झारखंड: राज्यों में भाजपा की ‘जादुई’ छड़ी बेअसर, एक साल में गंवाया 5वां राज्य

झारखंड: राज्यों में भाजपा की ‘जादुई’ छड़ी बेअसर, एक साल में गंवाया 5वां राज्य
  • राज्यों में हार का मिथक नहीं तोड़ पा रही भाजपा
  • एक साल में झारखंड के रूप में गंवाया 5वां राज्य
  • फ्री हैंड मिलने के बावजूद अपना कद नहीं बढ़ा पा रहे क्षत्रप
  • राष्ट्रवादी एजेंडे के बावजूद मिल रही हार से सकते में पार्टी

एक के बाद एक बड़ी चुनावी सफलता है हासिल कर चुनावी चाणक्य का खिताब पाने वाले अमित शाह की जादुई छड़ी मानों कहीं खो गई है। खासतौर पर विधानसभा चुनावों में। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार इसी कड़ी का एक हिस्सा है। झारखंड में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सभी प्रमुख भाजपा नेताओं की रैलियां आयोजित कीं। अंतिम दो चरणों में प्रधानमंत्री ने जमकर प्रचार किया और अपने नाम पर वोट मांगे।

पन्ना प्रमुख, बूथ मैनेजमेंट से लेकर सोशल मीडिया तक का सहारा लिया गया। केंद्र और राज्य की डबल इंजन की सरकारों की उपलब्धियों का जमकर प्रचार किया गया। इसके बावजूद पिछली बार के मुकाबले पार्टी 12 सीटें कम जीती और बहुमत से दूर रह गई। झारखंड वह राज्य है जहां अभी 6 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में उसे 14 में से 12 सीटों पर विजय मिली थी। अधिकतर लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों को 40 से 50 प्रतिशत तक वोट मिले। फिर आखिर कमी कहां रह गई कि उसके प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों ही जीत से वंचित रह गए।

क्या भाजपा अति आत्मविश्वास का शिकार हुई? क्या आजसू के साथ गठबंधन न करना उसे महंगा पड़ा? या एक गैर आदिवासी को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाने का प्रयोग उल्टा पड़ा? या फिर विधायकों और राज्य सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी पीएम मोदी की लोकप्रियता पर भारी पड़ी? या झामुमो और कांग्रेस का गठबंधन ज्यादा मजबूत साबित हुआ? या फिर पिछले 40 वर्षों से पार्टी के साथ रहे वरिष्ठ नेता सरयू राय का टिकट काटना उसे भारी पड़ा? अगले एक-डेढ़ महीने के अंदर होने वाले दिल्ली चुनाव और उसके बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उसे इन सवालों के जवाब ढूंढ लेने पड़ेंगे।

आखिर इसी रणनीति के सहारे शाह ने 2014 में भाजपा को 282 सीटें दिलाई और पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सीटें। इनके अलावा 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में 2017 में उन्होंने भाजपा के गठबंधन को 325 सीटें दिलाईं। लेकिन उसके बाद शाह के चुनावी कौशल के बावजूद अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा भाजपा एक के बाद एक सभी विधानसभा चुनाव हारती चली गई। झारखंड के नतीजे इस मायने में आश्चर्यजनक नहीं कहे जा सकते।

दूसरों के दम पर राज
इस दौरान यदि पार्टी ने बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, गोवा आदि राज्यों में सरकार बनाई तो जोड़ तोड़ के दम पर।

मौके पर मारा चौका
बिहार में नीतीश कुमार ने यदि राष्ट्रीय जनता दल का साथ न छोड़ा होता तो भाजपा की सरकार नहीं बनती। इसी तरह कर्नाटक में भाजपा को जनता दल सेकुलर और कांग्रेस की फूट का लाभ उठाते हुए सरकार बनाने का मौका मिला। हरियाणा में भी पार्टी बहुमत से दूर रह गई लेकिन दुष्यंत चौटाला के समर्थन से उसने सरकार बनाई।

कम हैं फिर भी दम है
यही हाल मेघालय मणिपुर और नागालैंड में हुआ जहां पार्टी क्रमश: 2, 21 और 12 सीटें जीतने के बावजूद सहयोगी दलों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब हुई। इसी तरह गोवा की 40 में से 13 सीटें  जीतने के बावजूद सरकार भाजपा ने बनाई।

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