नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को दहेज (Dowry) को लेकर प्रताड़ित की गई युवती के आत्महत्या (Suicide) मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने मामले में एक सास (Mother in Law) को दोषी ठहराते हुए कहा कि एक महिला के खिलाफ अपराध उस वक्त और संगीन हो जाता है, जब एक महिला अपनी पुत्रवधू (Daughter in Law) के साथ क्रूरता करती है। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि अगर एक महिला दूसरी महिला की रक्षा नहीं करती, तो दूसरी महिला जो एक पुत्रवधू है, वह अधिक असुरक्षित हो जाएगी।
जेवर के लिए ससुराल वाले कर रहे थे प्रताड़ित
शीर्ष अदालत ने एक महिला की ओर से दाखिला याचिका पर यह आदेश सुनाया। महिला को मद्रास हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दोषी करार दिया था। पीड़िता की मां ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके दामाद, दामाद की मां, उसकी बेटी और ससुर उनकी बेटी को जेवरों के लिए प्रताड़ित करते थे। इसके कारण ही उनकी बेटी ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
80 साल की महिला को तीन महीने का सश्रम कारावास
निचली अदालत ने सबूतों को ध्यान में रखते हुए ससुर को बरी कर दिया था और अन्य आरोपितों को दोषी ठहराया था। निचली अदालत ने आरोपितों को आइपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के लिए एक साल की जेल और एक हजार रुपये का जुर्माना और धारा 306 के तहत तीन साल की जेल और दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया था और सभी आरोपितों को आइपीसी की धारा 306 के तहत अपराध से बरी कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता महिला की उम्र (80) को ध्यान में रखते हुए सजा की अवधि को घटाकर तीन महीने के सश्रम कारावास कर दी।