लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 में अभी काफी वक्त है, लेकिन मौसम भांपकर राजनीति ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की भरपूर क्षमता पर अपने अनुमान का फीता रख चुके सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) हों या बार-बार भतीजे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से खुद को अपमानित महसूस कर रहे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया (Pragatisheel Samajwadi Party Lohia) के मुखिया शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav), वे अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के पाले में जा सकते हैं। जातिगत और क्षेत्रीय प्रभाव रखने वाले यह दल सत्ताधारी दल को बड़ी जीत में सहयोग कर सकते हैं, वहीं सपा के लिए चुनौतियां बढ़ाने का बूता भी रखते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में छोटे दलों के प्रभाव को समझते हुए ही 2014 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद भाजपा ने अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन किया और भाजपा गठबंधन ने 80 में से 74 लोकसभा सीटें जीतीं। पूर्वांचल में इन दलों का विशेष प्रभाव है। गठबंधन 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बरकार रहा जिससे 403 में से रिकार्ड 325 सीटें भाजपा गठबंधन ने जीती।
2018 में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में निषाद पार्टी के साथ गठबंधन कर सपा ने भाजपा को पराजित किया तो वहां से संभली भाजपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते निषाद पार्टी को अपने पाले में खींच लिया, लेकिन इस बीच सुभासपा से तालमेल गड़बड़ाया और राजभर गठबंधन से बाहर हो गए।
नतीजा यह रहा है कि भाजपा गठबंधन की सीटें घटकर 64 रह गईं। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद सपा 47 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन का अनुभव भी सपा के लिए खराब ही रहा। सिर्फ पांच सीट ही सपा जीत सकी।
लिहाजा, 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़े दलों से तौबा कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव राष्ट्रीय लोकदल, सुभासपा, अपना दल (कमेरावादी) और महान दल जैसे छोटे दलों के साथ चुनाव मैदान में उतरे और 125 सीटें जीतने में सफल रहे।
नतीजों के बाद अखिलेश अपने इस सफल फार्मूले को सहेजकर न रख सके और लोकसभा चुनाव से पहले सपा गठबंधन लगभग बिखर चुका है। महान दल के बाद राजभर व शिवपाल ने भी सपा से अलग होने का निर्णय कर लिया है। माना जा रहा है कि दोनों, भाजपा के साथ जा सकते हैं और भाजपा भी इन्हें साथ लेना चाहेगी।
दोनों का अपना-अपना असर : शिवपाल और ओमप्रकाश के भाजपा के साथ आने का अलग-अलग असर है। शिवपाल के आने से सैफई परिवार में फिर कलह का संदेश जाएगा। मुलायम सिंह के चुनाव न लड़ने पर शिवपाल मैनपुरी से ताल ठोंकते हैं तो सपा की मुश्किलें बढ़ेंगी। वहीं, राजभर पूर्वांचल के चुनाव पर असर डाल सकते हैं। लोकसभा की लगभग 25-26 सीटें ऐसी हैं, जहां राजभर पचास हजार से ढाई लाख तक है। विधानसभा चुनाव में यदि सपा ने आजमगढ़, अंबेडकरनगर और कौशांबी में क्लीन स्वीप किया है तो इसमें सुभासपा की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बसपा-सुभासपा गठबंधन की भी अटकलें : सपा से ‘तलाक’ की बात करने के साथ ही बसपा से गठबंधन की संभावना लगातार ओमप्रकाश जता रहे हैं, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। यदि सुभासपा और बसपा में गठबंधन होता है तो इसमें भी भाजपा अपना लाभ देख सकती है, क्योंकि तब यह गठबंधन मुस्लिम मतों में बड़ी हिस्सेदारी के साथ सपा का बड़ा नुकसान कर सकता है।
हालांकि, मायावती के भतीजे और पार्टी के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद ने जरूर किसी का नाम लिए राजभर से गठबंधन न किए जाने का संकेत दिया है। उन्होंने ट्वीट किया- बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासन, प्रशासन, अनुशासन की पूरी दुनिया तारीफ करती है। कुछ अवसरवादी लोग भी बहन जी के नाम के सहारे अपनी राजनीतिक दुकान चलाने की कोशिश करते हैं। ऐसे स्वार्थी लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।