Farmer Protests: किसानों की आड़ में साधी जा रही है राजनीति, आंदोलन में कृषि कानून के साथ जोड़े कई और मुद्दे

नई दिल्ली । आंदोलन शुरू हुआ तीन कृषि कानूनों को लेकर और फिर उसमें पराली से लेकर बिजली संशोधन विधेयक तक सबकुछ जोड़ दिया गया। ऐसे में यह आशंका निराधार नहीं है कि किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। कहीं राजनीतिज्ञ तो कही बिजलीकर्मी किसानों की आड़ में अपना हित साध रहे हैं। देश में बिजली वितरण कंपनियों की हालत क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। इसके पीछे भी राजनीति ही जिम्मेदार है जो ऐन चुनाव के वक्त मुफ्त बिजली, पानी जैसी घोषणाएं करते हैं। हर्जाना वितरण कंपनियों को भुगतना पड़ता है और उसके बाद बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को जिन्हें बिजली कटौती, महंगी बिजली से जूझना पड़ता है। ऐसे में किसानों की ओर से जिस तरह संशोधन विधेयक के खिलाफ झंडा उठाया गया है, उससे सवाल खड़ा हो गया है।
किसानों को बिजली संशोधन विधेयक के बारे में नहीं दी गई है सही जानकारी
आंदोलन कर रहे किसानों का विरोध यह है कि इसके बाद सब्सिडी का डाइरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर नहीं हो पाएगा। किसानों को पहले बिल का भुगतान करना पड़ेगा और उसके बाद संबंधित सरकारें चाहें तो सब्सिडी वापस दे। यानी किसी राज्य को मुफ्त बिजली देनी हो तो उस पर रोक नहीं है लेकिन राज्य सरकारों को पैसा कंपनियों को देना होगा। क्या बीमार बिजली कंपनियां देश को रोशन कर सकेंगी। जाहिर है कि इसमें राजनीति शामिल है। विशेषज्ञों ने बताया कि अभी राज्य सरकार बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को किसानों को कम दर पर या मुफ्त में बिजली देने के लिए कह देती है और बाद में राज्य सरकार डिस्कॉम को किसानों को दी गई बिजली का पूरा भुगतान नहीं करती है, जिससे डिस्कॉम को घाटा उठाना पड़ता है और उस घाटे की भरपाई आम उपभोक्ताओं से की जाती है।
डिस्कॉम के खाते को दुरुस्त करने की कवायद कांग्रेस के शासन काल में शुरू कर दी गई थी और संशोधित बिल का प्रारूप कांग्रेस के शासन काल में ही तैयार किया गया था। तब देश भर में बिजली की भारी कटौती होती थी और उसे सुधारने के लिए बिजली कानून 2003 में संशोधन का मसौदा तैयार किया गया था। वर्ष 2010-11 के दौरान देश के अधिकतर राज्यों की डिस्कॉम भारी घाटे में चल रही थी और कई राज्यों की डिस्कॉम को बैंकों ने कर्ज तक देने से मना कर दिया था। उपभोक्ताओं को बिजली देने के लिए डिस्कॉम को बिजली उत्पादक कंपनियों से बिजली की खरीदारी करनी पड़ती थी, लेकिन राजनैतिक रूप से मुफ्त बिजली देने की घोषणा के कारण डिस्कॉम को अपनी खरीद राशि की भरपाई नहीं हो पाती थी। डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति को ठीक करने के लिए ही संशोधित बिल में डीबीटी के जरिए किसान या गरीबों को बिजली खरीदने के लिए नकदी ट्रांसफर करने का प्रावधान लाया गया है।
डिस्कॉम की वित्तीय हालत खराब होने से देश में बिजली उत्पादन क्षमता की कोई कमी नहीं होने के बावजूद कई राज्यों में घंटों बिजली की कटौती करनी पड़ती है क्योंकि डिस्कॉम के पास बिजली खरीदने के लिए पर्याप्त राशि नहीं होती है। दूसरी तरफ बिजली की खरीदारी नहीं होने से बिजली उत्पादक कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर पाती है। पूरी क्षमता पर बिजली उत्पादन नहीं करने व बिक्री की व्यवस्था नहीं होने से देश की कई बिजली परियोजनाएं ठप हो गई और भारी घाटे में चली गई जिससे बैंकों के एनपीए में बढ़ोतरी होती चली गई।