समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के जाल में उलझीं बसपा मुखिया मायावती
लखनऊ । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बिछाए जाल में उलझ गई हैं। राज्यसभा चुनाव के लिए भाजपा के आठ प्रत्याशी उतारने पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव यह साबित करना चाहते थे कि भाजपा व बसपा की अंदरूनी डील हुई है।
अखिलेश यादव ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन के अंतिम क्षण में अपने समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज का नामांकन कराया। भले ही बजाज का नामांकन निरस्त हो गया हो, लेकिन अखिलेश यादव तो प्रदेश में भाजपा व बसपा की नजदीकी साबित करने में सफल होते दिख रहे हैं। अखिलेश पर हमलावर मायावती ने खुद ही कह दिया कि विधान परिषद चुनाव में समाजवादी पार्टी को हराने के लिए वह भाजपा का समर्थन तक कर सकती हैं।
बहुजन समाज पार्टी के निलंबित सात विधायकों के बगावती सुर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बुधवार को मिलने के बाद ही मुखर हुए थे। नामांकन के आखिरी दिन यानी 27 अक्टूबर को पत्रकारवार्ता में जब अखिलेश यादव से राज्यसभा चुनाव में भाजपा के बसपा को वॉकओवर देने का सवाल दागा गया तो उन्होंने कहा था कि तीन बजे तक इंतजार कर लो..। इसके बाद ही सपा ने अपने समर्थन से बजाज का निर्दलीय नामांकन करा दिया।
बुधवार को अंतत: प्रकाश बजाज का पर्चा तो निरस्त हो गया लेकिन उससे पहले जिस तरह से बसपा के छह विधायक पार्टी से बगावत कर सपा के साथ दिखे, उससे अखिलेश अपने मकसद में कामयाब जरूर होते माने जा रहे हैं। वह मुस्लिम मतदाताओं में संदेश देने में सफल रहे।
बसपा मुखिया मायावती काफी पहले से ही मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने बड़े पैमाने पर मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। मायावती के गुरुवार के बयान के बाद सपाई मानकर चल रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय में अब कोई भ्रम नहीं रह जाएगा
एक वर्ष में बसपा के कई नेताओं ने थामी साइकिल
सपा-बसपा की दोस्ती वर्ष 2019 में टूटने के बाद एक वर्ष के भीतर बसपा के कई नेताओं ने साइकिल थाम ली है। इनमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दयाराम पाल, कैबिनेट मंत्री रहे कमलाकांत गौतम, राम प्रसाद चौधरी, इंद्रजीत सरोज, सीएल वर्मा, दाउद अहमद तथा त्रिभुवन दत्त आदि प्रमुख हैं। धौलाना से विधायक असलम चौधरी की पत्नी भी बीते मंगलवार को ही सपा में शामिल हुई हैं।