‘आपातकाल एक काला अध्याय’, शशि थरूर ने फिर कांग्रेस को घेरा; कहा- अब ये 1975 का भारत नहीं

नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर ने एक बार फिर से ऐसा बयान दिया है, जो उनकी पार्टी कांग्रेस को कुछ ज्यादा रास नहीं आएगा। थरूर ने देश में लगे इमरजेंसी की निंदा की और इसे एक काला अध्याय बताया है।
कांग्रेस सांसद ने कहा कि आजादी कैसे खत्म की जाती है, ये लोगों ने साल 1975 में देखा। लेकिन आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। यह पहली बार नहीं है कि शरूर ने पीएम मोदी की नीतियों की तारीफ की है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद अन्य देशों के दौरे पर गए भारतीय डेलिगेशन का हिस्सा रहे शशि थरूर ने विदेश धरती पर जमकर पीएम मोदी की तारीफ की थी।
आपातकाल पर थरूर का बड़ा बयान
आपातकाल को लेकर थरूर ने कहा कि आपातकाल को भारत के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में ही याद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसके सबक को भी पूरी तरह से समझा जाना चाहिए।
गुरुवार को मलयालम दैनिक दीपिका में आपातकाल पर प्रकाशित एक लेख में थरूर ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले दौर को याद किया और कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास अक्सर क्रूरत के ऐसे कृत्यों में बदल जाते थे, जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
‘संजय गांधी ने जबरन चलाया था नसबंदी अभियान’
शशि थरूर ने लिखा, “इंदिरा गांधी के बड़े बेटे संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया। गरीब ग्रामीण इलाकों में मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और जबरदस्ती का इस्तेमाल किया गया। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त किया गया। हजारों लोग बेघर हो गए और उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।”
‘1975 से अलग है आज का भारत’
कांग्रेस सांसद ने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह एक अनमोल विरासत है जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र को सभी लोगों के लिए एक स्थायी प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करने दें।”
उन्होंने कहा कि आज का भारत साल 1975 का भारत नहीं है। आज हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी आपातकाल के सबक चिंताजनक तरीकों से प्रासंगिक बने हुए हैं।
थरूर ने किसे दी चेतावनी?
शशि थरूर ने चेतावनी दी कि सत्ता को केंद्रीयकृत करने, असहमति को दबाने और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का लालच कई रूपों में सामने आ सकता है।
उन्होंने कहा, “अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है। इस लिहाज से आपातकाल एक कड़ी चेतावनी है। लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए।”