Exclucive: कृषि मंत्री ने कहा- पूरे देश से मिल रहा समर्थन, आंदोलित किसान भी चाहते हैं समाधान

Exclucive: कृषि मंत्री ने कहा- पूरे देश से मिल रहा समर्थन, आंदोलित किसान भी चाहते हैं समाधान

नई दिल्ली: आंदोलनकारी किसान संगठनों की ओर से अब तक वार्ता का कोई संदेश नहीं आया है, लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपने अनुभव के आधार पर भरोसा है कि आंदोलन में शामिल कई संगठन भी लड़ाई के बजाय समाधान चाहते हैं। सरकार की ओर से संशोधन के जो बिंदु बताए गए हैं वे उन्हें लेकर गंभीर हैं। देर है तो बस उस बेजा दबाव के घेरे को तोड़कर बाहर आने वाले किसान नेताओं की। वहीं, राजनीतिक दलों को खुद के गिरेबां में झांकने की सलाह देते हुए याद दिलाते हैं कि कोरोना काल में किसानों को खुले बाजार में उपज बेचने की इजाजत केंद्र सरकार की सलाह पर 26 राज्यों ने दी थी, जिसमें 10 से ज्यादा विपक्षी थे लेकिन वे अब विरोध कर रहे हैं।

दिल्ली की सीमा पर किसान 20 दिनों से आंदोलन पर बैठे हैं। कोई समाधान निकलने की गुंजाइश है?

– समाधान जरूर निकलेगा और जल्द निकलेगा।

लेकिन पिछले एक सप्ताह से तो वार्ता भी बंद है। फिर इस विश्वास का क्या कारण है?

– देखिए बड़ी संख्या में किसान संगठनों का भी यह मानना है कि समाधान निकलना चाहिए। सरकार ने अपनी ओर से उनकी हर आशंका को खत्म करने की कोशिश की। सच्चाई तो यह है कि शुरुआती बैठकों में ही जब हमने समाधान का रास्ता बताया था तो कई संगठन सहमत दिख रहे थे, लेकिन कुछ संगठनों ने किसी मंशा के साथ उनका रुख मोड़ दिया। सच्चाई धीरे-धीरे बाहर आ रही है। लोग समझ रहे हैं। बहुत जल्द वार्ता भी होगी और समाधान भी निकलेगा।

सरकार के पास जानकारी के बहुत से तंत्र होते हैं। किसानों की नाराजगी दिल्ली बार्डर तक पहुंच गई। क्या उनके आंदोलन को समझने में विलंब हुआ या कोई और बात है?

– समझने में कोई देर नहीं हुई। पंजाब में चल रहे आंदोलन के दौरान भी किसानों को 14 अक्टूबर को यहां बुलाकर फिर 13 नवंबर को मैंने खुद बातचीत की। लेकिन वे आंदोलन की घोषणा कर चुके थे, जिसे वे करना चाहते थे। अब वे इस परिस्थिति में आकर दिल्ली बार्डर पर बैठ गए। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकार से आश्वासन चाहते हैं तो मैंने उस समय कहा था यह तो हम दे सकते हैं। कहो तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पत्र लिखकर बता देते हैं। बाकी विषयों पर पांच-छह लोगों की कमेटी बनाकर दिक्कत वाले प्रावधानों पर संशोधन की बात कही गई। तब वे लोग पूर्व घोषित आंदोलन करना चाहते थे। हम लगातार वार्ता की पहल करते रहे और वे आंदोलन में करने में व्यस्त थे।

आपके कहने का मतलब है कि आंदोलन शुरू से राजनीतिक रास्ता अख्तियार कर चुका था?

– मुझे तो लगा कि किसान आंदोलन है तो किसान नेताओं से ही बात करनी चाहिए, लेकिन अब दिख रहा है कि उसमें राजनीति घुसी पड़ी है। वह भी एक बड़ा अवरोध है। मैंने कहा कि जिनको सियासत करनी है, वे लोकसभा और राज्यसभा में अपने विचार रख चुके हैं। विपक्षी दलों के नेताओं की संसदीय प्रोसीडिंग देखिए तो किसी ने प्रावधान पर आपत्ति नहीं की। राजनीतिक बातों का जवाब तो राजनीतिक ही होता है। प्रावधान पर आपत्ति करोगे तो सरकार इसी पर जवाब देगी। सियासी दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर सियासत न करें।

किसान आंदोलन में अब आरएसएस के दो संगठन भी कूद गए हैं। इसे कैसे देखते हैं?

– किसान संगठन स्वाभाविक रूप से अपने विचार रख सकते हैं। वे रिफार्म के विरोध में नहीं हैं। संगठनों का मिला-जुला मत है। कुछ लोग रिफार्म को ठीक कहते हैं पर एमएसपी के मौजूदा प्रावधान को ठीक नहीं मानते। एमएसपी पर कानून बनने चाहिए। बहुत सारे लोग रिफार्म के पक्ष में भी हैं। आंदोलनकारी संगठनों में भी ऐसे संगठन है, लेकिन वे बात रख नहीं पा रहे। पूरे देश में बुद्धिजीवी, जानकार व कृषि संगठनों ने इसका समर्थन किया। तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और हरियाणा के किसान संगठन मुझसे मिलने आए थे। उनका कहना था कि इन सुधारों की मांग तो बहुत पहले से हो रही थी। विभिन्न राज्यों के बहुत से किसान संगठन समर्थन देने के लिए मुलाकात का समय मांग रहे हैं। टिकैत गुट आंदोलन में शामिल है। लेकिन कानून पारित होने पर टिकैत का ही बयान था कि 27 साल बाद महेंद्र ¨सह टिकैत की आत्मा को शांति मिली है। दूसरे कुछ संगठनों और अधिकतर राजनीतिक दलों का भी यही हाल है। मैं तो कहता हूं कि किसान संगठन हो तो किसानों की बात करो, राहुल गांधी से प्रेरणा मत लो।

क्या सरकार कानून वापसी की मांग मंजूर कर सकती है?

– कानून वापसी का कोई औचित्य नहीं है। हां, किसानों की तकलीफ कम करने पर विचार होना चाहिए, जिसके लिए सरकार तैयार है। किसान यूनियनों की शंका का समाधान करने के साथ कानून में जरूरी संशोधन भी किए जा सकते हैं।

किसान संगठनों को एमएसपी को लेकर आशंका क्यों है? क्या मंडी सुधार कानून से व्यापारियों के कमीशन पर असर नहीं पड़ेगा?

– पीडीएस के लिए जरूरी खाद्यान्न की खरीद तो एमएसपी पर ही होनी है। इस पर मिलने वाला कमीशन भी व्यापारी को मिलेगा। इसकी आशंका निर्मूल है। कानूनी सुधार से किसानों के साथ व्यापारियों के कारोबार का दायरा बढ़ना भी तय है। प्रतिस्पर्धा से किसानों को भी लाभकारी मूल्य प्राप्त होगा।

राजनीतिक दलों की ओर से कहा जा रहा है कि आपने जल्दबाजी की। बहस नहीं की। सबसे बड़ी बात कि आप लोग अध्यादेश ले लाए। उसकी क्या जरूरत थी?

– पहली बात, कोई जल्दबाजी नहीं हुई। कृषि सुधार को लेकर चर्चा बहुत लंबे समय से चल रही थी। नेशनल फार्मर्स कमीशन, पाटिल कमेटी, भूपेंद्र हुड्डा कमेटी, योजना आयोग, फड़नवीस कमेटी समेत विभिन्न विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के आधार पर यह फैसला लिया गया है। शेतकारी संगठन के प्रगतिशील किसान नेता शरद जोशी ने कृषि सुधारों को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया था। इन गहन सिफारिशों के बाद कानून लाए गए हैं। रही बात अध्यादेश की तो कोरोना आपदा चरम पर थी। देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था। रबी सीजन की फसलों की कटाई हो चुकी थी। देश की सभी मंडियां नहीं खुल रही थीं। किसानों को उपज बेचने के लिए राज्य सरकारों को कोई विकल्प देने का आग्रह किया गया। उस समय मंडी से बाहर उपज बेचने का प्रावधान करने के बाबत अध्यादेश लाया गया। बहुत सोच समझकर किसानों की समृद्धि के लिए ये कानून लाए गए हैं। सच्चाई यह है कि राजनीतिक दल केवल विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं। रही बात अध्यादेश की तो कोरोना काल में जब केंद्र सरकार ने राज्यों को खुले बाजार में बिक्री की बात कही थी तो 26 राज्यों ने उसे अपनाया था क्योंकि यह किसानों के हित में था। अब उन्हें गलत लगने लगा।

जो नए कृषि कानून हैं वे फिलहाल कितने राज्यों में लागू हैं?

– पूरे देश में लागू हैं। ये केंद्रीय कानून हैं। राज्य चाहें तो नोटिफिकेशन जारी करे, न चाहें तो न करें, लेकिन यह उसी दिन से पूरे देश में लागू हैं जबसे केंद्र ने इन्हें अधिसूचित किया। पूरे देश के किसान स्वतंत्र हैं। उन्हें आजादी मिल गई है। तभी तो पूरे देश से किसान संगठन समर्थन जताने हमारे पास आ रहे हैं।