प्राचीन चिकित्सा पद्धति सोवा-रिग्पा पर भारत के दावे पर चीन ने जताई आपत्ति

प्राचीन चिकित्सा पद्धति सोवा-रिग्पा पर भारत के दावे पर चीन ने जताई आपत्ति

प्राचीन चिकित्सा पद्धति ‘सोवा-रिग्पा’ पर भारत ने अपना दावा जताया है। इस पर चीन ने आपत्ति जताई है। सोवा-रिग्पा को आयुर्वेद के समान माना जाता है, इसलिए भारत ने इसे अपनी अमूर्त संस्कृति विरासत करार दिया है। वहीं चीन ने भी अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर अपना दावा किया है।

सोवा-रिग्पा को तिब्बती परंपरा की चिकित्सा माना जाता है और भारत में हिमालय के निकट रहने वाले समुदायों में यह लोकप्रिय रही है। सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल केे दार्जिलिंग, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में यह सदियों से उपयोग में आती रही है।

भारत ने इसे भारतीय परंपरा का हिस्सा करार देने का दावा संयुक्त राष्ट्र संघ के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में किया है। लेकिन आधिकारिक सूत्राें के अनुसार चीन ने इसे लेकर आपत्ति जताई है।

विदेश मामलात मंत्रालय के साथ आयुष मंत्रालय ने कई दस्तावेज और साक्ष्य तैयार किए हैं, जिन्हें भारतीय प्रतिनिधि मंडल ने अपने दावे के साथ यूनेस्को में प्रस्तुत किया है। भारत ने यह कदम मोदी सरकार द्वारा पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को दिए जा रहे प्रोत्साहन केे तहत उठाया।

लद्दाख के लिए पहला विकास प्रोजेक्ट

केंद्रीय कैबिनेट 20 नवंबर को लेह में सोवा रिग्पा राष्ट्रीय संस्थान (एनआईएसआर) स्थापित करने की मंजूरी दे चुकी है। यह एक स्वायत्त संस्थान होगा। यह जम्मू-कश्मीर से अलग होकर 31 अक्तूबर को अस्तित्व में आए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के विकास के लिए उठाया गया पहला कदम है।

इसे आयुष मंत्रालय के तहत बनाया जाएगा और करीब 47.25 करोड़ रुपये लागत आएगी। इस संस्थान के जरिए भारत में सोवा-रिग्पा को लोकप्रियता दिलाई जाएगी और विश्व भर के विद्यार्थियों को यहां पढ़ने के अवसर मिलेंगे। भारत व विश्व के जाने-माने संस्थानों के साथ शोध व विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के मेल को भी बढ़ावा मिलेगा।

खुद गौतम बुद्ध ने पढ़ाई थी यह पद्धति

सोवा रिगपा में अपनाई जाने वाली पद्धतियां आयुर्वेद से मिलती-जुलती हैं। इसमें कुछ चीनी चिकित्सा शैली भी शामिल हैं। इसकी मूल पुस्तक ‘ग्यूड बजी’ के लिए कहा जाता है कि इसे खुद गौतम बुद्ध ने पढ़ाया था। इसी वजह से यह बौद्ध दर्शन के भी निकट है।

विडियों समाचार