निजीकरण से 76,500 बिजली कर्मियों की नौकरी पर संकट, निर्णायक संघर्ष की तैयारी
सहारनपुर। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने चेतावनी दी है कि यदि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया गया तो लगभग 76,500 बिजली कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।
समिति ने कहा कि निजीकरण के खिलाफ चल रहे आंदोलन के 267वें दिन प्रदेशभर में बिजली कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन कर निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया। संघर्ष समिति ने कहा कि सेवा करेंगे और हक भी लेंगे उनका नारा है। समिति के पदाधिकारियों के अनुसार, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में 17,500 तथा दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 10,500 नियमित कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि दोनों निगमों में करीब 50,000 संविदा कर्मी भी काम कर रहे हैं। पावर कारपोरेशन अध्यक्ष द्वारा कर्मचारियों को निजीकरण के बाद तीन विकल्प दिए गए हैंकृपहला निजी कंपनियों की नौकरी स्वीकार करना, दूसरा अन्य निगमों में जाना और तीसरा स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति। समिति ने इन विकल्पों को कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया।
समिति ने कहा कि जो कर्मचारी निजी कंपनियों से छोडक़र सरकारी नौकरी में आए थे, उन्हें अब फिर निजी कंपनियों में जाने के लिए कहना पूरी तरह अन्याय है। समिति ने दिल्ली और चंडीगढ़ के उदाहरण दिए। दिल्ली में वर्ष 2002 में निजीकरण के एक वर्ष के भीतर 45: बिजली कर्मियों ने समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी, जबकि हाल ही में 1 फरवरी 2025 को चंडीगढ़ विद्युत विभाग के निजीकरण के दिन ही लगभग 40: कर्मचारियों ने सेवा छोड़ दी। संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण केवल कर्मचारियों ही नहीं बल्कि उनके परिवारों के लिए भी अंधेरे का संदेश लेकर आ रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक निजीकरण का निर्णय वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन अनवरत जारी रहेगा।
