न्यूयार्क: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि यह भारत और चीन दोनों के पारस्परिक हित में है कि वे एक-दूसरे को समायोजित करने का रास्ता खोजें। अगर वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो यह एशिया के उदय को प्रभावित करेगा, जो महाद्वीप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के एक दूसरे के साथ आने पर निर्भर है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र में भाग लेने के लिए आए जयशंकर ने यहां कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल आफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स के राज सेंटर में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व नीति आयोग के पूर्व वाइस चैयरमैन अर¨वद पनगढ़िया के साथ बातचीत के दौरान सीमा गतिरोध के बीच भारत और चीन के उदय पर एक सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की।

जयशंकर ने कहा, ‘हमारे समय में, हमने दुनिया में जो सबसे बड़ा बदलाव देखा है, वह चीन का उदय है।’ उन्होंने कहा कि एक ही समय में भारत की तुलना में चीन अधिक नाटकीय रूप से तेजी से आगे बढ़ा है। विदेश मंत्री ने आगे कहा, ‘आज हमारे लिए मुद्दा यह है कि किस तरह दो उभरती शक्तियां, एक-दूसरे के पूर्ण निकटता में, एक गतिशील स्थिति में एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाती हैं।’ इस सवाल पर कि क्या चीन चेन्नई में वाणिज्य दूतावास खोल सकता है, जयशंकर ने कहा, ‘इस समय चीन के साथ भारत के संबंध सामान्य नहीं हैं।’

जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में भारत का नहीं होना न केवल हमारे लिए अच्छा नहीं है, बल्कि यह वैश्विक निकाय के लिए भी अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद का विस्तार लंबे समय से प्रतीक्षित है। वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे जिसमें पूछा गया था कि भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने में और कितना समय लगेगा। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ साल में भारत दुनिया की तीसरे सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भी होगा। ऐसे देश का वैश्विक परिषद में नहीं होना किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा।