‘चुनाव आयोग कैसे गलत है, साबित तो करो…’, बिहार वोटर लिस्ट मामले में याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कड़े सवाल

‘चुनाव आयोग कैसे गलत है, साबित तो करो…’, बिहार वोटर लिस्ट मामले में याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कड़े सवाल

नई दिल्ली। बिहार में वोटर लिस्ट विशेष पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। 9 जुलाई को विपक्षी पार्टियों ने इसे लेकर पटना में जोरदार प्रदर्शन भी किया। हालांकि, अब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो गई है।

10 जुलाई को सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट से कहा कि अभी तक सभी याचिकाओं की कॉपी नहीं मिली है, इसलिए पक्ष स्पष्ट रूप से रख पाना मुश्किल हो रहा है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने क्या कहा?

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिविजन का प्रवाधान कानून में मौजूद है और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या फिर पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार करके भी हो सकती है।

उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा, “अब इन्होंने एक नया शब्द गढ़ लिया है ‘स्पेशल इंटेसिंव रिवीजन’। आयोग यह कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं और पूरी प्रक्रिया को बहुत तेजी से अंजाम दिया जा रहा है।”

विपक्षी दलों और ADR की ओर से दायर की गई याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था। इन याचिकाओं में 5 बड़े सवाल उठाए गए हैं। आईए जानते हैं, क्या-क्या हैं सवाल…

पांच बड़े सवाल

पहला सवाल:- संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन

  • विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि चुनाव आयोग का यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल 1960 के नियम 21A के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का भी उल्लंघन है।

दूसरा सवाल:- नागरिकता, जन्म और निवास पर मनमानी

  • एक्टिविस्ट अरशद अजमल और रूपेश कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता, जन्म और निवास से संबंधित असंगत दस्तावेजीकरण लागू करने की मनमानी है।ॉ

तीसरा सवाल:- लोकतांत्रिक सिद्धांत कमजोर करने वाला फैसला

  • सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव आयोग के वोटर वेरिफिकेशन के फैसले को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने वाला बताया गया है।

चौथा सवाल:- गरीबों पर असमान बोझ

  • सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि चुनवा आयोग की यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी के साथ ही महिलाओं और हाशिए पर पड़े अन्य समूहों पर असमान बोझ डालने वाली है।

पांचवां सवाल:- गलत समय पर शुरू की गई प्रक्रिया

  • राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की ओर से दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये प्रक्रिया गलत टाइम पर शुरू की गई है। मनोज झा ने कहा कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में गलत समय पर शुरू की गई है, जिसकी वजह से करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।

चुनाव आयोग का बयान

विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों को लेकर चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि जिन लोगों के नाम 1 जनवरी, 2003 को जारी की गई वोटर लिस्ट में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी।

चुनाव आयोग ने बताया कि वे सभी लोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तगत प्राथमिक तौर पर भारत के नागरिक माने जाएंगे। जिन लोगों के माता-पिता के नाम तब की मतदाता सूची में दर्ज है, उनको केवल अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान से संबंधित दस्तावेज देने होंगे।


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