बेबसी या जिद? लॉकडाउन में फंसने वालों की रुला देने वाली आपबीती

बेबसी या जिद? लॉकडाउन में फंसने वालों की रुला देने वाली आपबीती

नई दिल्ली  कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉक डाउन है नॉक डाउन का दूसरा चरण 14 अप्रैल से लागू हो गया। पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में लॉकडाउन की मियाद तीन मई तक बढ़ा दी। जिसके बाद मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन में हजारों प्रवासी मजदूर इकट्ठा हो गए। इन मजदूरों का कहना है किन के पास न तो कोई काम है और न ही पैसा ऐसे में इनका यहां पर गुजारा करना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इसी वजह से यह लोग अपने घरों की तरफ वापस जाना चाहते हैं। इन लोगों ने अपनी समस्याएं जाहिर की और बताया कि आखिरकार ये लोग क्यों बांद्रा रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हो गए थे। इन मजदूरों का कहना था कि ये लोग दो दिनों से भूखे हैं कोई इनको नहीं पूछ रहा। इनके पास न तो काम है और न ही पैसा। बिना पैसे के इस शहर में एक दिन भी गुजारना बेहद मुश्किल होता है।

बिना पैसे के गांव में रह सकते हैं शहर में नहीं…

शाहपुर जाट में एक फैशन डिजाइनर के साथ काम करने वाले कारीगर एसके मनीरुल और उनके तीन दोस्तों ने भी पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में अपने घरों में ट्रेन की सवारी के लिए अपना रिजर्वेशन करवा लिया था, लेकिन लॉकडाउन बढ़ने के बाद उनका सारा प्लान खत्म हो गया। उन्होंने बताया, “हमने अपनी बचत समाप्त कर दी है और केवल 2-3 दिनों के लिए भोजन बचा है। कोई भी हमें क्रेडिट पर सूखे राशन देने को तैयार नहीं है। मनिरुल ने कहा, “बिना पैसे के गाँव में रहना आसान है, शहर में नहीं।”

​मुझे भोजन नहीं चाहिए बस घर भेज दो…

शाहदत अंसारी ने दक्षिणी दिल्ली के खिरकी एक्सटेंशन में चार अन्य लोगों के साथ एक छोटे से कमरे में पिछले तीन सप्ताह बिताए। 14 अप्रैल के बाद उनको उम्मीद थी कि लॉकडाउन खुलेगा तो ये सब अपने गांव बिहार के मधुबनी जिले में जा सकेंगे लेकिन लॉकडाउन का विस्तार होने से ये लोग हताश हो गए। शाहदत का कहना है “मैं कमले में कैद होने के कारण परेशान हो चुका हूं। मुझे भोजन नहीं चाहिए, मैं सिर्फ अपने परिवार के साथ अपने गांव में वापस जाना चाहता हूं। शाहदत का कहना है कि 2,000 से अधिक प्रवासी मजदूरों को कमरे किराए पर दिए गए हैं बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा। अंसारी और वहां रहने वाले लगभग सभी लोगों ने 25 मार्च से तालाबंदी के बाद एक भी रुपया नहीं कमाया है। कुछ ने मार्च के अंतिम सप्ताह में अपने गांवों के लिए बाहर जाने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें जल्दबाजी में पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। वे तब से अपने कमरों में बंद हैं, सो रहे हैं या अपने मोबाइल फोन पर वीडियो देख रहे हैं और एक दूसरे को भावनात्मक समर्थन दे रहे हैं।

​6 बाई 8 के कमरे में इतने सारे लोग

रणदीप सेनापति, दुष्मांता बहरा, सुशांत शेट्टी, प्रसन्नजीत सेनापतिऔर सीताराम बहेरा ये सब मुंबई के एक इलाके में ठहरे हुए हैं। एक कमरे में रहते हैं। इस कमरे की माप है 6 बाई 8। बामुश्किल दो से तीन आदमी ही उसमें कैसे करके अट सकते हैं लेकिन इतने लोग एक ही कमरे में रह रहे हैं। इनकी परेशानी इनके चेहरे पर आसानी से दिख रही है। गर्मी के कारण ये लोग भयंकर परेशान हो रहे हैं। रणदीप ने बताया कि रोज सोने से पहले ये लोग कमरे में जगह करने के लिए अपने बैग्स को अपने ऊपर रख लेते हैं। ये सभी लोग ओडिशा के रहने वाले हैं। लॉकडाउन के बाद इनके पास कोई काम नहीं है ये लोग रोज मजदूरी कर खाने वाले लोग हैं। ये लोग अपने परिवारों के पास पैसा भेजते थे और कुछ पैसा बचा लेते थे। अब तक वो भी सब खत्म हो गया है। ये लोग वापस अपने गांव जाना चाहते हैं ताकि कम से कम भरपेट खाना खा सकें।

24 घंटे में केवल खाना खा रहा है ये परिवार

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“मैं घरों और दफ्तरों में टाइल्स रिपेयरिंग के काम करता हूं। मेरे परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं। हम लोग पिछली चार रातों से 24 घंटे में केवल एकबार खाना खा रहे हैं। मैं अपने घर पैसे लेने जाना चाहता हूं। मैंने राशन पानी दुकानों से उधार लिया है और वो लोग तकादा करते हैं। हम लोग एक बार खाना खाने को मजबूर हैं क्योंकि न तो हमारे पास पैसा है और न ही काम। यहां तक की मेरे पास कमरे का किराया देने के लिए भी पैसा नहीं है। मैं ठीक-ठाक पैसा कमा लेता था। अपने परिवार की सभी जरूरतों के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई का भी खास ध्यान रखता था लेकिन अब सब बदल गया है। हमारे पास कोई भी मदद के लिए नहीं आया। हम इस शहर में अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहे हैं।

हमको बस घर भेज दो, हम अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं…

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मोहसिन अली पूरे मुंबई शहर में जहां कहीं भी कंस्ट्रक्शन का काम होता है वहां पर काम करते हैं। मोहसिन इस शहर में पिछले सात सालों से रह रहा है। वो चश्मदीद गवाह है उस शाम का जब हजारों लोग अचानक बांद्रा रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हो गए। मोहसिन का पूरा परिवार पं बंगाल में रहता है। उसके माता-पिता और तीन बहनें हैं जोकि उसी पर निर्भर हैं। उसने बताया कि मुझे पूरी तरह से नहीं मालूम कि वहां पर क्या हुआ लेकिन वो सभी लोग अपने घर जाना चाहते थे। मोहसिन ने बताया कि उसके पास न तो पैसा है और न ही काम। यहां तक की दो दिन से खाना भी नहीं मिला। ऐसे में उसके पास कोई कारण नहीं है इस शहर में रूकने का। उसने बताया कि हमको सिर्फ दो दिन यहां पर खाना मिला। उसके बाद हमको खाना मिलना बंद हो गया। हम लोग यहां पर एक छोटे से कमरे में 10 लोग रह रहे हैं। हम अपने घर जाना चाहते हैं अपने परिवार के पास सुरक्षित रहना चाहते हैं।


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