चीन में कोविड19 महामारी के वैक्सीन पर क्लीनिकल ट्रायल-2 शुरू, इंसानों पर हो रहा प्रयोग

- चीन ने कोरोना वायरस के वैक्सीन के विकास में शुरुआती बढ़त ले ली है
- चीन में वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल का दूसरा चरण चल रहा है
- दूसरे चरण में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश की गई है
- चीन ने वैक्सीन का काम तब तेज किया था जब US ने ट्रायल शुरू कर दिया था
पेइचिंग
वुहान जहां से कोरोना वायरस का पहला केस सामने आया, अब वहीं चीन कोविड19 महामारी के वैक्सीन पर क्लीनिकल ट्रायल कर रहा है। यह ट्रायल का दूसरा फेज बताया जा रहा है। दरअसल, कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार के बीच दुनियाभर में इसकी दवाई ढूंढने की रेस तेज हो गई है। यह वैक्सीन चीन के इंस्टिट्यूट ऑफ बायोटेक्नॉलजी, अकैडमी ऑफ मिलिटरी मेडिकल साइंसेंज ऑफ चाइना द्वारा बनाई गई है। मानव शरीर पर रविवार को इसका दूसरी बार ट्रायल शुरू किया गया। इस काम में 500 वॉलिंटियर को लगाया गया है।
दूसरे फेज में वैक्सीन की क्षमता की जांच
सरकारी मीडिया चाइना डेली के मुताबिक, सबसे अधिक उम्र के वॉलिंटियर की उम्र 84 साल है वो वुहान के रहने वाले हैं। उन्हें सोमवार को वैक्सीन दी गई थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि वैक्सीन को जेनेटिक इंजिनियरिंग पद्धति से बनाया गया है और यह कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली बीमारी को रोकता है। पहले फेज में वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल में मुख्य ध्यान इसकी सुरक्षा पर था, बल्कि दूसरे फेज में ध्यान इसकी क्षमता पर दिया जा रहा है। पहले फेज से उलट, दूसरे में ज्यादा लोगों को जोड़ा गया और वॉलिंटियर्स को इससे जोड़ने का अभियान गुरुवार को ही शुरू कर दिया गया था। पहला फेज मार्च में पूरा हो गया था।
चीन की सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रहे शोध के प्रकाशन पर लगाई रोकचीन की सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रहे शोध के प्रकाशन पर रोक लगा दी है। दो विश्वविद्यालयों द्वारा प्रकाशित ऑनलाइन शोध को हटा दिया गया है। इसके साथ ही नई नीति के तहत कोरोना वायरस पर तमाम एकाडेमिक पेपर की गहन समीक्षा की जाएगी उसके बाद ही उसे प्रकाशित किया जा सकेगा। कोरोना के संक्रमण का पहला मामला चीन में आया था। वहां पर इससे 81,000 लोग प्रभावित हुए थे और 3000 लोगों की मौत हुई थी। इस समय पूरी दुनिया में 1.6 मिलियन लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं।
दवा ढूंढने की ऐसे शुरू हुई वैश्विक होड़
कोविड19 महामारी का प्रसार होते ही चीन के दूसरे इंस्टिट्यूट्स ने भी बीमारी के वैक्सीन पर काम करना शुरू कर दिया था। अमेरिका के सिएटल और वॉशिंगटन में केसर पर्मानेटे रिसर्च फैसिलिटी में वैक्सीन पर काम शुरू होने के बाद चीन ने दवाई ढूंढने का काम तेज कर दिया था। इसके बाद से ही दवा बनाने की वैश्विक होड़ शुरू हो गई। भारत में भी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक लैब में वैक्सीन पर काम कर रहा है और जबकि ऑस्ट्रेलिया व ब्रिटेन में भी काम जारी है।
वैक्सीन बनाने में चीन को मिली शुरुआती बढ़त
मौजूदा समय में घातक कोरोना वायरस को रोकने के लिए कोई प्रभावी दवा मौजूद नहीं है। हालांकि, कई देशों में दवाइयों का क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चीन ने वैक्सीन के निर्माण में संभवतः शुरुआती बढ़त ले ली है। इसकी वजह यह है कि वह नोवेल कोरोना वायरस के जीनोम सिक्वेंस की मैपिंग कर चुका है और वह इसलिए क्योंकि वायरस का मामला सबसे पहने चीनी शहर वुहान में ही आया था। चीन ने इसके बाद डब्ल्यूएचओ, अमेरिका और अन्य देशों के साथ जीनोम सिक्वेंस को साझा किया है।
चमगादड़ से फैले कोरोना का भालू-बकरी से इलाज करेगा चीन!कोरोना वायरस के इलाज के लिए चीन ने एक ऐसा कदम उठाया है जो पूरी दुनिया का ध्यान खींच रहा है। चीन ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए भालू के पित्त और बकरी सींगों से बनी दवाओं के इस्तेमाल को मंजरी दी है। देखिए ये विडियो रिपोर्ट।
कोरोना के ऑरिजिन संबंधी शोध प्रकाशन पर लगा चुका है रोक
वैक्सीन के विकास पर चीन को बढ़त ऐसे समय में मिली है जब शी चिनफिंग सरकार ने देशभर में कोविड19 से जुड़े शोध के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया है। यानी कि अब इससे संबंधित किसी भी शोध को प्रकाशित करने से पहले कई स्तर की जांच का सामना करना होगा। चीन ने कोरोना वायरस के ऑरिजिन यानी उत्पत्ति को लेकर हो रहे शोध पर भी नियंत्रण कर लिया है। शिक्षा विभाग ने यूनिवर्सिटीज को निर्देश दिया है कि अंतरराष्ट्रीय मैगजीन में प्रकाशन से पहले शोध उसे भेजे जाएं और उसकी मंजूरी के बाद ही प्रकाशन की मंजूरी मिलेगी।