कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश को बांटा, इसलिए लाना पड़ा नागरिकता बिल : शाह

कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश को बांटा, इसलिए लाना पड़ा नागरिकता बिल : शाह

खास बातें

  • नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 हंगामे के बीच लोकसभा में पारित
  • बिल पेश करने पर मतदान, समर्थन में 293 और विरोध में 82 मत पड़े
  • शाह की कांग्रेस को चुनौती, भेदभाव साबित करे तो बिल वापस ले लूंगा
  • मुस्लिमों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना हुई तो उन्हें भी लाभ पर विचार
  • अब राज्यसभा में जाएगा बिल, भाजपा ने सांसदों के लिए जारी किया व्हिप

लोकसभा में सोमवार को भारी शोर-शराबे के बीच नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पारित हो गया। हालांकि, विधेयक पेश करने से पहले सदन में करीब एक घंटे तक तीखी नोकझोंक हुई। हंगामा नहीं थमा तो दोपहर करीब डेढ़ बजे विधेयक को पेश करने पर मतदान हुआ। विधेयक को पेश करने के पक्ष में 293 और विपक्ष में 82 मत पड़े। अब यह बिल राज्यसभा में जाएगा। भाजपा ने इसे लेकर अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है।

विधेयक पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के मुस्लिमों से भेदभाव के आरोपों पर उसके शासनकाल की याद दिलाई। शाह ने कहा, 1971 में इंदिरा गांधी ने निर्णय किया था कि बांग्लादेश से जितने लोग आए हैं, सारे लोगों को नागरिकता दी जाए, तो फिर पाकिस्तान से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? उन्होंने सवाल किया कि जब अनुच्छेद 14 ही था तो फिर बांग्लादेश ही क्यों?

उन्होंने कहा, वहां नरसंहार रुका नहीं है। वहां आज भी अल्पसंख्यकों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। उसके बाद युगांडा से आए लोगों को कांग्रेस के शासन में नागरिकता दी गई। तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? फिर दंडकारण्य कानून लाकर नागरिकता दी गई। उसके बाद राजीव गांधी ने असम अकॉर्ड किया। उसमें भी 1971 का ही कट ऑफ डेट रखा तो क्या समानता हो पाई। हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है।

शाह ने सवाल किया, अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार कैसे होंगे, बताएं। समानता का कानून कहां चला जाता है? अल्पसंख्यकों को अपना शैक्षणिक संस्थान चलाने का अधिकार क्या समानता के कानून के खिलाफ है क्या? उन्होंने कहा कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ।

शाह ने कहा, इसमें भारत-पाकिस्तान ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के संरक्षण का संकल्प लिया। भारत में तो इसका गंभीरता से पालन हुआ, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए जोर-जुल्म से दुनिया अवगत है। तीनों राष्ट्रों में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और ईसाई इन सभी धर्मावलंबियों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना हुई।