लखनऊ । ईवीएम खुलने में अब कुछ घंटे ही बाकी रह गए हैं। सत्ताधारी भाजपा हो या विपक्षी दल, सभी की सांसें हार-जीत को लेकर अटकी हैं तो इन परिणाम में उन चुनावी मुद्दों की जान भी अटकी है, जिन्हें भाजपा सरकार की राह का कांटा बनाने के लिए विपक्षी ने खाद-पानी देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। सरकार के कोरोना प्रबंधन पर कुप्रबंधन के आक्षेप हों या कृषि कानून विरोधी आंदोलन को उत्तर प्रदेश में गर्माने के भरसक प्रयास और गांव-गांव, गली-गली बढ़ती महंगाई का ढोल, मुद्दों का हथियार 2024 के लोकसभा चुनाव में काम आएगा या नहीं, यह सरकार के रिपोर्ट कार्ड पर टिका है।

भाजपा को 2017 में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद सरकार की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई। किसानों की कर्ज माफी के बड़े संकल्प को पूरा करने के साथ शासन की शुरुआत करने वाले योगी के लिए कार्यकाल के दौरान चुनौतियां आती रहीं। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बार्डर पर जो आंदोलन खड़ा हुआ, उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से प्रदेश के अन्य हिस्सों में लाने के लिए कांग्रेस, सपा और रालोद सहित अन्य छोटे-छोटे दलों ने भी मंच सजाए। गांव-गांव सरकार को किसान विरोधी बताकर कर्ज माफी, सिंचाई व्यवस्था, किसान सम्मान निधि के निर्णयों को बेअसर करने का भरपूर प्रयास हुआ।

इधर, 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण ने दस्तक दे दी। प्रदेश के कमजोर स्वास्थ्य ढांचे की चुनौती से जूझते हुए योगी सरकार ने न सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर करने का प्रयास किया, बल्कि लाकडाउन, साप्ताहिक बंदी आदि रास्ते अपनाकर जान और जहान को बचाने में लगी रही। सरकार दावा करती रही कि अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक आबादी होने के बावजूद उत्तर प्रदेश की स्थिति बेहतर रही, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे कुप्रबंधन बताकर ही चुनाव में प्रचारित किया।

इसके साथ ही चुनाव के ऐन पहले से महंगाई ने मुंह फाड़ना शुरू किया, जिसे भी चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया गया। इसी तरह मुख्यमंत्री योगी गोवंश संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बता रहे थे। सरकार बनते ही अवैध बूचड़खाने बंद कराए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बेसहारा पशुओं की समस्या को विरोधी दलों ने ग्रामीण अंचल की सबसे बड़ी समस्या बताते हुए सरकार को किसान विरोधी करार दिया।

इन तमाम चुनौतियों के बीच सात चरणों में मतदान हुआ। दस मार्च को चुनाव के परिणाम आने हैं। यह नतीजे सिर्फ यही तय नहीं करेंगे कि अभी किस दल की सरकार बनेगी, बल्कि भविष्य की राजनीति के लिए भी बड़ा संदेश देंगे। अव्वल तो 2024 का लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती है। यदि भाजपा यह चुनाव हारती है तो विपक्ष के यही मुद्दे उसकी अग्निपरीक्षा दो वर्ष बाद लोकसभा चुनाव में लेंगे। वहीं, सरकार बहुमत के साथ फिर लौटती है तो विपक्षी हाल-फिलहाल खाली हाथ हो जाएगा। अगले चुनाव के लिए उसे नए सिरे से भाजपा के खिलाफ मुद्दों की तलाश करनी होगी। उन पर सरकार के खिलाफ जन-जन का विश्वास जीतने के लिए पसीना बहाना पड़ेगा।