चीन का आर्थिक साम्राज्यवाद: डोनाल्ड ट्रंप की नाक के नीचे अमेरिका में तैयार होते रहे जासूस!

चीन की साम्राज्यवादी नीति कोई नई नहीं है। 1949 में कम्युनिस्ट शासन आते ही वह तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान (चीनी नाम शिंजियांग), दक्षिणी मंगोलिया, हांगकांग, मकाओ और ताइवान पर कब्जा जमा जा चुका है या अपना हिस्सा बताता है। इस बीच भारत से सटी सीमा पर भी उसकी बुरी निगाहें किसी से छिपी नहीं है। बीते सोमवार लद्दाख के गलवां घाटी में हुई हिंसक झड़प उसी का परिणाम थी। अब चीन नई चाल से दुनियाभर में अपने पांव पसार रहा है। छोटे-छोटे विकासशील देशों को अधोसंरचना खड़े करने के लिए कर्ज दे रहा है, फिर जब लोन सिर से ऊपर चला जाता है तो उस देश की संपत्ति ही हड़प लेता है। अब बात करते हैं ड्रैगन के ‘आर्थिक साम्राज्यवाद’ की, कैसे चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की नाक के नीचे ही उसकी शिक्षा प्रणाली के रास्ते उसकी खुफिया जानकारी हासिल करने का मास्टर प्लान बना चुका था।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय कम्युनिस्ट विचाराधारा का गढ़ माना जाता रहा है। फरवरी 2020 में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी विश्वविद्यालयों को 2013 की शुरुआत से चीनी फंडिंग मिल रही है। यह वह दौर था जब शी जिंनपिंग ने चीन की बागडोर अपने हाथों में ली थी, 115 अमेरिकी कॉलेजों को चीन से पैसा मिलता रहा। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एजूकेशन की माने तो 2013 से लेकर जून 2019 तक हार्वर्ड को अलग-अलग बहाने से चीन ने सवा सात अरब रुपये दे दिए।

बात सिर्फ अनुदान, चंदा या उपहार तक ही नहीं रूकी। अमेरिका में पिछले एक दशक में चीनी छात्रों की संख्या तिगुनी हो गई। 2019 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राज्य में चीनी छात्रों की संख्या 3 लाख 70 हजार के आसपास है, जो यहां पढ़ने वाले कुल (10 लाख 95 हजार 299) विदेशी छात्रों की एक तिहाई संख्या है। इसके बाद भारत का नंबर आता है। अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों का अनुपात 18 फीसद है। यह लगातार चौथा साल था, जब यहां 10 लाख से ज्यादा विदेशी छात्र शिक्षा लेने के लिए पहुंचे थे। विदेशी छात्रों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उस साल 44.7 अरब डॉलर (लगभग तीन लाख करोड़ रुपये) का मुनाफा हुआ था।

इकलौती बेटी को भी दिलाया हार्वर्ड में दाखिला

शी मिंगजी, चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग की इकलौती बेटी – फोटो : ट्विटर
जिंनपिंग ने इन्हीं फंडिंग के बूते अपनी इकलौती बेटी शी मिंगजी का दाखिला हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में करवाया। 2010 से 2014 के बीच मिंगजी ने पहले स्नातक और फिर स्नाकोत्तर की पढ़ाई भी इसी विश्वविद्यालय से पूरी की। अपनी बेटी को वजह बनाकर चीनी राष्ट्रपति शी विश्वविद्यालय में आने-जाने लगे। यह दौरे कभी आधिकारिक तो कभी निजी होते थे। अपनी बेटी की पढ़ाई पूरी होने के बाद भी उनका हार्वर्ड से लगाव कम नहीं हुआ।

हाल ही में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष लॉरेंस बेको और उनकी पत्नी एडेल फ्लीट बेको के साथ भी मुलाकात की थी। जिंनपिंग के बाद चीन के कई शीर्ष नेताओं ने अपनी संतानों का दाखिला येल यूनिवर्सिटी में करवाया। बाद में उसे भी चीन से भारी अनुदान मिला। अब सवाल यह उठता है कि आखिर चीन अमेरिका की यूनिवर्सिटिज में पानी की तरह पैसे बहा क्यों रहा था?

इन सबके पीछे चीन एक बेहद गहरी साजिश रच रहा था

डॉक्टर चार्ल्स लीबर – फोटो : ट्विटर
दूसरे की जमीन को हड़पने वाला चीन बिना किसी स्वार्थ के हार्वर्ड और येल को अरबों रुपये उपहार में कभी नहीं देगा, इसके पीछे उसकी गहरी साजिश थी। दरअसल, चीन को पता है कि दुनिया के बेहतरीन शिक्षाविद यहां अध्ययन करते हैं, जिसके बाद वह पैसों के लालच के दम पर अमेरिका के ट्रेड सीक्रेट, गुप्त रक्षा तकनीक, रिचर्स पेपर चुराने के लिए एक सीक्रेट मिशन बनाता है। चीन ने इन सूचनाओं के चुराने को लिए बाकायदा एक खास प्रोग्राम तैयार किया और इसके लिए भर्तियां भी कीं, जिसमें अमेरिकी मूल के लोगों को रखा गया, जो उसतक आसानी से ये जानकारी पहुंचा दें। इस साल की शुरुआत में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री एंड केमिकल बायोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन चार्ल्स लीबर की गिरफ्तारी इसी ओर इशारा करती है, जिन पर आरोप है कि वह विश्वविद्यालय में गुप्त भर्ती कार्यक्रम चलाते थे, दूसरे विभागों के शोधार्थियों को करोड़ों रुपये का लालच देकर चीन के लिए काम करने को राजी करते थे। यानी लैब और दिमाग भले ही अमेरिकी थे, लेकिन हार्वर्ड और येल जैसे यूनिवर्सिटिज में काम चीन के लिए होता था। FBI की माने तो 61 वर्षीय लीबर को चीन द्वारा एक महीने में 50,000 डॉलर यानी 38 लाख रुपये से भी ज्यादा का भुगतान किया गया था और चीनी विश्वविद्यालय में एक शोध प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए 7.5 करोड़ से अधिक का पुरस्कार दिया गया था। यह सारी जानकारी उन्होंने यूएसए से छिपाई थी।

चीनी आर्मी की लेफ्टिनेंट पहचान छिपा कर यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी – फोटो : forbes
चीन के इस गुप्त भर्ती कार्यक्रम में चार्ल्स लीबर के अलावा दो चीनी शोधार्थियों को भी गिरफ्तार किया गया है। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात यकिंग ये ने बोस्टन यूनिवर्सिटी में एडमिशन से पहले वीजा लेते वक्त अपनी पहचान छिपाई थी। उन पर बोस्टन यूनिवर्सिटी के जरूरी बायोलॉजिकल रिसर्च की फाइल्स चीन तक पहुंचाने का आरोप है। दूसरे चीनी शोधार्थी झेंग को पिछले महीने बोस्टन के लोगान अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उन्होंने संवेदनशील जैविक नमूनों वाले 21 शीशियों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका छोड़ने की कोशिश की थी, उनका मकसद चीन जाकर अपनी रिचर्स पूरी करना था। जॉन डिमर्स, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सहायक अटॉर्नी जनरल, ने कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों को चीनी छात्रों को लेकर सतर्कता बढ़ाने की आवश्यकता है।