कांग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया, नागरिकता संशोधन बिल लाने को हुए मजबूर: शाह
क्या-क्या कहा शाह ने
इसके बाद शुरू हुई चर्चा के दौरान शाह ने कहा- मैं पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि ये बिल संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं करता है। सभी ने अनुच्छेद 14 का उल्लेख किया। ये अनुच्छेद कानून बनाने से रोक नहीं सकता। पहली बार नागरिकता पर फैसला नहीं हो रहा है। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था कि बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी। कांग्रेस शासन में युगांडा से आए लोगों को नागरिकता दी गई।
सदन में हंगामा होने पर शाह ने कहा कि सरकार को पांच साल के लिए चुना है, हमें सुनना पड़ेगा। उन्होंने कहा, भारत से सटे तीन देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान का प्रमुख धर्म इस्लाम है। अफगानिस्तान का संविधान कहता है कि यहां का धर्म इस्लाम है, संविधान के मुताबिक, पाकिस्तान राज्य का धर्म भी इस्लाम है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश में मुसलमान पर अत्याचार होगा? ये कभी नहीं होगा। तीनों देशों में अल्पसंख्यकों की धार्मिक प्रताड़ना होती है। कांग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन किया। विभाजन नहीं हुआ होता तो इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती। कांग्रेस ने हमें मजबूर किया।
अगर कोई मुसलमान हमारे कानून के आधार पर अपील करता है तो उसे सुना जाएगा। चूंकि उनके साथ धार्मिक प्रताड़ना नहीं हुई है, इसी आधार पर ये बिल लाया गया है और छह धर्मों हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी नागरिकों को नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
बिल पर सियासी संग्राम
बता दें कि इस बिल को लेकर सियासी संग्राम मचा हुआ है। कांग्रेस सहित कई दल यह कहते हुए इसका विरोध कर रहे हैं कि ये बिल अल्पसंख्यक विरोधी है। जबकि सरकार का मानना है कि ये बिल देश में रह रहे अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। इस मुद्दे पर सरकार का साथ दे रहे हैं जनता दल, अकाली दल और लोजपा। वहीं शिवसेना इसमें बदलाव की मांग कर रही है। कांग्रेस का साथ टीएमसी, यूआईडीएफ, समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियां दे रही हैं।