ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना पैर पसारे, दवाओं का अकाल

  • मुनाफाखोरो ने आपदा को बनाया अवसर

नकुड [इंद्रेश त्यागी]।  कोरोना ने अब ग्रामीण क्षेत्रों मे पांव पसारना शुरू कर दिया है। मरीजो की बढती संख्या व आरटीपीसीआर टेस्ट की रिर्पोट हफतो तक भी न आने से खतरा ओर भी बढ गया है। हालत बिगडने से नगर में आवश्यक दवाओ की कमी हो गयी है। जिससे मरीजों को जीवन दांव पर लगा है।

बडी संख्या मे लोग बुखार से पिडित है। नतीजतन अधिकांश लोग अपने घरो पर ही इलाज करवा रहे है। सरकारी अमला कोरोना को रोकने के लिये कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आरटीपीसीआर टेस्ट की रिर्पोट दस से बारह दिन तक भी मरीज को नंही मिल रही है। ऐसे मे यदि मरिज कोविड पोजिटिव होगा तो रिर्पोट आने तक वह सैंकडो अन्य लोगो को पोजिटिव कर देगा। दुसरे टेस्ट रिर्पोट नं आने से उसका कोविड इलाज भी शुरू नंही हो पाता। जिससे वह मरणासन्न की स्थिति मे पहुच जाता है। यही वजह है कि अधिकांश लोग समय पर इलाज न मिलने कारण मर रहे है।

उधर क्षेत्र मे  ग्रामीण क्षेत्रों मे भी लोग बुखार से पिडित है। बडी संख्या मे बुखार के पिडित होने के चलते नगर मे आवश्यक दवाओ की कमी हो गयी है। कई लोग आपदा को अवसर बना रहे है। दवाओं व थर्मामीटर व ओक्सीपल्समीटर जैसे उपकरणों की कालाबाजारी हो रही है। पेरासीटामोल व कोरोना मे प्रयोग होने वाली दवा फेरीपीरिविर जैसी दवाओ का बाजार मे अभाव है। चार सौ रूपये का आक्सी पल्स मीटर पदंरह सौ रूपये मे बेच कर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है। तो फेरीपिरिविर की दस गोलियों के पत्ते का 12 सौ रूपये तक मे बेचा जा रहा है।

खांसी व बुखार की अधिकांश दवाऐ बाजार से गायब है। ऐसे में मरीज पूरी तरह से भगवान के भरोसे है। जिनके पास पैसे है वे बडे प्राईवेट अस्पतालो मे जा रहे है। जबकि गरीब मरने को मजबूर है। लोग सरकार व प्रशासन को कोस रहे है। जिससे प्रदेश व केंद्र सरकार की छवि प्रभावित हो रही है।