मजलिसों में किया हजरत की शहादत का फलस्पा बयान
सहारनपुर [24CN]। मोहर्रम की तीसरी तारीख को महानगर की विभिन्न इमामबारगाहों में हुई मजलिस में मुस्लिम विद्वानों ने करबला के शहीद हजरत मुस्लिम के दो छोटे व कमसीन बच्चे शहीद हजरत ऑन व हजरत मौहम्मद की शहादत का फलस्पा बयान किया। मजलिस में सबसे पहले डा. अमीर अब्बास, डा. अथहर अली जैदी, आसिफ अलवी, सलीम आब्दी, सलीस हैदर काजमी, ख्वाजा रईस अब्बास आदि ने पहले मरसिए खानी की।
मौहल्ला कायस्थान स्थित इमामबारगाह सामानियान जाफर नवाज स्थित बड़ी इमामबारगाह व छोटी इमामबारगाह में आयोजित मजलिसों में मौलाना सैय्यद मौ. अब्बास रिजवी ने बताया कि यजीद हजरत इमाम हुसैन ने समर्थन लेना चाहता था। वह चाहता था कि यदि रसूल अकरम का नवासा मेरी बैअत कर देगा तो मैं तमाम मुसलमानों का खलीफा बनकर मुसलमानों में वह सारे काम जायज कर दूंगा जो इस्लाम में नाजायज हैं और उन बातों पर हजरत इमाम हुसैन की मुहर लग जाएगी और तमाम मुसलमान उस पर अमल करने लगेंगे और इस तरह इस्लाम की शक्ल बदल जाएगी और उसकी हुकूमत भी कायम रहेगी
यही उसका असली मकसद था। यजीद की हजरत इमाम हुसैन ने इसलिए बैअत नहीं की उनको नाना रसूले खुदा के दीन की हिफाजत करनी थी और इसके लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी कुर्बानी 10 मुहर्रम को पेश कर रसूले खुदा के दीन को बचा लिया, नहीं तो इस्लाम में शराब, जीनाखोरी, सूदखोरी व सारे नाजायज काम जायज होते। इसलिए हमें हजरत इमाम हुसैन की शहादत को कभी भूलना नहीं चाहिए।
हम अजादारी व हजरत इमाम हुसैन का गम रस्मो रिवाज की वजह से नहीं मनाते। यह एक तहरीक है जो मकसदे हुसैनियत को कामयाब बनाने एवं करबला के शहीदों को पुरसा देने के लिए करते हैं। इमाम हजरत हुसैन का काफिला दो मोहर्रम को जब करबला पहुंचा तो आपने सबसे पहले करबला की जमीन को बड़ी असद से खरीदा और मर्दों से वसीयत की।
जब हम लोग शहीद हो जाएं तो हमारी कब्रगाह यहीं बनाना और मेरे जायरीन को करबला में तीन रोज तक मेहमान बनाकर रखना। फिर वहां की औरतों से वसीयत की कि यदि हमें दफन करने को मर्द न आ सकें तो आप हमें दफन करना। इसके बाद बच्चों से वसीयत की थी कि यदि मर्द या औरतें हमें दफन करने न आ सकें तो आप हमें दफन करने आना। मजलिस के आखिर में अंजुमने अकबरिया व अंजुमने इमामिया ने नौवाखानी व मातम किया।
