गोरखपुर में जीपीएफ घोटाले से प्रशासनिक महकमे में हड़कंप, इन विभागों के कर्मचारियों से हुई धोखाधड़ी
गोरखपुर । कर्मचारियों की फर्जी आइडी बनाकर जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ) का घोटाला करने का मामला प्रकाश में आने के बाद जिला प्रशासन सतर्क हो गया है। इस मामले में संबंधित कर्मचारी पर विभागीय कार्रवाई की तैयारी के बीच इस बात का पता लगाया जाएगा कि प्रशासन के स्तर पर कहां लापरवाही हुई। किसी और अधिकारी की मिलीभगत तो नहीं। जालसाजों ने सरकारी खजाने को कितने का चूना लगाया है और कितने कर्मचारी इससे प्रभावित हुए हैं। जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पाण्डियन ने इसकी जांच के लिए एडीएम वित्त एवं राजस्व राजेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी में ट्रेजरी के दो अधिकारी भी शामिल हैं। 10 दिनों में यह कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी।
चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को बनाया निशाना
चकबंदी विभाग में लेखाकार के पद पर कार्यरत अरुण कुमार वर्मा ने अपने साथियों के साथ मिलकर जालसाजी कर कर्मचारियों की फर्जी आइडी बनायी और ट्रेजरी से भुगतान करा लिया। इस मामले में अधिकतर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को निशाना बनाया गया है। हर विभाग के विभागाध्यक्ष ही इन कर्मियों के लिए आहरण-वितरण अधिकारी भी होते हैं। ऐसे में उनके फर्जी हस्ताक्षर का प्रयोग भी किया गया है। कर्मचारियों की आइडी के आधार पर डिमांड आहरण-वितरण अधिकारी के पास जाती है, वहां से बिल बनाकर ट्रेजरी भेजा जाता है, उसके बाद खाते में पैसा ट्रांसफर किया जाता है। संबंधित विभाग के आहरण-वितरण अधिकारी का हस्ताक्षर भी अनिवार्य माना जाता है। अरुण कंप्यूटर पर काम करता था पिछले तीन साल से अधिक समय से वह इस कार्य में लिप्त था। प्रशासन अब इस बात का पता लगाएगा कि कितने कर्मचारियों के खाते से पैसा निकला है।
गहरी हैं भ्रष्टाचारियों की जड़ें
माना जा रहा है कि ट्रेजरी से पैसा प्राप्त करने के लिए कई बैंक खाते भी खोले गए थे। गोंडा पुलिस की अब तक की जांच में यह बात सामने आयी है कि 45 खाते में धनराशि भेजी गई है। यह रिपोर्ट गोंडा पुलिस की ओर से जिला प्रशासन को भेजी गई है। जिलाधिकारी की ओर से गठित कमेटी द्वारा इस बात की पता भी लगाया जाएगा कि कितने खातों में पैसा भेजा गया है। ट्रेजरी से किस तरह की लापरवाही हुई, इस बात की भी जांच होगी।
चकबंदी विभाग के सर्वाधिक कर्मियों के प्रभावित होने की आशंका
चकबंदी विभाग में कार्यरत अरुण कुमार वर्मा इस घोटाले का मास्टर माइंड है। माना जा रहा है कि इसी विभाग के सर्वाधिक कर्मियों पर इसका प्रभाव भी पड़ा है। पुलिस को दी गई तहरीर में भी चकबंदी विभाग के अधिकारी ने इस बात की आशंका जतायी है कि उनके डिजिटल हस्ताक्षर का दुरुपयोग किया गया है। वही अधिकारी विभाग के आहरण-वितरण अधिकारी भी हैं। जिलाधिकारी ने सोमवार को विभिन्न विभागों के आहरण-वितरण अधिकारियों के साथ बैठक कर इस बात का निर्देश दिया है कि वे अपने विभागों में इस बात की पड़ताल कर लें कि कितने कर्मचारी इस घोटाले से प्रभावित हुए हैं। पिछले 20 साल में सेवानिवृत्त हो चुके कर्मचारियों एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के दस्तावेज खंगाले जाएंगे। सभी को इस घोटाले के बारे में जानकारी दी गई है। अधिकारियों से कहा गया है कि वे इस बात की भी जांच करें कि उनके स्तर से कोई लापरवाही तो नहीं हुई है।
फर्जीवाड़े में शामिल लेखपाल पहले भी हो चुका है निलंबित
जीपीएफ घोटाला करने के लिए फर्जीवाड़ा करने वालों में शामिल बस्ती में तैनात लेखपाल राजेश पाठक पहले भी निलंबित हो चुका है। तीन साल पहले तक उसकी तैनाती गोरखपुर जिले में ही चकबंदी विभाग में थी। विभागीय कर्मचारियों की मानें तो करीब छह साल पहले उसे निलंबित किया गया था। हाईकोर्ट से स्टे लाकर वह नौकरी कर रहा है।
जीपीएफ घोटाले को लेकर एक कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी इस बात का पता लगाएगी कि कितना सरकारी धन निकाला गया है। कितने कर्मचारी इससे प्रभावित हुए हैं। विभागीय स्तर पर किस तरह की लापरवाही या चूक हुई है, यह भी जांच के बाद पता चल सकेगा। – राजेश कुमार सिंह, एडीएम वित्त एवं राजस्व।
लिपिक पर जालसाजी एक और केस, बंदोबस्त अधिकारी ने दी तहरीर
चकबंदी कार्यालय के लेखा लिपिक अरुण कुमार वर्मा के खिलाफ कोतवाली पुलिस ने रविवार की रात कूटरचित दस्तावेज तैयार कर जालसाजी करने का केस दर्ज किया।बंदोबस्त अधिकारी मातादीन मौर्य ने देर शाम थाने पहुंच तहरीर दी थी।जालसाज करने वाले मास्टर माइंड अरुण वर्मा को गोंडा पुलिस ने शनिवार को गिरफ्तार किया था। अधिकारियों के निर्देश पर उसके संपत्ति की जांच कराने की भी तैयारी चल रही है।
कोतवाली पुलिस को दिए तहरीर में बंदोबस्त अधिकारी ने लिखा है कि उनके पास आहरण-वितरण अधिकारी का भी कार्य है। बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी कार्यालय में भरवलिया बुजुर्ग निवासी अरुण कुमार वर्मा व कुशीनगर के तमकुहीराज निवासी पुनीत कुमार कनिष्ठ लिपिक के पद पर कार्यरत थे। अरुण वर्मा लेखा लिपिक व पुनीत जन शिकायत का काम देखते थे।संज्ञान में आया है कि अरुण वर्मा फर्जी एवं कूटरचित आदेेश के जरिए कर्मचारियों की फर्जी आइडी बनाकर मेरे डुप्लीकेट डिजिटल हस्ताक्षर का इस्तेमाल कर कोषागार से कर्मचारियों के रुपये निकाल रहा है। तहरीर के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है। सीओ कोतवाली वीपी सिंह ने बताया कि जांच चल रही है। साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई होगी।
गोंडा पुलिस ने की थी गिरफ्तारी
शनिवार को गोंडा पुलिस अरुण वर्मा समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया था।पूछताछ में पता चला कि फर्जी आइडी बनाकर उसने कर्मचारियों के जीपीएफ से 1.58 करोड़ रुपये निकाले हैं। इस मामले में बस्ती जिले का एक लेखपाल की पकड़ा गया था जो पूर्व में गोरखपुर में तैनात रहा है।गोंडा पुलिस ने अरुण वर्मा के अलावा गोंडा के वाबगंज थाना के पठकौली, कोल्हनपुर विशेन निवासी राजेश पाठक, वजीरगंज के नामून मौर्या, गोंडा के अरुण श्रीवास्वत और प्रदीप दूबे को गिरफ्तार कर जेेल भेजा था।