दिगंबर चर्या ही सर्वोच्च तपस्या: आचार्य विमर्श सागर जी महाराज

दिगंबर चर्या ही सर्वोच्च तपस्या: आचार्य विमर्श सागर जी महाराज
  • सहारनपुर में ज्ञान की अमृतवर्षा करते आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महाराज।

सहारनपुर। राष्ट्रीय योगी, राष्ट्र गौरव भावलिंगी संत दिगंबर आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महाराज ने आज पत्रकार वार्ता में दिगंबर मुनियों की चर्या और जीवन पद्धति पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जब किसी व्यक्ति के मन में वैराग्य की भावना जागृत होती है, तभी वह दिगंबर संत बनने के मार्ग पर आगे बढ़ता है।

उन्होंने कहा कि बाहरी त्याग से अधिक आवश्यक है, अंतरंग राग, द्वेष और मोह का त्याग। आचार्य श्री आज यहां वीर नगर जैन बाग स्थित श्री जैन मंदिर में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दिगंबर मुनि नंगे पांव यात्रा करते हैं ताकि किसी भी सूक्ष्म जीव की हिंसा न हो। वे अहिंसा को सर्वोच्च धर्म मानते हैं और 24 घंटे में केवल एक बार विधिपूर्वक आहार ग्रहण करते हैं। अगर विधि उपलब्ध नहीं होती, तो वे उस दिन आहार नहीं लेते।

उन्होंने बताया कि मुनियों की दिनचर्या प्रात: 3रू30 बजे शुरू होती है, जिसमें स्वाध्याय, समायिक, प्रतिक्रमण, और धर्म चर्चा जैसे तप शामिल होते हैं। भक्तों के दर्शन का समय प्रात: 10 बजे तक ही होता है। आचार्य श्री ने बताया कि आगामी 10 जुलाई 2025 को जैनबाग स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर में चातुर्मास कलश स्थापना का आयोजन होगा। इस शुभ अवसर पर देशभर से श्रद्धालु सहारनपुर पहुंचेंगे।

केवल पुण्यशाली श्रावक ही आचार्य श्री के निर्देशन में कलश स्थापना कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि चातुर्मास के चार महीनों के दौरान सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति अधिक होती है, इसीलिए जैन मुनि एक स्थान पर रहकर अपने ज्ञान और साधना से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करते हैं। इस अवसर पर जैन समाज  के अध्यक्ष राजेश कुमार जैन, संरक्षक राकेश जैन, महामंत्री संजीव जैन सहित अनेक पदाधिकारी एवं श्रद्धालु उपस्थित रहे।