मौजूदा हेल्थ सिस्टम कोरोना से लड़ने में ध्वस्तः इलाहाबाद HC

मौजूदा हेल्थ सिस्टम कोरोना से लड़ने में ध्वस्तः इलाहाबाद HC
  • मौजूदा चिकित्सा सुविधाएं सामान्य समय में लोगों की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकतीं इसीलिए कोरोना महामारी के सामने इसे ध्वस्त होना पड़ा.

प्रयागराज: सरकार के कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने के उपायों और व्यवस्था पर अदालतें काफी कुछ कह रही हैं. अब फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते प्रकोप पर चिंता जताते हुए तीखी टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि कुछ महीनों में हमने महसूस किया है कि प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था  बहुत कमजोर है. मौजूदा चिकित्सा सुविधाएं सामान्य समय में लोगों की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकतीं इसीलिए कोरोना महामारी के सामने इसे ध्वस्त होना पड़ा. कोर्ट ने कहा कि इसमें सुधार की बहुत जरूरत है. यह आदेश कोरोना महामारी को लेकर व्यवस्था की निगरानी कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं न्यायमूर्ति अजीत कुमार की खंडपीठ ने दिया है.

प्रयागराज सहित पांच मेडिकल कॉलेज पीजीआई की तरह बनाएं
कोर्ट ने कहा कि प्रयागराज, आगरा, मेरठ, कानपुर और गोरखपुर मेडिकल कॉलेजों में चार महीने के भीतर संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान की तरह उन्नत सुविधाएं होनी चाहिए. उनके लिए भूमि अधिग्रहण के लिए आपातकालीन कानून लागू किया जाए. उन्हें तत्काल निधि प्रदान की जानी चाहिए. इसके लिए कुछ हद तक स्वायत्तता भी दी जानी चाहिए. सरकार इस मामले को लटकाए नहीं और अगली तारीख तक इस बात की एक निश्चित रिपोर्ट के साथ आए कि मेडिकल कॉलेजों का यह उन्नयन चार महीने में कैसे किया जाएगा.

प्रत्येक गांव को दी जाएं दो एम्बुलेंस 
गांवों और छोटे शहरी क्षेत्रों को सभी प्रकार की पैथोलॉजी सुविधाएं दी जानी चाहिए. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बड़े शहरों में लेवल-2 अस्पतालों के बराबर उपचार उपलब्ध कराया जाना चाहिए. यदि कोई रोगी ग्रामीण क्षेत्रों में या छोटे शहरों में गंभीर हो जाता है तो सभी प्रकार की गहन देखभाल की सुविधाओं के साथ एम्बुलेंस प्रदान की जानी चाहिए ताकि उस रोगी को बड़े शहर में उचित चिकित्सा सुविधा वाले अस्पताल में लाया जा सके. कोर्ट ने सुझाव दिया कि राज्य के प्रत्येक बी ग्रेड और सी ग्रेड शहर को कम से कम 20 एम्बुलेंस और हर गांव को कम से कम दो ऐसी एम्बुलेंस दी जानी चाहिए, जिनमें गहन चिकित्सा इकाई की सुविधा हो. कोर्ट ने एक माह के अंदर  एंबुलेंस उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया है ताकि इन एंबुलेंस से छोटे शहरों और गांवों के मरीजों को बड़े शहरों के बड़े अस्पतालों में लाया जा सके.

शहरी क्षेत्र की आबादी पर भी व्यवस्था नहीं 
खंडपीठ ने कहा कि पांच जिलों की जनसंख्या के आधार पर स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे के सम्बंध में वहां के डीएम की रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में शहरी आबादी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा बिल्कुल अपर्याप्त है और ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जीवन रक्षक उपकरणों की वास्तव में कमी है. अधिकांश जिलों में तो लेवल-3 अस्पताल की सुविधा नहीं है. चिकित्सा अधोसंरचना के विकास के लिए राज्य सरकार को उच्चतम स्तर पर ध्यान देना चाहिए. कोर्ट ने केंद्र एवं राज्य के स्वास्थ्य सचिवों अगली सुनवाई पर इस संबंध में एक रिपोर्ट पेश करने को कहा है.

नर्सिंग होम के लिए जरूरी मानक
कोर्ट ने नर्सिंग होम के लिए मानक भी बताए. कहा कि राज्य के सभी नर्सिंग होम/अस्पतालों के लिए अनिवार्य रूप से तय किया जाना चाहिए कि…

  • सभी नर्सिंग होम में प्रत्येक बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा हो
  • 20 से अधिक बेड वाले प्रत्येक नर्सिंग होम/अस्पताल में गहन देखभाल इकाइयों के रूप में कम से कम 40 प्रतिशत बेड हों
  • इन 40 फीसदी में से 25 प्रतिशत में वेंटिलेटर हो, 25 प्रतिशत में उच्च प्रवाह नाक प्रवेशनी हो और 40 प्रतिशत आरक्षित बेड में से 50 प्रतिशत में बीपैप मशीन हो
  • 30 से अधिक बेड वाले प्रत्येक नर्सिंग होम/अस्पताल में अनिवार्य रूप से ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र होना चाहिए

गांवों में नहीं हो रही कोविड जांच
कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर पांच छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर रिपोर्ट मांगी थी. प्रदेश सरकार की रिपोर्ट में से कोर्ट ने बिजनौर की रिपोर्ट पर कहा कि वहां की जनसंख्या के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाएं मात्र 0.01 प्रतिशत लोगों के लिए हैं. बिजनौर में लेबल थ्री और जीवन रक्षक उपकरणों की सुविधा नहीं है. सरकारी अस्पताल में सिर्फ 150 बेड हैं. ग्रामीण क्षेत्र की 32 लाख की आबादी के लिए रोजाना 1200 टेस्टिंग बहुत कम है. कोर्ट ने कहा कि रोज कम से कम चार से पांच हजार आरटीपीसीआर जांच होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि हम कोविड संक्रमितों की पहचान करने में चूक गए तो कोराना की तीसरी लहर को न्योता दे देंगे.


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