प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अपराधिक केस में कहा है कि हत्या के मामले में यदि अभियुक्तों के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य हैं और चश्मदीद गवाहों के बयान विश्वसनीय हैं तो हत्या करने का उद्देश्य साबित करना आवश्यक नहीं है। दिनदहाड़े हत्या करने के दो अभियुक्तों की उम्र कैद की सजा के खिलाफ दाखिल अपील खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि चश्मदीद गवाहों की गवाही मात्र इस आधार पर अविश्वसनीय नहीं हो सकती कि वह मृतक के नजदीकी रिश्तेदार हैं। यदि चश्मदीद गवाहों की घटनास्थल पर उपस्थिति साबित होती है तो उनके बयान पर विश्वास किया जा सकता है।

बुलंदशहर में हत्‍या के मामला में कोर्ट ने अपील खारिज की

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बुलंदशहर के कलुआ व शंकर की अपील को खारिज करते हुए दिया है। मामले के अनुसार 6 सितंबर 1999 को शिकारपुर थाने में वादी नीरज सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वह अपनी बहन और बहनोई दलवीर सिंह के साथ दिल्ली जा रहा था जैसे ही वे लोग ज्ञान सिंह के खेत के पास पहुंचे सुबह लगभग 7:00 बजे अभियुक्त मुनेश, शंकर, शशि और कलुआ ने उनको घेर लिया। दलबीर सिंह को घसीट कर पास के खेत में ले गए और गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। मृतक को आठ गोलियां मारी गई थी।

दोनों चश्‍मदीद गवाहों की प्रति परीक्षा में संदेह नहीं

इस मामले में दोनों चश्मदीद गवाहों नीरज और उसकी बहन राजेश्वरी ने अपने बयान में वही बातें दोहराई जो उन्होंने प्राथमिकी में दर्ज कराई थी। दोनों गवाहों के प्रति परीक्षा में कोई भी ऐसा बिंदु सामने नहीं आया, जिससे कि उनकी घटनास्थल पर मौजूदगी पर संदेह किया जा सके।

अदालत ने अभियुक्‍तों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा

बचाव पक्ष की ओर से दलील दी गई थी की गवाहों के बयान से हत्या करने का उद्देश्य साबित नहीं होता है। क्योंकि दोनों गवाह मृतक के नजदीकी रिश्तेदार हैं, इसलिए उनकी गवाही विश्वसनीय नहीं हो सकती। अदालत ने इन दोनों आपत्तियों को खारिज करते हुए अभियुक्तों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है।