संभल में बुलडोजर एक्शन का मामला, अवमानना याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार; हाईकोर्ट जाने की दी सलाह

पीठ ने सुनवाई से किया इनकार
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता मोहम्मद गयूर के वकील से कहा कि वे इसे उच्च न्यायालय में दाखिल करें। पीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि इस मुद्दे को अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय द्वारा सबसे बेहतर तरीके से निपटाया जा सकता है। इसलिए हम याचिकाकर्ता को अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता देते हुए वर्तमान याचिका का निपटारा करते हैं।”
याचिका में लगाया गया कोर्ट की अवमानना का आरोप
अधिवक्ता चांद कुरैशी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिकारियों ने शीर्ष अदालत के 13 नवंबर, 2024 के फैसले का उल्लंघन किया है, जिसमें अखिल भारतीय दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे और बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस और पीड़ित पक्ष को जवाब देने के लिए 15 दिनों का समय दिए बिना संपत्तियों को ध्वस्त करने पर रोक लगा दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश सुनाए जाने के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस बीच, मेरी संपत्ति में तीसरे पक्ष का हित नहीं बनाया जा सकता। वहीं, पीठ ने कहा कि इस संबंध में हाईकोर्ट में मुकदमा दायर करना चाहिए। हमने सभी आवश्यक निर्देश जारी कर दिए हैं।
- याचिकाकर्ता ने कहा कि वह शीर्ष अदालत के फैसले का पूर्ण उल्लंघन करते हुए अधिकारियों की मनमानी और अवैध कार्रवाई से व्यथित है। इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के पास संपत्ति के सभी आवश्यक दस्तावेज, स्वीकृत नक्शे और अन्य संबंधित दस्तावेज थे, लेकिन अवमानना करने वाले याचिकाकर्ता की संपत्ति के परिसर में आए और उक्त संपत्ति को ध्वस्त करना शुरू कर दिया।
- इस याचिका में तर्क दिया गया कि नवंबर 2024 के शीर्ष अदालत के फैसले में राज्य के अधिकारियों को देश में संपत्तियों को बुलडोजर से गिराने और ध्वस्त करने से पहले तैयार दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया था।
- याचिका में कहा गया है कि अधिकारियों ने दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया और बिना किसी पूर्व सूचना के उत्तर प्रदेश के संभल में तिवारी सराय स्थित याचिकाकर्ता की फैक्ट्री के एक हिस्से को बुलडोजर से गिरा दिया। याचिका में कहा गया है कि अधिकारियों को न्यायालय, कानून के शासन और न्याय प्रशासन का कोई सम्मान नहीं है। अ
- धिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग करने के अलावा, याचिका में उन्हें संबंधित परिसर में किसी तीसरे पक्ष के हित को बनाने से रोकने की मांग की गई।
इन जगहों पर लागू नहीं होंगे आदेश
गौरतलब है कि कई निर्देश पारित करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 2024 के अपने फैसले में स्पष्ट किया कि वे सार्वजनिक स्थानों जैसे कि सड़कों, गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या नदी या जल निकायों में अनधिकृत संरचनाओं के मामले में लागू नहीं होंगे, सिवाय उन मामलों के जहां विध्वंस के लिए अदालत का आदेश हो।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्थानीय नगरपालिका कानूनों द्वारा निर्धारित समय के अनुसार या ऐसे नोटिस की सेवा की तारीख से 15 दिनों के भीतर, जो भी बाद में हो, वापस किए जाने वाले पूर्व कारण बताओ नोटिस के बिना कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए। यह फैसला संपत्तियों के विध्वंस पर दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिकाओं पर आया।