मोदी सरकार से यह चूक कैसे हुई… खाली पड़ा है एक संवैधानिक पद

मोदी सरकार से यह चूक कैसे हुई… खाली पड़ा है एक संवैधानिक पद
  • मोदी 2.0 सरकार (Modi Government) के केंद्र पर काबिज हुए लगभग ढाई साल होने को हैं. इसके बावजूद संसद में डिप्टी स्पीकर का पद अभी तक खाली है.

नई दिल्ली: मोदी 2.0 सरकार (Modi Government) के केंद्र पर काबिज हुए लगभग ढाई साल होने को हैं. इसके बावजूद संसद में डिप्टी स्पीकर का पद अभी तक खाली है. अगर संसदीय कार्रवाई के जानकारों की मानें तो इतने लंबे समय तक यह संवैधानिक पद कभी खाली नहीं रहा है. विपक्षी दल (Opposition) इसको लेकर भी कई बार आवाज उठा चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस है. ऐसे में संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 93 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए पवन रेली ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर दी है. बताते हैं कि मोदी सरकार ने वायएसआर कांग्रेस को यह पद देने की पेशकश की थी, लेकिन उनकी ओर से इंकार के बाद से यह पद खाली है. हालांकि ऐसा कोई संसदीय प्रावधान नहीं है कि इस पद पर विपक्ष का ही अधिकार है. चूंकि विपक्ष के पास ही यह पद अभी तक ज्यादातर रहा है, तो मोदी सरकार इस गरिमा को भंग नहीं करना चाहती.

संविधान का अनुच्छेद 93 और डिप्टी स्पीकर के अधिकार 
डिप्टी स्पीकर एक संवैधानिक पद है. संविधान के अनुच्छेद 93 के मुताबिक लोकसभा जितना जल्दी संभव हो सदन के दो सदस्यों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुनेगी. इस प्रावधान के आधार पर याचिकाकर्ता पवन ने डिप्टी स्पीकर का चुनाव अब तक नहीं कराए जाने को असंवैधानिक करार दिया है. गौरतलब है कि सदन के संचालन के वक्त डिप्टी स्पीकर के पास स्पीकर के सारे अधिकार होते हैं. कुछ संसदीय समितियों के वह पदेन अध्यक्ष भी होते हैं. स्पीकर की अनुपस्थिति या इस्तीफे व किसी अन्य वजह से अगर स्पीकर का पद खाली होता है, तो नए स्पीकर के चुनाव तक डिप्टी स्पीकर के पास स्पीकर की सारी शक्तियां निहित रहती हैं. जानकारों के मुताबिक सदन के संचालन के समय स्पीकर की अनुपस्थिति में लिए फैसले को स्पीकर भी नहीं बदल सकता है. दूसरी तरफ लोकसभा की नियमावली के रूल नंबर 8 के अनुसार डिप्टी स्पीकर के चुनाव की जिम्मेदारी स्पीकर की है. इस नियम के मुताबिक स्पीकर को चुनाव की तारीख तय करनी होती है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अब तक डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय नहीं की है.

डिप्टी स्पीकर के नहीं होने पर कैसे चल रहा काम
संसदीय प्रावधानों के मुताबिक अगर सदन में स्पीकर या डिप्टी स्पीकर दोनों ही मौजूद नहीं हैं, तो सदन की कार्यवाही का संचालन ‘पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स’ का सदस्य करता है. इस पैनल के सदस्यों का चयन स्पीकर करते हैं जिसमें सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के सदस्य भी शामिल होते हैं. फिलहाल पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स में लोकसभा के 9 सदस्य हैं. इनमें बीजेपी की रमा देवी, किरीट पी सोलंकी, राजेंद्र अग्रवाल, कांग्रेस के के सुरेश, डीएमके केए राज, वायएसआर कांग्रेस के पीवी एम रेड्डी, बीजेडी के भतृहरी महताब, रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एनके प्रेमचंद्रन और टीएमसी की काकोली घोष दस्तीदार शामिल हैं. अभी तो कोई डिप्टी स्पीकर ही नहीं है, इसलिए स्पीकर की अनुपस्थिति में पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स का सदस्य सदन का संचालन करता है. यह अलग बात है कि इनके पास न तो किसी तरह की प्रशासनिक शक्तियां होती हैं और न ही ये किसी कमेटी के पदेन सदस्य होते हैं.

शुरुआत में डिप्टी स्पीकर के लिए सरकार ने की थी कोशिश
आमतौर पर सत्तारूढ़ दल स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव साथ-साथ होता है. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद वायएसआर कांग्रेस को देने की पेशकश की थी, लेकिन उसने ठुकरा दिया. हालांकि संविधान में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को ही मिलेगा, लेकिन लंबे समय से यही संसदीय परंपरा रही है. अबतक 15 लोग डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं. शुरुआती 4 लोकसभा में स्पीकर के साथ-साथ डिप्टी स्पीकर का पद भी सत्ताधारी कांग्रेस के पास रहा, लेकिन 1956 में कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल के हुकुम देव को डिप्टी स्पीकर चुना. वह किसी विपक्षी पार्टी से पहले डिप्टी स्पीकर थे. इसके बाद से डिप्टी स्पीकर का पद परंपरागत तौर पर विपक्ष का ही रहा.

Jamia Tibbia