हिमंत सरकार कराएगी मूल असमिया मुसलमानों का सर्वे, कैबिनेट ने दी मंजूरी

मूल असमिया मुसलमानों ने 13वीं और 17वीं शताब्दी के बीच इस्लाम धर्म अपनाया. वहीं बंगाली भाषी प्रवासियों के विपरीत, उनकी मातृभाषा भी असमिया है. इसके अलावा उनकी सांस्कृतिक प्रथाएं और परंपराएं मूल हिंदुओं के समान हैं.
नई दिल्ली: असम की हिमंत सरकार राज्य के मुल मुसलमानों का सर्वे कराने जा रही है. जिसके लिए कैबिनेट की भी मंजूरी मिल गई है. दरअसल, असम सरकार राज्य में मूल असमिया मुसलमानों का सामाजिक और आर्थिक मूल्यांकन करेगी. शुक्रवार को मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया है. इस संबंध में सीएम शर्मा ने एक पोस्ट में कहा कि, अल्पसंख्यक मामले एवं कछार क्षेत्र निदेशालय के माध्यम से मूल असमिया मुसलमानों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक में छार क्षेत्र विकास निदेशालय का नाम बदलकर अल्पसंख्यक मामले एवं छार क्षेत्र, असम करने का फैसला लिया गया है. इसके अलावा कैबिनेट ने पारंपरिक भैंसे और सांड़ों की लड़ाई को भी अनुमति दी है. जिसका आयोजन हर साल माघ बिहू के दौरान किया जाता है.
राज्य सरकार इन्हें मानती है मूस असमिया मुसलमान
बता दें कि राज्य सरकार ने पिछले साल जुलाई में गोरिया, मोरिया, जोलाह (केवल चाय बागानों में रहने वाले), देसी और सैयद (केवल असमिया भाषी) समुदाय के लोगों को ही मूल असमिया मुसलमान बताया. इन मुसलमानों के पास पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश से प्रवास का कोई इतिहास नहीं है. बता दें कि असर सरकार ने पांच उप-समूहों को स्वदेशी के रूप में मान्यता देने का फैसला लिया था. जो असम सरकार द्वारा पहले गठित सात उप-समितियों की सिफारिशों के आधार पर लिया गया था. असमिया मुसलमानों के वर्गीकरण की बात काफी लंबे समय से चली आ रही थी. क्योंकि असम के मूल निवासी होने के बावजूद बंगाली भाषी मुसलमान उन्हें हाशिए पर रखते और इसके चलते मूल असमिया मुसलमानों को लाभ नहीं मिल पाता था.
13वीं और 17वीं शताब्दी में अपना इस्लाम धर्म
बता दें कि मूल असमिया मुसलमानों ने 13वीं और 17वीं शताब्दी के बीच इस्लाम धर्म अपनाया. वहीं बंगाली भाषी प्रवासियों के विपरीत, उनकी मातृभाषा भी असमिया है. इसके अलावा उनकी सांस्कृतिक प्रथाएं और परंपराएं मूल हिंदुओं के समान हैं. इस समुदाय के लोग पहले गोरिया और मोरिया अहोम राजाओं के लिए काम किया करते थे. जो देसी मूल रूप से कोच-राजबोंगशी थे, चाय बागानों में काम करने के लिए अंग्रेजों ने छोटानागपुर पठार से भी तमाम मुसलमानों को असम बुलाया. ये मुसलमान जोल्हा जनजाति के थे. वहीं सैयद सूफी संतों के अनुयायियों के वंशज बताए जाते हैं.
गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार असम में मुसलमानों की आबादी 34 फीसदी से ज्यादा है. ये संख्या लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर के बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तीसरी सबसे बड़ी आबादी है. असम की कुल 3.1 करोड़ की आबादी में एक करोड़ से ज्यादा मुसलमान है. जिनमें से केवल 40 लाख लोगों को ही सरकार मूल असमिया मुसलमान मानती है. बाकी मुसलमानों को बांग्लादेशी अप्रवासी माना जाता है.