Bihar Politics: बिहार के इन दस जिलों में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं, पार्टी ने इसे चुनौती माना
पटना । विधानसभा चुनाव में आशातीत सफलता दर्ज कराने वाली भाजपा के लिए दस जिले चुनौतीपूर्ण रहे। उन जिलों से पार्टी का एक भी विधायक नहीं, जबकि विधानसभा में वह दूसरी बड़ी पार्टी है। उसके 74 विधायक हैं, जो एनडीए के कुल संख्या बल में आधे से भी अधिक हैं।
दस जिलों में एक भी प्रत्याशी का विजयी नहीं होना भाजपा के सर्वाधिक विचारणीय पहलुओं में से एक हैं। चुनौती के रूप में लिया है। हकीकत में यह संगठन के लिए बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस हार को गंभीरता से लिया है। ऐसे में संगठन गढ़ने वाले रणनीतिकारों का पहला लक्ष्य पार्टी के विधायक विहीन क्षेत्रों को साधने की है। यहां के लोगों के दिलों में पार्टी की जगह बनाने की ठानी है। संगठन में नए और युवा रणनीतिकारों के लिए बनी गुंजाइश का एक कारण यह भी है।
पांच में पार्टी खुद पीछे, पांच में जनता ने किया पीछे
दरअसल, विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए में सीट बंटवारे के तहत पांच जिलों में भाजपा लड़ी ही नहीं थी। वहीं, पांच जिलों में जनता ने उसके प्रत्याशियों और विधायकों को खारिज कर दिया। वह 15 सीटिंग सीटें हार गई। पार्टी ने इसे गंभीरता से लेते हुए विधायकों और विधान पार्षदों के अलावा प्रदेश पदाधिकारियों, पूर्व विधायकों और प्रत्याशियों को गोद लेकर संगठन गढ़ने व जनाधार विस्तार करने का टास्क दिया है।
इन जिलों में मिली पराजय
बता दें कि भाजपा शिवहर, शेखपुरा, मधेपुरा, खगडिय़ा और जहानाबाद जिले में चुनाव नहीं लड़ी थी। इसके अलावा बक्सर, अरवल, कैमूर, औरंगाबाद और रोहतास में चुनाव लडऩे के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई। इन जिलों में पार्टी के कई सिटिंग विधायक हार गए। भाजपा इन जिलों में कई पारंपरिक सीटें हारी है। कैमूर में पार्टी ने 2015 में चार सीट पर जीत दर्ज कराई थी। इस बार चारों हार गई। इसी तरह बक्सर जिले में पार्टी की जमीन पूरी तरह खिसक गई। सिंटिंग के साथ नए प्रत्याशी हार गए। औरंगाबाद में भी ऐसा ही हुआ। गोह की सिटिंग सीट हारने के साथ भाजपा के पूर्व मंत्री और औरंगाबाद से उम्मीदवार रामाधार सिंह नहीं जीत पाए। ऐसे में कुल 169 गैर भाजपा विधायक वाले विधानसभा क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर संगठन ने जनप्रतिनिधियों को काम करने की जिम्मेदारी सौंपी है।