सामूहिक हत्याकांड में बरी गंभीर सिंह की आगरा सेंट्रल जेल से हुई रिहाई, बोला- ‘मैं बेगुनाह हूं मेरी जान को खतरा’

सामूहिक हत्याकांड में बरी गंभीर सिंह की आगरा सेंट्रल जेल से हुई रिहाई, बोला- ‘मैं बेगुनाह हूं मेरी जान को खतरा’
आगरा। अछनेरा के गांव तुरकिया में दंपती उनके चारों बच्चों की सामूहिक हत्या में साक्ष्य के अभाव सुप्रीम कोर्ट से बरी हुए गंभीर सिंह की बुधवार सुबह सेंट्रल जेल से रिहाई हो गई। गंभीर सिंह ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि उसे ईश्वर पर भरोसा था। वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करेगा। वह कहां जाएगा उसे खुद नहीं मालूम। गंभीर ने जेल से बाहर आने के बाद अपनी जान का खतरा बताते हुए सुरक्षा मांगी है।

2012 में हुई थी छह लोगों की सामूहिक हत्या

गांव तुरकिया में नौ मई 2012 को सत्य प्रकाश उनकी पत्नी पुष्पा और चार बच्चों की सामूहिक की हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने हत्याकांड सत्यप्रकाश के भाई गंभीर सिंह को जेल भेजा था। स्थानीय अदालत ने उसे मृत्यु की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था। पुलिस द्वारा विवेचना में लापरवाही और ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने 27 जनवरी को उसे बरी कर दिया था। 

 

नहीं पहुंचा सगा संबंधी और रिश्तेदार

रिहा होने पर गंभीर को जेल पर लेने कोई सगा संबंधी और रिश्तेदार नहीं आया था। गंभीर सिंह खंदौली में रहने वाले अपने जीजा काे कॉल किया, लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया। बाहर आने के बाद कहीं जाने के लिए उसके पास 300 रुपये थे। यह रकम उसे बैरक में रहने वाले साथी बंदियों राजवीर और विजय ने दी थी। 

बोला, मैं निर्दोष फंसाया गया

गंभीर सिंह का कहना है कि पुलिस ने उसे निर्दोष फंसाया था। उसे ईश्र पर भरोसा था कि उनके साथ अन्याय नहीं होने देगा। सेंट्रल जेल के जेलर दीपांकर भारती ने बताया कि मंगलवार देर रात बंदी गंभीर की रिहाई का परवाना आया था।बुधवार सुबह उसे रिहा कर दिया गया।

भाई-भाभी और भतीजों के नाम पर जेलों में लगाए 10-10 पेड़

गंभीर सिंह ने बताया कि भाई सत्य प्रकाश, भाभी पुष्पा और चारों आरती, कन्हैया, मछला व गुड़िया के नाम से जिला और सेंट्रल जेल में 10-10 पौधे लगाए थे। वह सजा सुनाए जाने से पहले जेलों मेंं बगिया कमान में काम करता था।

सजा मिलने के बाद नहीं कराया गया काम

गंभीर सिंह को निचली अदालत ने वर्ष 2017 में फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके बाद उसे बगिया कमान से हटा दिया गया था। उससे कोई काम नहीं लिया जा रहा था।