड़ाकू हेलीकॉप्टर दिए थे। अफगानिस्तान में अमेरिका की दिलचस्पी के चलते उसने पाकिस्तान को हेलीकॉप्टरों की यह खेप दी थी, क्योंकि उस वक्त अफगानिस्तान में उसे पाक की जरूरत थी। लेकिन अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को कोबरा हेलीकॉप्टरों की मरम्मत के लिए पुर्जे देने से मना कर दिया। ऐसे में पाकिस्तान के समक्ष कोबरा हेलीकॉप्टरों को ऑपरेशन में रखना मुश्किल हो गया। पाकिस्तान ने संकेत दिया है कि तुर्की हेलीकॉप्टर नहीं मिलने की स्थिति में उसके पास चीनी हेलीकॉप्टर जेड-10 का विकल्प खुला हुआ है।