डॉ. बिंदेश्वर पाठक को शोभित विश्वविद्यालय द्वारा प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि प्रदान की गयी

गंगोह: शोभित यूनिवर्सिटी गंगोह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विश्वविख्यात भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं उद्द्यमी एवं पदम् भूषण जैसे नागरिक सम्मान से सम्मानित डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी को प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि प्रदान की गयी। डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने वर्ष 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी। संस्था मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरन स्वच्छता एवं ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्रोत और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है।
डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी को शोभित विश्वविद्यालय की और से प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। शोभित यूनिवर्सिटी गंगोह के कुलपति प्रोफ.(डॉ.) रणजीत सिंह ने स्वागत भाषण दिया। इसके साथ ही कुलपति महोदय ने डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी के द्वारा किये गए सामजिक सरोकार के कार्यों एवं उपलब्धियों को भी संक्षेप में रेखांकित किया। प्रोफेसरशिप का मानद उपाधि स्वीकार करते हुए डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने शोभित विश्वविद्यालय एवं कुलाधिपति श्री कुंवर शेखर विजेंद्र का धन्यवाद दिया और कहा की आज उनकी प्रोफेसर बनने की वर्षों की मनोकामना को शोभित विश्वविद्यालय ने पूरा कर दिया है। इसके लिए विश्वविद्यालय का बहुत बहुत धन्यवाद। उसके पश्चात् उन्होंने कहा की उनकी सामजिक जीवन की यात्रा और उस यात्रा के विभिन्न पड़ाव इतने आसान नहीं रहे।

उन्होंने कहा की समाज में जो भी बदलाव उनके या उनके संसथान के योगदान से हुए है उनके पीछे एक लम्बा संघर्ष रहा है। उन्होंने अपने भाषण में उपस्थित लोगों को अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताते हुए कहा की स्वच्छता के बिना व्यक्ति सम्मान और बेहतर स्वास्थ्य हासिल नहीं कर सकता ।इसी दृष्टि से 1970 में मैंने सुलभ आरंभ किया था। यह धीरे-धीरे आंदोलन में बदल गया और दुनिया में स्वच्छता का काम करने वाले गैर-सरकारी संस्थानों में सबसे बड़ा है। इसमें 60,000 स्वैच्छिक कार्यकर्ता हैं । हमारा आंदोलन दो प्रमुख उद्देश्यों पर केंद्रित है: स्वच्छता के लागत-प्रभावी उपायों के जरिए पर्यावरण और जल प्रदूषण को रोकना तथा मानव-मल की सफाई में लगे अस्पृश्य कहे जानेवाले लोगों की मुक्ति और पुनर्वास। अभी तक हमने 12,00,000 घरेलू और 8,500 सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया है. 10,000 से अधिक स्कैवेंजरों को मुक्त करवाया है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की मैं एक बड़े घर में पला-बढ़ा, जिसमें 9 कमरे थे, पर एक भी शौचालय नहीं था। मैं सोते हुए या अद्र्धनिद्रा में हर सुबह कुछ आवाजें सुनता था। कोई बाल्टी उठा रहा था, कोई पानी भर रहा था और महिलाएं सूर्योदय से पहले शौच के लिए बाहर जा रही होती थीं। उन्होंने कहा की यह कहानी भारत के करीब 7 ,00 ,000 गावों एवं सैकड़ो शहरों की थी। मेरी शिक्षा चार स्कूलों में हुई पर उनमे से किसी में भी शौचालय नहीं था। पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातक करके मुझे 1968-69 में बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति के भंगी मुक्ति विभाग में काम करने का मौका मिला। समिति ने मुझे सुरक्षित और सस्ती शौचालय तकनीक विकसित करने और दलितों के सम्मान के लिए काम करने को कहा ताकि उन्हें मुख्य धारा में शामिल किया जाए। एक उच्च जाति के एक पढ़े-लिखे युवक के लिए यह एक गलत कदम माना जाता था । लेकिन इसने मेरे व्यक्तित्व में बड़ा बदलाव किया और मेरे जीवन का रुख ही मोड़ दिया। उन्होंने कहा की उनके जीवन में नया मोड़ तब आया, जब वह बेतिया की दलित बस्ती में तीन महीने के लिए उनके बीच रहने गए । उस समय देश में जाति-प्रथा चरम पर थी। उनके साथ रहते हुए मैंने कई चीजें देखीं, जिन्होंने मेरी आंखें खोल दीं। इस वर्ग की पीड़ा दर्दनाक थी। तब मैंने अपना जीवन स्कैवेंजरों के लिए समर्पित करने की ठान ली। मैंने अपने दिमाग का इस्तेमाल किया, गहन शोध किया और इस विषय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की किताब की मदद से 1968 में एक टू-पिट पोर-कलश, डिस्पोजल कंपोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो सरलतापूर्वक स्थानीय वस्तुओं से, कम लागत पर बनाया जा सकता था। यह आगे चलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव-अपशिष्ट के निपटान के लिए बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया।
इससे प्रोत्साहित होकर मैंने 1974 में शहरी क्षेत्रों में ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार पर सामुदायिक शौचालयों की अवधारणा विकसित की। इसे सबसे पहले बिहार और फिर पूरे भारत में लोकप्रियता मिली। धीरे-धीरे मैंने इस व्यावहारिक नीति का विकास किया कि एक गैर-सरकारी संगठन सरकार, स्थानीय निकायों, नागरिकों और लाभार्थियों मध्य किस प्रकार एक उत्प्रेरक के तौर पर काम कर सकता है। इस रास्ते को अपनाकर सुलभ ने सरकारी, गैर-सरकारी संगठन की साझेदारी का सफल उदाहरण दिया।
उन्होंने अपने लम्बे जीवन वृतांत के बारे में बोलते हुए कहा की हमने राजस्थान के अलवर में भी व्यावसायिक प्रशिक्षण-केंद्र की स्थापना की है। यहां दलित महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और ब्यूटी केयर में प्रशिक्षण दिया जाता है, जो पहले सिर पर मैला ढोने का काम करती थीं। 2008 में प्रशिक्षण पाने वाली करीब तीन दर्जन महिलाओं को हम न्यूयॉर्क ले गए, ताकि वे संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फैशन शो में शिरकत कर इंटरनेशनल इयर ऑफ सैनिटेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकें।अंत में उन्होंने अपने सम्बोधन को विराम देते हुए कहा की सुलभ ने देश में जो भी योगदान दिए हैं, वह शौचालयों की संख्या में खो जाते हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य सिर्फ शौचालय ही नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव तथा मानवीय विकास है। उन्होंने एक बार फॉर से शोभित विश्विद्यालय एवं कुलाधिपति महोदय का आभार व्यक्त किया की उन्होंने उनके एवं उनकी संस्था के द्वारा किये जा रहे कार्यों को सराहा एवं उन्हें सम्मानस्वरूप प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि प्रदान की।
कार्यक्रम में मंच साझा कर रहे मिनिस्ट्री ऑफ़ लॉ एंड जस्टिस के जॉइंट सेक्रेटरी अनूप कुमार वार्ष्णेय जी ने अपने सम्बोधन में सर्वप्रथम डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी को प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि मिलने पर बधाई दी एवं याद किया की बचपन में जब वो स्कूल में पढ़ते थे तब सुलभ शौचालय के बारे में सुना करते थे और इसकी बहुत प्रशंसा भी होती थी। उन्होंने डॉ. पाठक को उद्बोधित करते हुए कहा की की आपने बहुत ही अनूठा मिशन अपने हाथ में लिया और उसे तमाम बाधाओं के बाबजूद उसे पूरा भी किया। इसके लिए आप अभिनन्दन के पात्र है। अनूप कुमार जी ने शोभित विश्वविद्यालय एवं कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेंद्र जी की भी प्रशंसा की की उन्होंने डॉ. पाठक के प्रयासों को सम्मानित किया इसके लिए आप भी बधाई एवं सादुवाद के पात्र है।
कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में शोभित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेंद्र जी ने सर्वप्रथम प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि स्वीकार करने के लिए डॉ. बिंदेश्वर पाठक जी का धन्यवाद किया और उनको प्रोफेसर बनने पर बधाई भी दी। साथ ही कुलाधिपति महोदय ने कार्यक्रम में उपस्थित पदमश्री से सम्मानित उषा शर्मा जी को भी आमंत्रित किया की वो भी अपने और अपने संघर्ष एवं उनके जीवम में किस तरह से डॉ. पाठक बदलाव लाये इसको रेखांकित करें। कुंवर शेखर विजेंद्र जी ने एक कार्यक्रम को याद करते हुए बताया की उस कार्यक्रम में उन्होंने डॉ. पाठक से पूछा की कोई ऐसा सपना भी है जो अभी आप पूरा करना कहते हो तो डॉ. पाठक ने कहा की वास्तव में वो प्रोफेसर बनना चाहते थे। तभी कुलाधिपति महोदय ने उनको शोभित विश्वविद्यालय की और से प्रोफेसरशिप की मानद उपाधि को ग्रहण करने की पेशकश की और डॉ. पाठक ने उसे सहर्ष स्वीकार किया और अंगीकार भी किया। कुलाधिपति महोदय ने बताया की डॉ. पाठक द्वारा समाज के लिए किये गए अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उनको देश के तृतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम् भूषण से सम्मानित किया था।कुंवर शेखर विजेंद्र जी ने कहा की डॉ. पाठक का जीवन अपने आप में एक संसथान है और आज का युवा उनसे बहुत कुछ सिख सकता है। कुलाधिपति महोदय ने डॉ. पाठक का , उनकी संस्था का एवं उससे जुड़े सभी लोगों का और सभी उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया की उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया।