नए चीफ जस्टिस सूर्यकांत के शपथ लेते ही जस्टिस गवई ने छोड़ दी अपनी कार, कायम की नई मिसाल

नए चीफ जस्टिस सूर्यकांत के शपथ लेते ही जस्टिस गवई ने छोड़ दी अपनी कार, कायम की नई मिसाल
पूर्व मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई

जस्टिस सूर्यकांत सोमवार (24 नवंबर, 2025) को देश के नए मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें 53वें सीजेआई की शपथ दिलाई. उनके शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई भी मौजूद रहे. जस्टिस बी आर गवई सीजेआई की आधिकारिक कार में शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे, लेकिन कार्यक्रम के बाद वह दूसरी कार में वापस गए.

पूर्व सीजेआई गवई के कार्यालय की तरफ से इसे लेकर एक बयान जारी किया गया है. बयान के अनुसार, ‘जस्टिस बी आर गवई ने एक नई मिसाल कायम की. शपथ ग्रहण समारोह के बाद उन्होंने सीजेआई के लिए निर्धारित आधिकारिक कार छोड़ दी और वह राष्ट्रपति भवन की किसी दूसरी कार से वापस गए ताकि सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए नए सीजेआई सूर्यकांत के लिए चीफ जस्टिस की गाड़ी उपलब्ध रहे.’

जस्टिस बी आर गवई 23 नवंबर को सीजेआई के पद से रिटायर हुए हैं. वह इसी साल मई में देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बने थे. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई अहम मामलों की सुनवाई की और फैसले सुनाए. 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने प्रेजिडेंशियल रेफरेंस भेजकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से पूछे गए 14 सवालों पर जवाब दिया. 21 नवंबर को जस्टिस गवई का सीजेआई के तौर पर आखिरी कार्यदिवस था और इस बेंच में वह भी शामिल थे.

जस्टिस बी आर गवई जस्टिस केजी बालाकृष्णन के बाद भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले दूसरे दलित जज थे. अपने अंतिम कार्य दिवस पर मिले सम्मान से अभिभूत जस्टिस गवई ने कहा कि वह एक वकील और न्यायाधीश के रूप में चार दशकों की यात्रा पूरी करने के बाद पूर्ण संतुष्टि की भावना के साथ और न्याय के छात्र के रूप में संस्थान छोड़ रहे हैं.

जस्टिस बी आर गवई ने इस दौरान यह भी कहा था कि वह सेक्यूलर हैं. वैसे तो वह बौद्ध धर्म का पालन करते हैं, लेकिन किसी धर्म में उन्होंने बहुत गहन अध्ययन नहीं किया है. उन्होंने कहा था कि वह हिंदू, इस्लाम, सिख, बौद्ध हर धर्म को मानते हैं और उसका सम्मान करते हैं.

जस्टिस बी आर गवई ने यह भी बताया था कि उनके पिता भी सेक्यूलर थे और डॉ. भीम राव अंबेडकर के सच्चे अनुयायी थे और धर्मों को लेकर उनकी यह सोच पिता से ही आई है. उन्होंने बताया कि उनके पिता राजनीति से जुड़े थे और जब वह अपने राजनीतिक दौरे पर जाया करते थे और कोई उनसे कहता था कि यहां की दरगाह बहुत प्रसिद्ध है या कहीं का गुरुद्वारा प्रसिद्ध है तो वह उन धार्मिक स्थलों पर जाया करते थे.


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