लखनऊ। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने राय दी है कि मुसलमानों को समान नागरिक संहिता के मुद्दे को तूल नहीं देना चाहिए। यह कहते हुए कि समान नागरिक संहिता सिर्फ मुसलमानों का मुद्दा नहीं है और दूसरे समुदाय भी इसे स्वीकार नहीं करेंगे। बोर्ड ने यह भी सुझाव दिया है कि समान नागरिक संहिता के खिलाफ किसी किस्म के आंदोलन या प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में रविवार को नदवा कालेज में आयोजित बैठक में हुई चर्चा के आधार पर यह सुझाव सामने आया। मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर बोर्ड की सक्रियता को लेकर इंटरनेट मीडिया पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। ऐसे मसलों पर अपनी भूमिका को लेकर बोर्ड आलोचना का भी शिकार हो रहा है। माना जा रहा है कि रविवार को हुई बैठक आलोचनाओं को विराम देने के लिए मकसद से बुलाई गई थी।

सूत्रों के अनुसार मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने हिजाब विवाद पर कहा कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद का लिबास पहनने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब विवाद पर फैसला सुनाते हुए संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 26 के प्राविधानों को नजरअंदाज किया है। लिहाजा बोर्ड को कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट में विधि विशेषज्ञ और धार्मिक मामलों के जानकार यह स्पष्ट करेंगे कि इस्लाम का हिस्सा क्या है और क्या नहीं है। बोर्ड बैठक में यह उम्मीद जतायी गई कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी। बैठक में यह भी मंशा जतायी गई कि राजनीतिक दृष्टि से उठाये गए हर मुद्दे को तूल देने की बजाय स्थानीय स्तर पर ही इनका समाधान ढूंढ़ा जाए जिससे कि वितंडा न खड़ा हो।

मध्य प्रदेश के स्कूलों में गीता को पढ़ाये जाने को लेकर भी बैठक में चर्चा हुई। कहा गया कि सरकारी स्कूल संविधान के तहत संचालित होते हैं। एक धर्मनिरपेक्ष देश के स्कूलों में किसी धर्म विशेष की किताबों का पढ़ाना अनिवार्य नहीं करना चाहिए। इससे देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान पहुंचेगा।

बोर्ड ने इस पर भी चर्चा की कि उसे मुसलमानों से जुड़े किन मुद्दों पर स्टैंड लेना चाहिए और किन पर नहीं। इस पर सहमति जतायी गई कि बोर्ड जिन उद्देश्यों से कायम हुआ था, वह उन्हीं मकसदों के लिए काम करेगा। बोर्ड बनाने का मकसद मुस्लिम पर्सनल और फैमिली ला से जुड़े मुद्दों पर काम करना था जिससे कि मुसलमान इस्लामी तरीके से जिंदगी गुजार सकें।

बैठक में एक सुझाव यह भी दिया गया कि बोर्ड राज्य, मंडल और जिला स्तर पर संयोजक नियुक्त करे लेकिन इस पर फैसला नहीं हो पाया। कहा गया कि इसके बारे में बोर्ड के अध्यक्ष और महासचिव फैसला करेंगे। अलबत्ता यह मशविरा भी दिया गया कि बोर्ड अपने सदस्यों को जिम्मेदारी दे कि वे अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहें।

बैठक में बोर्ड के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी, कार्यकारी सदस्य मौलाना सैयद अरशद मदनी, मौलाना मोहम्मद सूफियान कासमी, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, मौलाना सैयदातुल्लाह हुसैनी रहमानी, मौलाना महफूज उमरैन रहमानी, मौलाना अनीसुर्रहमान, डा.कासिम रसूल इलियास, कमाल फारुकी, डा.असमां जेहरा, निकहत परवीन आदि मौजूद थे।