कोरोना की वैक्सीन बनी तो सबसे पहले किसे मिलेगी? भारत की क्या है तैयारी

- दुनियाभर में 100 से ज्यादा वैक्सीन पर चल रहा काम, इंसानों पर हो रहे ट्रायल
- वैक्सीन डेवलपमेंट पर जमकर पैसा खर्च कर रहे देश, ताकि मिले पहला हक
- तैयार होते ही तेजी से शुरू करना होगा प्रॉडक्शन, भारतीय कंपनियों ने कर ली है तैयारी
- WHO के लगातार टच में है भारत, वैक्सीन जल्द से जल्द मिले यही कोशिश
- वैक्सीन का ट्रायल सफल होने के बाद उसपर कंट्रोल के लिए हो सकती है मारामारी
नई दिल्ली
कोरोना वायरस से जूझ रही दुनिया जल्द से जल्द उसका इलाज पा लेना चाहती है। रिसर्च पर अरबों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं ताकि लाखों जिंदगियां बचाई जा सकें। जिस तरह से कोविड-19 ने लाशों के ढेर लगाए हैं, उसे देखकर महाशक्तियां भी कांप गई हैं। बस किसी तरह कोरोना की वैक्सीन मिल जाए, कीमत कोई भी देने को तैयार हैं। हर देश इसी कोशिश में लगा है कि वैक्सीन बनते ही सबसे पहले उसे मिले। मगर ये इतना आसान नहीं है।
इस रेस में जो जीतेगा, वही सिकंदर
एक वायरस की वैक्सीन के लिए कई ट्रिलियन डॉलर्स की रकम दी जा चुकी है। साइंटिस्ट्स जल्द से जल्द वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। अनुमान साल भर से लेकर डेढ़-दो साल तक का है। साइंटिस्ट्स के सफल होते ही वैक्सीन पर जिसका कंट्रोल होगा, उसकी ग्लोबल पोजिशन बेहद पावरफुल हो जाएगी। वैक्सीन पाने की इस रेस में जो अव्वल आएगा, वह सबसे पहले अपने नागरिकों को बचाएगा। विकसित देशों ने कई रिसर्च कंपनीज के साथ ‘एक्सक्लूसिव’ डील की है ताकि वैक्सीन डेवलप होने पर हक उन्हें मिले। ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका जैसे देश वैक्सीन के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं।
क्या वाकई कोरोना की वैक्सीन बन पाना मुमकिन नहीं?कोरोना वायरस का खौफ पूरी दुनिया में फैला हुआ है, हर कोई बस उस वक्त का इंतजार कर रहा है जब ये बीमारी पूरी तरह से खत्म हो जाए. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो? दुनिया भर के एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि ऐसी कोई वैक्सीन कभी तैयार ही नहीं हो पाएगी, जिससे कोरोना वायरस को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके!
वैक्सीन बनने के बाद बाकी देशों को कब मिलेगी?
जो भी देश पहले वैक्सीन पाएगा, वह कोशिश करेगा कि आगे आउटब्रेक्स से निपटने के लिए एक रिजर्व तैयार किया जाए। बहुत मुमकिन है कि वैक्सीन का एक्सपोर्ट प्रतिबंधित रहे। एक सफल वैक्सीन बनने के बावजूद, उसे दूसरे देशों तक पहुंचने में कई साल लग सकते हैं। कोरोना वैक्सीन का मामला ऐसा है जहां इकनॉमिक्स और पॉलिटिक्स के बीच में हेल्थ फंसी हुई है। कोई रईस देश अपने प्रभाव और पैसे के इस्तेमाल से वैक्सीन जल्द हासिल कर लेगा। गरीब देशों तक वैक्सीन पहुंचने में वक्त लगेगा। क्योंकि उनकी मदद तभी होगी जब अपने नागरिक सुरक्षित कर लिए जाएंगे।
भारत ने तेज कर दी हैं कोशिशें
भारत सरकार जल्द से जल्द अपने नागरिकों को वैक्सीन मुहैया कराना चाहती है। देश में 14 वैक्सीन का डेवलपमेंट चल रहा है जिसमें से चार एडवांस्ड स्टेज में जाने को तैयार हैं। सरकार ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और अन्य ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूशंस से लगातार संपर्क बनाए रखा है। ताकि वैक्सीन बनने पर उसे हासिल किया जा सके। डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (DBT) की सचिव रेणु स्वरूप के मुताबिक, सरकार किसी भी कारगर वैक्सीन को हर मोर्चे पर जल्दी से जल्दी मंजूरी देगी।
कौन-कौन बना रहा है वैक्सीन
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सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया अमेरिकी कंपनियों के साथ मिलकर तीन तरह की कोविड-19 वैक्सीन डेवलप कर रही है। Zydus Cadila की दो वैक्सीन अभी प्री-क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रही है। Bharat Biotech भी शुरुआती टेस्टिंग के फेज में है। कंपनी को उम्मीद है कि वह साल के आखिर तक वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू कर देगी। Indian Immunologicals Limited ने ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी से टाईअप किया है।
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Mynvax बेंगलुरु का एक स्टार्टअप है जो 18 महीने में वैक्सीन तैयार करने का दावा कर रहा है। हैदराबाद की Biological E की वैक्सीन भी प्री-क्लिनिकल ट्रायल में है। एंडवास्ड स्टेज में जाने को तैयार 4 वैक्सीन कौन सी हैं जिनका जिक्र हषवर्धन ने किया, ये तो उन्होंने नहीं बताया मगर उम्मीद जरूर जगा दी है कि भारत जल्द वैक्सीन डेवलप कर लेगा। PM CARES फंड से 100 करोड़ रुपये वैक्सीन बनाने के लिए अलॉट किए गए हैं।
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केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि पूरी दुनिया इसी कोशिश में है कि कोविड-19 की वैक्सीन बन जाए। 100 से भी ज्यादा वैक्सीन हैं जिनपर फिलहाल रिसर्चर्स काम कर रहे हैं। सबसे WHO कोऑर्डिनेट करता है।
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ब्रिटेन में वैक्सीन का ट्रायल सेकेंड फेज में हैं। वहां इंसानों पर टेस्ट किए जा रहे हैं। चीन ने 108 वालंटियर्स पर टेस्ट किया था जो पूरा हो गया है। कुछ दवाओं के असर पर भी नजर रखी जा रही है। जैसे रेमडेसिवीर और फेविपिराविर।
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थाइलैंड में कोरोना वायरस की वैक्सीन ट्रायल अगले स्टेज में पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यहां चूहों पर सफल टेस्ट के बाद बंदरों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो चुका है। थाइलैंड ने कहा है कि छह से सात महीने में कोरोना की वैक्सीन तैयार हो सकती है।
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देश में कोरोना वायरस के मामले अब तेजी से बढ़ रहे हैं। राहत की बात ये हैं कि भारत का रिकवरी रेट लगातार सुधर रहा है। महाराष्ट्र की हालत बेहद चिंताजनक है जहां 50 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
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घरेलू कंपनियों के लिए रेगुलेटरी क्लियरेंस देने और गाइडलाइंस तैयार करने का काम शुरू हो चुका है। भारत वैक्सीन का सॉलिडैरिटी ट्रायल शुरू करने के लिए WHO के टच में है। कोरोना की वैक्सीन, दवा और डायग्नोस्टिक्स को परखने का जिम्मा DBT को सौंपा गया है। DBT ने 500 प्रस्तावों की समीक्षा के बाद कई कंपनियों को फंडिंग दी है।
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DBT ने कोएलिशन फॉर वैक्सीन प्रीपैयर्डनेस इनोवेशंस (CEPI) और अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) से हाथ मिलाया है। रिसर्च वर्क में तेजी के लिए DBT जल्द ही वैक्सीन डेवलपमेंट नोटिफिकेशन जारी करेगा।
मैनुफैक्चरिंग है भारत का हथियार
भारत अपने मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के दम पर वैक्सीन का एक बड़ा दावेदार है। हम दुनियाभर की वैक्सींस का 60 पर्सेंट प्रोड्यूस करते हैं। यूनाइटेड नेशंस को जाने वाली 60-80 पर्सेंट वैक्सीन ‘मेड इन इंडिया’ होती हैं। दुनिया के कई देश भारत के संपर्क में हैं। अगर कोरोना की वैक्सीन बन जाती है तो लोगों तक उसे पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रॉडक्शन की जरूरत होगी। भारत के पास पहले से ही एक शानदार इन्फ्रास्ट्रक्चर है। ऐसे में इस रास्ते वैक्सीन भारत आ सकती है।
पैसे ले लो, वैक्सीन दे दो
इस महीने की शुरुआत में यूरोपियन यूनियन ने एक कॉन्फ्रेंस बुलाई थी जिसमें दुनियाभर के देश शामिल हुए थे। इस में उन लैब्स को फंडिंग का इंतजाम करना था जिनकी वैक्सीन के शुरुआती नतीजे पॉजिटिव रहे हैं। इस मीटिंग में 8 बिलियन डॉलर की फंडिंग पर सहमति बनी। अमेरिका और रूस इसमें शामिल नहीं हुए थे। चीन जिसने हिस्सा लिया, उसने कोई पैसा नहीं दिया। दोनों देश अपने यहां वैक्सीन पर अच्छी-खासी रकम खर्च कर रहे हैं। अमेरिका ने फ्रांस की की कंपनी Sanofi से समझौता किया है कि अगर उसकी वैक्सीन सक्सेसफुल होती है तो सबसे पहले US को मिलेगी।
चीन का दावा- वैक्सीन नहीं, दवा से रुकेगा कोरोनाकोरोना वायरस के इलाज को लेकर चीन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने एक ऐसी दवा की खोज की है जिससे संक्रमित व्यक्ति को जल्द ठीक किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि दवा की मदद से मरीज के इम्यून को भी कुछ समय के लिए मजबूत किया जा सकता है।
जो पेटेंट कराएगा, मालामाल हो जाएगा
ग्लोबल पेटेंट सिस्टम ऐसा है कि जिसने वैक्सीन डेवलप की, वो मालामाल हो जाएगा। चीन और अमेरिका, इन दो देशों ने वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए अरबों डॉलर खर्च किए हैं। इसमें अप्रूवल और प्रॉडक्शन का भी पेंच है। जो भी देश पहले वैक्सीन बनाएगा वो लोकल मैनुफैक्चरर्स के हाथ में प्रॉडक्शन देकर खेल कर सकता है। मान लीजिए चीन कोई वैक्सीन बना लेता है तो वह घरेलू वैक्सीन को जल्द अप्रूवल देगा जबकि अमेरिकी वैक्सीन को नहीं। इससे फायदा चीनी डेवलपर्स को होगा। अमेरिका भी यही कर सकता है। इससे होगा ये कि वैक्सीन का उस पैमाने पर प्रॉडक्शन नहीं हो पाएगा जिसकी दुनिया को जरूरत है।
दवाओं को लेकर भी ऐसी ही रेस
कोरोना वायरस के लिए प्रभावी दवा की खोज भी चल रही है। Hydroxychloroquine (HCQ), Remdesivir, Favipiravir जैसे ड्रग्स के कोविड-19 स्ट्रेन पर असर को लेकर रिसर्च हो रही है। जैसे ही इन दवाओं के कोरोना पर असर की बात फैली, इनकी डिमांड कई गुना बढ़ गई। भारत HCQ का सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है तो उससे मदद मांगने वालों की लाइन लग गई। अमेरिका, ब्रिटेन, UAE… कई देशों को भारत को एक्सपोर्ट बैन हटाते हुए दवाओं की खेप भेजी। अब और नए-नए कॉम्बिनेशन ट्राई किए जा रहे हैं। कुछ प्रयोगों के नतीजे पॉजिटिव रहे हैं मगर ठोस प्रगति नहीं हुई है।