लखनऊ । आबकारी नीति घोटाले में सीबीआइ (CBI) ने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर शिकंजा कसा है। उत्तर प्रदेश में भी कई ऐसे घोटाले हैं, जिनकी सीबीआइ जांच चल रही है और पूर्ववर्ती सरकारों के कई मंत्री व चहेते आइएएस अधिकारियों की गर्दन फंसी है। कई मामलों में प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी मनी लांड्रिंग के तहत केस दर्ज कर छानबीन कर रहा है।
घोटालों की पड़ताल को लेकर विपक्ष जांच एजेंसियों को सरकार के हाथ की कठपुतली होने का दावा कर राजनीति को गरमा भी चुका है। ऐसे में इन घोटालों की जांच के कदम बढ़ने के साथ ही आने वाले दिनों में लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत भी गरमाती नजर आएगी।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 में पहली बार योगी सरकार के गठन के बाद गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की सीबीआइ जांच कराये जाने की संस्तुति की गई थी। नवंबर 2017 में सीबीआइ लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने मामले में सिंचाई विभाग के तत्कालीन चीफ इंजीनियर गुलेश चंद (अब सेवानिवृत्त) सहित आठ अधिकारियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू की थी।
इससे पूर्व सरकार ने मामले की न्यायिक जांच भी कराई थी। रिवरफ्रंट के निर्माण में हुई धांधली की परतें खुलने के साथ जांच की आंच तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन व सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव दीपक सिंघल तक भी पहुंच सकती है।
बहचर्चित खनन घोटाले में आरोपित सपा सरकार के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति जेल में हैं। सीबीआइ वर्ष 2012 से 2016 के मध्य हमीरपुर, शामली, देवरिया, फतेहपुर समेत अन्य जिलों में खनने में हुई धांधली की जांच कर रही है। इस घोटाले में सपा सरकार की करीबी अधिकारियों में गिनी जाने वाली हमीरपुर की तत्कालीन डीएम बी.चंद्रकला समेत अन्य आइएएस अधिकारी भी आरोपित हैं।
ईडी ने भी जनवरी, 2019 में खनन घोटाले में केस दर्ज कर अपनी जांच शुरू की थी। खनन घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री व सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की भूमिका को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। हालांकि अब तक जांच एजेंसियों ने उनसे सीधे कोई पूछताछ नहीं की है।
बसपा शासनकाल में हुआ 1100 करोड़ रुपये का चीनी मिल घोटाला भी इस कड़ी का एक हिस्सा है। वर्ष 2010 से 2011 के मध्य औने-पौने दामों में बेंची गईं 21 सरकारी चीनी मिलों की जांच सीबीआइ कर रही है।
सीबीआइ ने जुलाई, 2019 में बसपा सुप्रीमो मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी नेतराम, सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी विनय प्रिय दुबे व बसपा के पूर्व एमएलसी हाजी इकबाल के ठिकानों पर छापेमारी की थी।
इससे पूर्व आयकर विभाग ने नेतराम व उनके करीबियों के ठिकानों पर छापेमारी कर 225 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों के दस्तावेज कब्जे में लिए थे। जांच के दायरे में बसपा सरकार के तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी की भी भूमिका रही है। बिजली कर्मियों के भविष्य निधि घोटाले की भी सीबीआइ जांच चल रही है।
बसपा शासनकाल में हुए 1400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले की विजिलेंस जांच भी चल रही है। इस मामले में विजिलेंस बसपा सरकार के तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा से पूछताछ भी कर चुका है। स्मारक घोटाले की जांच ईडी भी कर रहा है। पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने बसपा का साथ छोड़ने के बाद अपनी जनअधिकार पार्टी का गठन कर लिया था और नसीमुद्दीन वर्तमान में कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं।